काले धन को लेकर क्‍या है सरकार की तैयारी

नरेंद्र मोदी सरकार ने विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाने के चुनावी वादे को पूरा करने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन की घोषणा की है. सरकार ने 627 लोगों के नामों की सूची सुप्रीम कोर्ट में सौंपी है, जिनके खाते कथित रूप से जेनेवा के एचएसबीसी बैंक में हैं.

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aajtak.in

  • नई दिल्‍ली,
  • 03 नवंबर 2014,
  • अपडेटेड 3:09 PM IST

नरेंद्र मोदी सरकार ने विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाने के चुनावी वादे को पूरा करने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन की घोषणा की है. सरकार ने 627 लोगों के नामों की सूची सुप्रीम कोर्ट में सौंपी है, जिनके खाते कथित रूप से जेनेवा के एचएसबीसी बैंक में हैं और एसआईटी—जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) और सीबीआई जैसी एजेंसियों के अधिकारी हैं—ने यह डर पैदा कर दिया है कि वह उन कठोर कानूनों को वापस ला सकती है जो निवेश और व्यापार की राह में रोड़ा बनते रहे हैं.

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कठोर फेमा
एसआईटी ने प्रवर्तन निदेशालय के उस प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिसमें 1999 के विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून (फेमा) में संशोधन की पेशकश की गई है, ताकि निदेशालय विदेश में काला धन रखने वाले व्यक्ति की उतनी ही कीमत की संपत्ति भारत में जब्त कर सके. प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि इससे काला धन जमा करने वाले संभावित लोगों में खौफ पैदा होगा. एसआईटी के एक अन्य प्रस्ताव में उन देशों से आने वाले एफडीआई के प्रावधानों को सख्त बनाने को कहा गया है, जो टैक्स चोरी के लिए सुरक्षित माने जाते हैं. जांचकर्ताओं का मानना है कि काला धन एफडीआई के रूप में देश में आ रहा है. लेकिन इससे जायज निवेशकों के मन में डर हो सकता है और निवेश धीमा हो सकता है.

सरकार के खाते में जमा हो काला धन
एसआईटी का मानना है कि आयकर विभाग को स्विट्जरलैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों के साथ दोहरा कराधान निषेध संधि (डीटीएए) करनी चाहिए और ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे उनके बैंकों में काला धन जमा करने वालों के नाम मांगे जा सकें और उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की जा सके. एसआईटी ने जर्मनी का अनुकरण करने का सुझाव भी दिया है. जर्मनी ने स्विट्जरलैंड से कहा है कि वह अपने बैंकों में जर्मनी के व्यक्तियों की जमा रकम की 20 फीसदी राशि काटकर जर्मन सरकार के खाते में जमा कर दे और इसके लिए खातेदारों के नामों का खुलासा करने की कोई जरूरत नहीं है.

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इस बात का डर है कि इन प्रस्तावों से कॉर्पोरेट इंडिया और बाकी दुनिया के सामने मोदी सरकार की कारोबार को बढ़ावा देने वाली छवि को धक्का लगेगा. मसलन, विदेशी बैंकों में खाता रखने वालों के नामों का खुलासा करना उस देश के साथ डीटीएए के गोपनीय शर्त का उल्लंघन होगा. सरकार को डर है कि डीटीएए की शर्तों के उल्लंघन से वे देश पीछे हट जाएंगे, जो भारत के साथ संधि करने जा रहे हैं. ऐसे देशों में अमेरिका शामिल है. अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट से कह चुके हैं, ''जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है, उनके नामों को उजागर करने पर विदेशी सरकारों के सूत्र जानकारी देना बंद कर देंगे.’’ जाहिर है, सरकार काले धन पर चुनावी वादे को अमल में लाने की कोशिश में है, तो दूसरी ओर वह अर्थव्यवस्था में सुधारों और विकास के एजेंडे को भी आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है.

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