इस एक 'शेर' के लिए प्रोटोकॉल तोड़ PAK में फैज से मिलने पहुंचे थे अटलजी

आज पूरे देश में पाकिस्तान के मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज्म को लेकर चर्चा हो रही है. पक्ष-विपक्ष में बोलने वाले अपनी अपनी राय रख रहे हैं. इस बीच उस किस्से की भी खूब चर्चा हो रही है जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फैज से मिलने के लिए प्रोटोकॉल तोड़ दिया था.

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साल 1981 में कुछ ऐसे मिले फैज और अटल साल 1981 में कुछ ऐसे मिले फैज और अटल

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 03 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 7:44 PM IST

आज पूरे देश में पाकिस्तान के मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज्म को लेकर चर्चा हो रही है. पक्ष-विपक्ष में बोलने वाले अपनी-अपनी राय रख रहे हैं. इस बीच उस किस्से की भी खूब चर्चा हो रही है जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फैज से मिलने के लिए प्रोटोकॉल तोड़ दिया था.

ये किस्सा 1977-78 का है. तब देश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे. उस दौरान एक बार वो पाकिस्तान के आधिकारिक दौरे पर गए थे. वहां विदेश मंत्री के प्रोटोकॉल के मुताबिक उनकी सारी मुलाकातें पहले से फिक्स थीं. इस पूरे प्रोटोकॉल में कहीं भी ये नहीं था कि वो किसी और से भी मिल सकते हैं. फिर भी उन्होंने फैज अहमद फैज से मिलने की इच्छा जताई. यही नहीं वो प्रोटोकॉल तोड़कर फैज़ से मुलाकात करने उनके घर भी पहुंच गए.

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उन दिनों फैज बेरुत में रहकर काम कर रहे थे. वो एशियाई-अफ्रीकी लेखक संघ के प्रकाशन अध्यक्ष थे. किसी काम से फैज पाकिस्तान आए हुए थे. पूर्व पीएम को ये बात पता चली तो वो प्रोटोकॉल तोड़कर मिलने चले गए. वो काफी गर्मजोशी से फैज के गले मिले. लोगों के लिए ये चौंकाने वाली बात थी, दो अलग अलग विचारधाआरों के लोग जब आपस में मिले तो इसकी खूब चर्चा हुई. इस मुलाकात में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि मैं सिर्फ एक शेर के लिए आपसे मिलना चाहता था.

फैज़ ने उनसे शेर के बारे में पूछा तो अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद वो शेर पढ़ दिया. उनका ये मशहूर शेर और उसका अर्थ यहां दिया जा रहा है.

मकाम ‘फैज़’ कोई राह में जंचा ही नहीं,

जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले.

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कू-ए-यार = (प्रियतम/प्रियतमा) की गली

सू-ए-दार = मौत की तरफ़ (दार = सूली)

भावुक हुए फैज, सुनाई गजल

अटल बिहारी वाजपेयी से शेर सुनकर फैज अहमद फैज काफी भावुक हो गए. फिर अपनी पूरी गजल सुनाई. वाजपेयी जी ने उन्हें भारत आने का न्योता भी दिया. इसके बाद साल 1981 में फैज भारत आए तो दिल्ली आकर अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात की.

ये थी पूरी गजल

गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौ बहार चले

चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले

क़फ़स उदास है यारों, सबा से कुछ तो कहो

कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता, ये दिल ग़रीब सही

तुम्हारे नाम पे आयेंगे ग़मगुसार चले

जो हमपे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ

हमारे अश्क तेरी आक़बत संवार चले

मक़ाम ‘फैज़’ कोई राह में जँचा ही नहीं

जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले

कभी तो सुबह तेरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़

कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्कबार चले

हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब

गिरह में ले के गिरेबाँ का तार तार चले

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