लद्दाख की सरहद पर करीब एक महीने से चीन से जारी तनातनी पर चर्चा के लिए आजतक के e-एजेंडा कार्यक्रम की सीरीज में 'सुरक्षा सभा' में लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकेतकर ने कहा कि आज का भारत 1962 का भारत नहीं है. हमारी सेना भारत के जमीन का कोई टुकड़ा शत्रु राष्ट्र के हाथों में जाने नहीं देगी, वरना राष्ट्र हमें माफ नहीं करेगा. हम इसकी सुरक्षा बनाए रखेंगे.
ई-एजेंडा कार्यक्रम की सीरीज में 'सुरक्षा सभा' कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्रियों से लेकर रक्षा विशेषज्ञ तक शिरकत कर रहे हैं. 'सुरक्षा सभा' कार्यक्रम में 62 की बात पुरानी ... हम हैं नए हिन्दुस्तानी के विशेष सत्र में लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकेतकर ने 1962 और आज के भारत के बारे में तुलना करते हुए कहा कि आज का भारत वो भारत नहीं रहा जिस पर पहले युद्ध थोप दिया गया था. आज भारत पहले की तुलना में काफी सशक्त हो गया है.
भारतीय सेना में बदलाव के सूत्रधार माने जाने वाले वाले लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकेतकर ने कहा कि आज सीमा पर तनाव क्यों है, इस पर सोचना होगा. चीन की ओर से यह सब अचानक नहीं हुआ. इसके लिए बहुत दिनों से तैयारी चल रही होगी. प्रशिक्षण चल रहा होगा. यह सब पहले से तय रणनीति के आधार पर है. यह चीनी रणनीति है कि पहले थोड़ी सी जमीन हासिल करो और फिर आगे की बात करो.
आखिर मार्च-अप्रैल में ही क्यों?
लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकेतकर मार्च और अप्रैल में ही सीमा पर तनाव की स्थिति बनाने को लेकर कहा कि हमें समझना होगा कि आखिर मार्च-अप्रैल में ही यह क्यों हो रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन में आंतरिक प्रदर्शन हो रहे हैं और इस बीच कोरोना की वजह से अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना कर रहा है. अमेरिका समेत कई देश उस पर लगातार निशाना साध रहे हैं. चीन में लगातार बढ़ रहे आंतरिक प्रदर्शन के कारण दबाव बढ़ता जा रहा है. कई अन्य मामलों में भी उस पर खासा दबाव है और इन्हीं दबाव को खत्म करने के लिए ही उसकी यह रणनीतिक चाल है.
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जो डटा रहेगा जीत उसी कीः थपलियालई-एजेंडा कार्यक्रम की सीरीज में 'सुरक्षा सभा' कार्यक्रम में रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल शेरू थपलियाल ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के अनुभव के बारे में कहा कि जो लड़ाई होती है वो दो सेनाओं के बीच होती है. लेकिन लड़ाई इच्छाशक्ति की भी होती है जो डटा रहेगा जीत उसी की होती है. तो चीन ने यह सोचा कि 1962 में जो हुआ वो इस बार भी होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हमारी फौज वहीं डटी रही और माकूल जवाब दिया.
उन्होंने कहा कि अभी लद्दाख में 2 जगह विवाद चल रहा है उसमें ज्यादा गंभीर स्थिति है गलवान घाटी की, क्योंकि इसके पश्चिम में आ गए तो हमारे जो 2 हाईवे हैं वो उनकी जद में आ जाएगा, उनकी मंशा यही थी कि भारतीय सेना को पता लगने से पहले वहां पर बैठ जाएं जिससे वहां पर कोई मूवमेंट न हो सके. लेकिन सेना ने ऐसा होने नहीं दिया.
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उन्होंने कहा कि अभी बात चल रही है लेकिन हमें पता है कि कोई रिजल्ट नहीं आने वाला. बात और शीर्ष स्तर तक जाएगी. जब तक समाधान नहीं निकलता तब तक हमारी सेना को वहीं पर डटे रहना चाहिए.
62 के युद्ध के बाद आया बदलावः थपलियाल
थपलियाल ने 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद भारतीय सेना आए बदलाव के बारे में कहा कि जब हम चीन से हारे तो उसके बाद भारतीय सेना में बहुत सारे परिवर्तन आए. पहला परिवर्तन यह रहा कि पहाड़ों पर लड़ाई के लिए माउंटेन डिवीजन बनाया गया. दूसरा परिवर्तन पहाड़ों पर रहने लायक साजो-सामान, कपड़े और अन्य चीजें सेना को मुहैया कराई गई. तीसरा यह कि स्पॉट पर जो कमांडर है उसकी इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है.
इन्फैंट्री के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल और सियाचिन पर पहला कदम रखने वाले संजय कुलकर्णी ने बताया कि आज का भारत 1962 का भारत नहीं है. आज का भारत सक्षम भारत है. इसलिए वह जानता है कि राजनीतिक बात करूंगा, लेकिन वह सैन्य हस्तक्षेत नहीं चाहता. वहां गोली नहीं चली क्योंकि उन्हें मालूम है कि अब वो भारत नहीं रहा जो 1962 में देखा था.
चीन में स्थानीय स्थितियां जिम्मेदारः कुलकर्णी
उन्होंने कहा कि चीन ऐसा क्यों करता है इसके पीछे उनके यहां की कई तरह की दिक्कतें मुख्य वजह हैं. उनके राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर दबाव है. उन्होंने 2020 तक प्रति व्यक्ति आय डबल करने की बात कही थी लेकिन वो नहीं कर सके. अभी वुहान से निकले कोरोना वायरस को लेकर उस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बना हुआ है. दक्षिण चीन सागर मामले में घिरा हुआ है और तनाव चल रहा है.
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उन्होंने कहा कि चीन की सीमाएं 14 देशों से लगी हैं, उन्होंने 12 देशों के साथ करार कर लिया है जबकि भारत और भूटान ही 2 ऐसे देश हैं जिनके साथ सीमा विवाद चल रहा है.ई-एजेंडा में कुलकर्णी ने कहा कि पहले भी फिंगर फोर तक वे आते थे और चले जाते थे, लेकिन इस बार नहीं हुआ और ररुक गए. अब देखना होगा कि वो इस बार ऐसा क्यों कर रहे हैं.
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