भारत में क्रिकेटर्स को खुदा बना दिया जाता है: ओम पुरी

ओमपुरी का नाम एक्टिंग जगत के महान कलाकारों में लिया जाता है. अभी इनकी फिल्म 'जय हो डेमोक्रेसी' आने वाली है. आज तक से खास बातचीत में उन्होंने फिल्म के बारे में कई बातें शेयर कीं...

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ओमपुरी ओमपुरी

aajtak.in

  • मुंबई,
  • 20 मार्च 2015,
  • अपडेटेड 12:25 AM IST

ओमपुरी का नाम एक्टिंग जगत के महान कलाकारों में लिया जाता है. अभी इनकी फिल्म 'जय हो डेमोक्रेसी' आने वाली है. आज तक से खास बातचीत में उन्होंने फिल्म के बारे में कई बातें शेयर कीं...

हर विधा की फिल्म आप कर चुके हैं, अब ये 'जय हो डेमोक्रेसी' क्या फिल्म है?
जी, हिंदुस्तान बहुत अद्भुत देश है और दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी है, लेकिन कुछ कमियां हैं जो देश के स्वतंत्र होने के दौरान नहीं थी. जिस तरह से पार्लियामेंट में बहस होती है, वो बहुत ही दुखदायी है. एक दूसरे की बात नहीं सुनते, चिल्ला-चिल्ली होती है, गाली-गलौज और मारपीट भी हो जाती है. बेंगलुरु, कश्मीर, लखनऊ में पार्लियामेंट में हुई घटनाओं के ऊपर ये फिल्म कटाक्ष है. आखिर में संदेश जाता है कि बड़ी से बड़ी मुश्किल का समाधान बहुत आसानी से किया जा सकता है. फिल्म आपके चेहरे पर मुस्कान के साथ-साथ आंखों में शायद गीलापन भी लाए.

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आप वोट देते हैं? किन बातों का ध्यान रखते हैं?
मैं वोट देता हूं और इंसान के ऊपर ध्यान देता हूं, पार्टी पर नहीं. क्या वो पढ़ा लिखा है, क्या समाज सेवा करता है, इन सभी बातों का ख्याल रखता हूं.

आपको नहीं लगता एक ही तरफ की फिल्म कर रहे हैं. 'डर्टी पॉलिटिक्स' के बाद 'जय हो डेमोक्रेसी.
'डर्टी पॉलिटिक्स' में गंभीर मुद्दा था, भ्रष्ट नेताओं के ऊपर की कहानी थी और यहां हसी मजाक के साथ राजनीतिक गलियारे की बात कही जा रही है. तो दोनों अलग-अलग कहानियां हैं.

आपने बॉलीवुड और हॉलीवुड दोनों जगह काम किया है, क्या अंतर है?
अभी बॉलीवुड में काफी बदलाव आया है , लेकिन कहानी के तौर पर हम अभी बहत पीछे हैं.

सिनेमा की ऐसी कौन सी विधाएं अभी बची हैं जो आप करना चाहेंगे?
मेरा पहला प्यार ऐसा सिनेमा है जो सामाजिक सच्चाई से जुड़ा हो, लेकिन हमारे पास काम के चुनाव के ज्यादा विकल्प नहीं होते. तो बस जो काम आता है करता जाता हूं. लेकिन पहला प्यार हमेशा से सामाजिक निष्कर्ष से जुडी फिल्में ही हैं.

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क्या आपको वो पहला दिन याद आता है, जब आपने शूटिंग के दौरान कैमरे का सामना किया हो?
जी, 1975 में फिल्म इंस्टीट्यूट की एक फिल्म की थी 'चोर चोर छुप जा', जिसमें मैंने पहली बार कैमरा फेस किया था. बच्चों के साथ काम किया था.

किस तरह के गीतों को सुनना पसंद करते हैं आप?
मुझे पुराने गीत ही ज्यादा पसंद हैं, जो 50 और 60 के दशक के गाने हैं, जिनमें मिठास थी, लिखावट थी, साहित्य था. साहिर लुधियानवी, मजरूह, शैलेन्द्र, नीरज के गीत दिल को छूते थे और कहानी का हिस्सा होते थे. आजकल के गाने तो थोपे हुए होते हैं, शोर होता है और कुछ नहीं.

खेल कौन-कौन से पसंद हैं ?
मुझे सारे खेल पसंद हैं, लेकिन मुझे ऐतराज तो नहीं पर बड़ी तकलीफ होती है कि हमारे यहां क्रिकेटर्स को खुदा बना रखा है. बाकी खेल जैसे फुटबॉल, वॉलीबॉल, बास्केटबॉल, हॉकी को कोई स्थान या तवज्जो नहीं दी जा रही है. क्रिकेटर्स अरब और खरबपति बन रहे हैं और बाकी खेलों के खिलाड़ी जब खेलकर वापिस आते हैं तो उन्हें ऑटो और टैक्सी में घर जाना पड़ता है. ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. हॉकी हमारे यहां पैदा हुई है और माफ करना, लेकिन जितनी ऊर्जा और स्टैमिना हॉकी और फुटबॉल में लगती है, उतनी किसी और खेल में नहीं लगती.

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