सरकार कोयला क्षेत्र को बड़ी राहत देने की तैयारी कर रही है. प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने कोयले पर लगने वाले कार्बन टैक्स को हटाने का प्रस्ताव रखा है. इस कदम से कोयले से बनने वाली बिजली सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के मुकाबले ज्यादा सस्ती हो सकेगी तथा कंपनियों को प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने के लिए अतिरिक्त रकम मिलेगी.
क्या है मामला
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय ने 400 रुपये प्रति टन लगने वाले कार्बन टैक्स को हटाने का प्रस्ताव रखा है जो कि देश में उत्पादित और आयातित कोयले पर लगाया जाता है. प्रस्ताव के मुताबिक इससे बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय हालत सुधरेगी और बिजली उत्पादकों को प्रदूषण नियंत्रण वाले उपकरण लगाने में मदद मिलेगी. हालांकि, इस बारे में अभी प्रधानमंत्री कार्यालय और बिजली मंत्रालय का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
क्या होगा फायदा
गौरतलब है कि भारत वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझ रहा है और 2022 तक इसने उत्सर्जन मानक में कटौती करने का लक्ष्य रखा है. कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले संयंत्रों को सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करनी है, जिसकी वजह से लोगों को फेफड़ों के तमाम रोग होते हैं.
यह प्रस्ताव भारत के कोयला उद्योग के लिए एक बड़ी जीत है, जो कि काफी समय से इसकी मांग कर रही थी. कोयला कंपनियों पर भारी कर्ज है और बिजली कंपनियों के ऊपर उनका काफी बकाया है. इसकी वजह से उन पर दबाव है और वे लंबे समय से कार्बन टैक्स में कटौती की मांग कर रही थीं.
रॉयटर्स के मुताबिक पीएमओ में डिप्टी सेक्रेटरी हार्दिक शाह ने बिजली मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी को भेजे अपने नोट में कहा था, 'इसका एक समाधान यह हो सकता है कि कोयल पर लगने वाले जीएसटी सेस को भी खत्म किया जाए.'
शाह ने कहा कि यदि बिजली संयंत्रों की प्रदूषण कटौती वाले उपकरण लगाने में वित्तीय मदद नहीं की गई तो बिजली का टैरिफ बढ़ सकता है और इसका बोझ वितरण कंपनियों पर पड़ेगा.
गौरतलब है कि भारत कोल माइनिंग को वैश्विक खनन कंपनियों के लिए खोलने की तैयारी कर रहा है. देश में सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे प्रदूषक तत्वों संपूर्ण उत्सर्जन का करीब 80 फीसदी हिस्सा थर्मल पावर कंपनियों के द्वारा ही होता है. भारत में कोयला आधारित बिजली कंपनियां औसतन 3.50 रुपये प्रति यूनिट की दर से वितरण कंपनियों को बिजली बेचती हैं.
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