फिल्म का नाम: आल इज वेल
डायरेक्टर: उमेश शुक्ला
स्टार कास्ट: ऋषि कपूर, सुप्रिया पाठक, अभिषेक बच्चन, मोहम्मद जीशान अयूब
अवधि: 125 मिनट
सर्टिफिकेट: U
रेटिंग: 2 स्टार
उमेश शुक्ला, एक एक्टर, राइटर और डायरेक्टर भी हैं. उन्होंने कुछ साल पहले 'ओह माय गॉड' जैसी बेहतरीन फिल्म बनाई है जो समाज के लिए एक बड़ा आइना साबित हुई. वैसे तो घरेलु वाद विवाद पर बहुत सारी फिल्में पिछले कई दशकों से बनती चली आ रही हैं और अबकी बार उमेश ने उन्ही गुत्थियों को सुलझाने के लिए फिल्म 'आल इज वेल' के द्वारा अपना मत रखना चाहा है. क्या यह फिल्म आपको लुभा पाने में सक्षम है? आइए जानते हैं:
कहानी
फिल्म की कहानी भल्ला परिवार की है जिसके मुखिया मिस्टर भल्ला (ऋषि कपूर) हैं, उनके साथ उनकी धर्म पत्नी मिसेज भल्ला (सुप्रिया पाठक) और बेटा
इन्दर भल्ला (अभिषेक बच्चन) रहते हैं. मिस्टर भल्ला ने चीमा (मोहम्मद जीशान अयूब) से काफी पैसा उधार लिया होता है जिसकी वसूली के लिए
नियमित रूप से चीमा उनके घर पर दस्तक देता रहता है. फिर यह परिवार एक रोड ट्रिप पर निकलते है जिसमें निम्मी (असिन) भी शामिल होती हैं जो
इन्दर की लव इंट्रेस्ट हैं. रोड ट्रिप के दौरान इस परिवार की जो आपसी अनसुलझी गुत्थियां होती हैं, वो धीरे धीरे सुलझती जाती हैं और परिवार में एक बेटे
को अपने मां-बाप की अहमियत का पता चलने लगता है और फिर हैप्पी एंडिंग हो जाती है.
स्क्रिप्ट, अभिनय, संगीत
पारिवारिक फिल्म की स्क्रिप्ट में आपको वही 3-4 किरदार आपस में संवाद का लेन-देन करते हुए नजर आते हैं और इस फिल्म में भी कुछ ऐसा ही
स्क्रीनप्ले है. पिता-पुत्र, पुत्र-माता, माता-पिता, फिर इन सबके इर्द गिर्द निम्मी और चीमा का तड़का. उमेश ने फिल्म के साथ एक संदेश देने की पुरजोर
कोशिश की है की एक परिवार और बेहतर कैसे बन सकता है लेकिन पूरी फिल्म के दौरान ऐसा नहीं हो पाता है की आपके रोएं खड़े हो या आप भावुक हो
जाएं, तो कहीं ना कहीं कमजोर स्क्रिप्ट का खामियाजा पूरी फिल्म को उठाना पड़ सकता है.
ऋषि कपूर और सुप्रिया पाठक जैसे मंझे हुए कलाकारों का
अभिनय हमेशा की तरह उत्कृष्ट है लेकिन स्क्रिप्ट में दम होता तो फिल्म और भी निखरती. वहींअभिषेक बच्चन ने अपने किरदार को शत प्रतिशत निभाया
है लेकिन असिन हर फिल्म में एक जैसी ही लगती हैं और 'आल इज वेल' में भी उनकी अदायगी में कोई नयापन नहीं है.
मोहम्मद जीशान अयूब के
कुछ सीन हैं जिस पर आपको हंसी आती है और बार-बार आप उनके आने का इंतजार करते हैं.
फिल्म में कुछ जबरदस्ती के गीत भी हैं, जो ना होते
तो भी फिल्म पर कुछ असर नहीं पड़ता. फिल्म के डायरेक्टर उमेश शुक्ला ने ओह माय गॉड में सोनाक्षी सिन्हा के गीत ने तो चार चांद लगाए थे लेकिन
इस फिल्म में एक बार फिर से उमेश ने उनका प्रयोग किया है लेकिन उनका यह प्रयोग भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाया.
क्यों देखें
अगर आप ऋषि कपूर, अभिषेक बच्चन या असिन के दीवाने हैं तो ही यह फिल्म देखें और अगर आप उमेश की फिल्मों के फैन हैं तो शायद यह फिल्म
आपको थोड़ी सी निराश करे.
क्यों ना देखें
अगर आपको एक ऐसी फिल्म की तलाश है जो शुरू से अंत तक आपको मनोरंजन के जरिए बांधें रखे, तो यह फिल्म ऐसी बिल्कुल भी नहीं है.
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