परेशान हैं, पराजित नहीं

कोविड-19 के आर्थिक दुष्परिणामों के चलते 30 से 50 साल के लोगों की नौकरी चली गई या वेतन कट गया पर उनके लिए यह समय खुद को दोबारा हुनर से लैस करने का मौका भी है. लगभग हर परिवार के पास सुनाने को वेतन कटौती, नौकरी छूटने और खर्चों को कम करने के दबाव जैसी मंदी की कहानी है.

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कोविड के दौर में जिंदगी महामारी से मुकाबिल अधेड़ कोविड के दौर में जिंदगी महामारी से मुकाबिल अधेड़

एम.जी. अरुण / श्वेता पुंज

  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 11:22 AM IST

मुंबई में एक बहुराष्ट्रीय लॉजिस्टिक कंपनी के आइटी विभाग के डिप्टी जनरल मैनेजर, 49 वर्षीय जगदीश सुर्वे की बीते अप्रैल महीने में कंपनी ने छुट्टी कर दी. वे कहते हैं कि अपनी नौकरी खोना एक झटका था क्योंकि वह 19 वर्षों से इसी फर्म के साथ काम कर रहे थे और यह छंटनी देशभर में लागू लॉकडाउन के बीच हुई. हालांकि पिछले साल एक अन्य वैश्विक लॉजिस्टिक फर्म के उनकी कंपनी का अधिग्रहण करने के बाद से ही छंटनी की आशंका बनी हुई थी लेकिन किसी ने भी नहीं सोचा था कि कंपनी के नए मालिक लगभग 100 कर्मचारियों पर उस समय गाज गिराएंगे, जब वे कोविड-19 महामारी से जूझ रहे थे.

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सुर्वे जो अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य हैं, कहते हैं, ‘‘यह मेरे लिए एक अप्रत्याशित झटका था. हम में से कई लोगों को छोडऩे के लिए कहा गया था क्योंकि नए प्रबंधन को हमारा वेतन बहुत ज्यादा लगता था.’’ फिलहाल वे अपनी बचत से अपने घर का खर्च और अपने बेटे की शिक्षा का प्रबंध कर रहे हैं पर वे कहते हैं कि ये पैसे शायद अगले तीन महीनों के लिए ही पर्याप्त होंगे.

वर्तमान में रोजगार बाजार जिस तरह सिकुडऩ के दौर से गुजर रहा है उसे देखते हुए नई नौकरी मिलना मुश्किल है. लॉजिस्टिक्स कंपनियों ने या तो सभी नई भर्तियां बंद कर दी हैं या अपने कर्मचारियों की संख्या घटाने पर काम कर रही हैं. सुर्वे का कहना है कि अब उनकी सारी उम्मीदें अगले कैलेंडर वर्ष में आने होने वाली नई नौकरियों पर ही टिकी हैं.

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30-50 आयु वर्ग के उनके जैसे हजारों हैं, जिन्होंने कोविड के कारण हुए लॉकडाउन और इसके आर्थिक परिणामों की वजह से जीवन के सबसे बड़े झटके का सामना किया है. वे वही वफादार, लंबे समय से कंपनी की सेवा करने वाले कर्मचारी थे जो काम में माहिर हो चुके थे और जिन्हें उनके पूर्व नियोक्ता अपने सबसे अच्छे कर्मचारी कहा करते थे.

कई कंपनियां ऐसे वरिष्ठ कामगारों को हटाने के लिए मजबूर हुई हैं और नौकरी गंवाने वालों को अपना भविष्य अनिश्चित नजर आता है. उनके सामने बड़ा सवाल है कि वे अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे कहां से लाएंगे, या घर खरीदने जैसे उनके पुराने सपने का अब क्या होगा.

एक निजी शोध संगठन सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) ने अनुमान लगाया है कि लॉकडाउन के बाद 12 करोड़ भारतीयों ने अपनी नौकरी गंवा दी. मैनपावर फर्म ग्लोबल कंसल्टेंट्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण भारत में लगभग 13 करोड़ नौकरियां जाएंगी, जिसमें 40 प्रतिशत ब्लू कॉलर कर्मचारी या मेहनतकश श्रमिक होंगे.

विमानन, ऑटोमोबाइल, यात्रा और पर्यटन, खान-पान, मनोरंजन और मैन्युफैक्चरिंग, सभी क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होंगे. इस साल अप्रैल में उद्योग निकाय सीआइआइ (भारतीय उद्योग परिसंघ) की ओर से 200 सीईओ के बीच एक सर्वेक्षण किया. उन सीईओ का मानना था उनके संबंधित क्षेत्रों में 52 प्रतिशत तक नौकरियां जा सकती हैं.

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कोविड की मार

कंपनियों में छंटनी की बुरी खबरें लगातार आ रही हैं. खबरों के अनुसार, दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज चीनी कंपनी हुआवे टेक्नोलॉजीज ने 2020 तक भारत के अपने राजस्व लक्ष्य में 50 प्रतिशत तक की कटौती की है और अपने आधे से अधिक कर्मचारियों की छंटनी कर रहा है. इसी तरह, खाद्य वितरण सेवा स्विगी ने 1,000 से अधिक लोगों को हटाया, कैब एग्रीगेटर ओला ने 1,400 कर्मचारियों को निकाल दिया और एक भारतीय वीडियो-शेयरिंग सोशल नेटवर्किंग सेवा शेयरचैट ने 100 के करीब कर्मचारियों को हटा दिया.

अमेरिकी रियल एस्टेट कंपनी वीवर्क ने भी अपने 100 कर्मचारियों या भारत में अपने कार्यबल के 20 प्रतिशत की छंटनी कर दी है. उसी प्रकार रेस्तरां एग्रीगेटर जोमेटो ने कथित तौर पर अपने 13 प्रतिशत कर्मचारियों के हटा दिया जबकि बाजार हिस्सेदारी के लिहाज से सबसे बड़ी भारतीय विमानन कंपनी इंडिगो एयरलाइंस अपने 10 प्रतिशत कर्मचारियों को हटा रही है. निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने भी तेल और गैस डिविजन के कुछ शीर्ष कर्मचारियों के वेतन में 50 प्रतिशत तक कटौती की घोषणा की है. और यह तो सिर्फ कुछ उदाहरण हैं.

लगभग हर परिवार के पास सुनाने को वेतन कटौती, नौकरी छूटने और खर्चों को कम करने के दबाव जैसी मंदी की कहानी है. आगे क्या होगा इसको लेकर बड़ी चिंता है. इसके कारण लोग प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं. 30 और 50 साल के बीच के लोग विशेष रूप से जोखिम में है क्योंकि जीवन की अपेक्षाएं बढ़ रही हैं, करियर आगे बढ़ रहा है और बच्चों की शिक्षा से लेकर अन्य पारिवारिक जरूरतों से जुड़ी जिम्मेदारियां हैं.

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यह आर्थिक रूप से सबसे अधिक उत्पादक आबादी भी है—लेकिन महामारी और आर्थिक गिरावट से निपटने में आ रही मुश्किलों ने भावनात्मक बोझ को विशेष रूप से भारी बना दिया है. महिंद्रा ग्रुप के एचआर के पूर्व अध्यक्ष और अब जन मुद्दों पर कंपनी के सलाहकार राजीव दुबे कहते हैं, ''हम बहुत डर और अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं. कई व्यवस्थागत बदलाव आएंगे. जिस चीज पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है वह है भय और अनिश्चितता को दूर करना.’’

लॉकडाउन में अस्तित्व का संकट

दुबे इस समस्या के तीन दृष्टिकोणों के साथ होने की बात करते हैं—एक स्वयं काम देख रहा है, दूसरा अपने कामगारों पर केंद्रित है और तीसरा कार्यस्थल पर है. उनका कहना है कि एक कॉर्पोरेट लीडर को स्थिति की वास्तविकता को समझते हुए काम करना चाहिए. उन्हें आशा देने और सहानुभूति दिखाने की जरूरत है. वे कहते हैं, ''कंपनियों को विकेंद्रीकृत, नेतृत्व में बंटवारे की आवश्यकता है और लोगों को सशक्त बनाना चाहिए. ऐसी स्थितियों में कमान और कंट्रोल का नियम काम नहीं कर सकता है.’’

एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि निर्णय को संगठन के उद्देश्य और मूल्यों में निहित करना होगा. वे आगे जोड़ते हैं, ''भले ही आपको लोगों को हटाना पड़ रहा हो, लेकिन ऐसा करने का एक तरीका है. यह नेतृत्व के लिए चुनौती है.’’ टाटा समूह के चेयरमैन एमेरिटस रतन टाटा ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि कोविड-19 महामारी के बीच भारतीय कंपनियों में चल रही छंटनी एक घबराहट भरी प्रतिक्रिया थी और शीर्ष नेतृत्व में सहानुभूति की कमी नजर आई.

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करियर के मध्य में खड़े कुछ पेशेवरों से पूछा गया कि वे स्थिति का सामना किस प्रकार कर रहे हैं तो उनका जवाब था कि वे अब ‘‘एक-एक दिन गिन रहे हैं, कल न जाने क्या होगा.’’ वेतन में कटौती, नौकरी ज्वाइन करने की तारीखों को आगे बढ़ाया जाना या टालमटोल, नौकरी छूटना और आशंका—पेशेवरों और उनके परिवार अप्रत्याशित रूप से अनिश्चितता में झोंक दिए गए हैं.

गुरुग्राम स्थित एक मानसिक-स्वास्थ्य केंद्र रिबूट वेलनेस की मुक्चय मनोवैज्ञानिक और पार्टनर आस्था अहलूवालिया कई वर्षों से विभिन्न संगठनों को टर्मिनेशन काउंसलिंग सर्विस दे रही हैं. उनके मुताबिक, विडंबना यह है कि कोविड के भारत में कहर बरपाने के बाद से, कंपनियां उन तक नहीं पहुंच रही हैं—बल्कि अब तो कर्मचारी उनसे संपर्क कर रहे हैं और भविष्य की अनिश्चितताओं को लेकर उनसे बात कर रहे हैं. वे कहती हैं, ‘‘30-50 आयु वर्ग के लोग बहुत अधिक दबाव में हैं. उनके कंधों पर बहुत सारे वित्तीय बोझ हैं.’’

उनके पास आने वाला लगभग हर व्यक्ति अनिश्चितता के कारण डर की बात कह रहा है. अहलूवालिया कहती हैं, ''मेरी सलाह, यह है कि जो चीजें आपके नियंत्रण में हैं, पहले उन्हें संभालें. अपनी योजनाओं पर पुनर्विचार करें या अपने कौशल को बढ़ाने के लिए कुछ नए कोर्स करें. बहुत से लोगों ने अपने परिवारों से मदद मांगी है.’’ 30-50 आयु वर्ग के कई लोगों ने अपनी नौकरी (वेतन में कटौती के साथ) बचा ली हो पर परिवारों के युवा सदस्यों के लिए इससे भी बदतर स्थिति है.

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सीएमआइई के एमडी और सीईओ महेश व्यास कहते हैं, ‘‘20-24 आयु वर्ग वाले व्यक्ति की तुलना में, 40-वर्षीय व्यक्ति की नौकरी जाने की संभावना कम होती है. कंपनियों को नए लोगों को भर्ती करना और आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना चुनौतीपूर्ण लगता है इसलिए वे अपने अनुभवी कर्मचारियों को बनाए रखना चाहती हैं.’’

नए दौर में संपर्क

युवा पेशेवरों के लिए एक मंच, नेटवर्क कैपिटल के संस्थापक उत्कर्ष अमिताभ ने कोविड के कारण नौकरी खो चुके लोगों को संभावित नियोक्ताओं के साथ जोडऩे के लिए एक सेवा शुरू की है. वे बताते हैं, ''हमारा लक्ष्य नौकरी की तलाश करने वालों को सार्थक अवसरों के साथ मिलाप कराना है. बहुत वरिष्ठ लोग सुरक्षित हैं. यह मध्य स्तर के कर्मचारी हैं, आमतौर पर 40 और 50 की उम्र के बीच, जिन पर ज्यादा गाज गिर रही है और नौकरियां जा रही हैं.’’

शुरुआत अक्सर वेतन में कटौती के साथ होती है, उसके बाद संगठन कर्मचारियों पर परिणामों के लिए दबाव डालना शुरू कर देते हैं. स्थिति अक्सर बहुत जटिल हो जाती है. जब लोगों की नौकरी चली जाती है और उसके बाद जिस नौकरी की उन्हें पेशकश की जाती है, अक्सर उसमें वेतन कम होता है. अमिताभ कहते हैं, ''जब आप नौकरी खो देते हैं तो आप क्या करते हैं? आप अपने नेटवर्क तक पहुंचते हैं.

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यह नेटवर्क 150 लोगों का हो सकता है जो कि पर्याप्त नहीं है. नेटवर्क कैपिटल में, हमारे सदस्य सत्यापित होते हैं और वास्तविक नौकरियां देते हैं जो नौकरी खोजने वाले व्यक्ति की प्रोफाइल के अनुरूप होते हैं.’’ नेटवर्क कैपिटल के फेसबुक पर लगभग 62,000 सदस्य हैं, हर दिन उन लोगों के पोस्ट आते हैं, जो अपनी नौकरी खो चुके हैं और नए की तलाश में हैं.

हालांकि, इन परेशानियों में उम्मीद की एक किरण भी है. कोविड के बाद नौकरियों के स्वरूप में तेजी से बदलाव के साथ, एक नए ट्रेंड जिसे अमिताभ 'पैशन इकोनॉमी’ नाम देते हैं, में वृद्धि देखी जा सकती है. लोग अब सोलो बिजनेस या अकेले कोई काम शुरू करेंगे और अपने पैशन को एक ब्रांड के रूप में परिवर्तित करेंगे, उसे आय का जरिया बनाएंगे. यह भविष्य के रोजगारों में से एक हो सकता है.

उदाहरण के लिए, वित्तीय फर्म में काम करने वाली एक युवती जिसकी महीनेभर पहले नौकरी चली गई थी और अपने पिछले नियोक्ता के साथ एक अनुबंध के कारण उसे गुमनाम रहना था—अब बैंकिंग पर यूट्यूब चैनल चलाती है. उसने अपने जुनून को एकल व्यवसाय में बदल दिया है और कहती है कि वह फाइनेंस सेक्टर में काम करते हुए जितना कमाती थी उससे दो या तीन गुना कमा रही है. इसके अलावा बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्होंने प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नौकरियों को खो दिया है और अब तकनीकी शिक्षा देने का काम शुरू किया है. हालांकि, अमिताभ कहते हैं कि इस पैशन इकोनॉनमी को आगे बढ़ाने के फायदे हैं, लेकिन इसके लिए लोगों में जबरदस्त अनुशासन और कड़ी मेहनत की जरूरत है.

ऐसी संभावना है बहुत सी फर्म अपने कर्मचारियों को अगले कुछ महीनों तक घर से ही काम करने को कहेंगे. उदाहरण के लिए, आइटी क्षेत्र की कंपनियां जहां काफी संख्या में लोग अपने घरों से बाहर जाकर काम करते हैं और उन फर्म्स में काम करने वाले ऐसे लोग जो कंपनी के पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं बनना चाहते या हर दिन ऑफिस नहीं जाना चाहते वे फ्लेक्सी-वर्क या जरूरत के हिसाब से काम करने में इच्छुक दिखते हैं. (कुछ लोग इसे वर्कफोर्स का 'उबेराइजेशन’ नाम देते हैं.)

टीसीएस जैसी कंपनियों ने पहले से ही घोषणा की है कि उनके कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा अब घर से ही काम करेगा. ट्विटर और स्वेर ने कथित तौर पर अपने कर्मचारियों से कहा है कि वे अपने कर्मचारियों से अब हमेशा के लिए घर से ही काम करा सकते हैं, और फेसबुक ने भी अपने कर्मचारियों के लिए दफ्तर से अलग घर अथवा किसी अन्य स्थान से काम करने की अनुमति दी थी, जिसे अब और आगे बढ़ा दिया है.

लेकिन घर से काम करने की अपनी सीमाएं भी हैं. हैदराबाद की टेक्सटाइल डिजाइनर 35 वर्षीय शिपाली नानजकर का कहना है कि हालांकि वे घर पर डिजाइन कर रही थीं और उन्हें व्हाट्सऐप से अपने कार्यालय में भेज रही थीं, लेकिन अपने आउटपुट को वस्तुत: देखने और उसका अनुभव लेने का जो आनंद था वह गायब हो गया है जिसकी कमी खलती है. वे बताती हैं, ‘‘अपनी डिजाइन की व्याख्या आमने-सामने की बातचीत के जरिए करना सरल है, वर्चुअल मीटिंग्स बहुत ज्यादा समय खपाने वाली होती हैं.’’

हालांकि यह केवल निराशा भरा समय नहीं है. कई लोगों ने संकट का उपयोग अपने कुछ जुनून को पूरा करने के लिए किया है. हालांकि लंबे समय तक इससे गुजारा नहीं कर सकते. फिर भी, एक पैदाइशी हुनर और ताकत को उभारना किसी को भी डूब जाने से बचाने में मददगार तो हो ही सकता है. आइटी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में दाखिला जिसमें क्लाउड और डेटा विज्ञान जैसी प्रौद्योगिकियां शामिल हैं, को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है.

नए जमाने की कौशल बढ़ाने वाली सेवाएं अब एक सेक्टर और नौकरी के मुताबिक प्रशिक्षण भी दे रही हैं. कोविड-19 व्यन्न्तिगत जीवन के साथ ही साथ परिवारों और संगठनों में आमूलचूल बदलाव की घटना साबित हुई है. हालांकि कोविड की महामारी पहले से ही लाखों लोगों के लिए दर्दनाक अनुभव वाली रही है—जिसमें कई तरह की क्षति एक साथ हुई है जिसका असर करियर पर भी हुआ है—बहुत से कर्मचारियों के पास नई आर्थिक वास्तविकता को स्वीकार करने और भविष्य की नौकरियों के लिए अपने कौशल बढ़ाने के अलावा नाममात्र के विकल्प ही शेष हैं.

बेशक, यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल और परिवर्तन संभवत: दर्दनाक ही होगा. बहरहाल, कोविड के दौर में केवल एक ही चीज पक्की प्रतीत होती है—बहुत तरह के बदलावों के लिए हमें खुद को तैयार करना होगा.

—साथ में अमरनाथ के मेनन

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