दिवाली के मौके पर पटाखों की जगह फिर जिंदा हुई दीप दान की परंपरा

ये हाल सिर्फ रायपुर का ही नहीं है, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा ही नजारा है. कोई देवालय और मंदिरों में दीप जला रहा है तो कोई तालाब और नदियों की धारा में दीप दान कर रहा है.  एक दूसरे को भी दीप ज्योति भेट कर लोगों का चेहरा खुशियों से खिल उठा है.

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दीप दान की परंपरा दीप दान की परंपरा

सुनील नामदेव

  • रायपुर,
  • 18 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 11:09 PM IST

इस बार लोगों ने पटाखों से ऐसी दूरी बनाई है कि पटाखा व्यापारी ग्राहकों की राह तक रहे हैं. दूसरी ओर दीप-दान की वर्षों  पुरानी परंपरा फिर से जीवित होती दिख रही है. लोग अपने अंदाज में दिवाली मना रहे हैं. कहीं दीये दान की बयार बह रही है, तो कहीं सिर्फ औपचारिकता वश पटाखे फोड़े जा रहे हैं. ताकि प्रदूषण भी ना हो और लक्ष्मी जी का स्वागत भी हो जाए.

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ग्राहकों की राह तक रहे पटाखा व्यापारी

रायपुर का पटाखा बाजार पूरी तरह से सुस्त है. आमतौर पर धनतेरस से लेकर दिवाली और ग्यारस तक पटाखा बाजार में ग्राहकों का तांता लगा रहता था लेकिन इस साल ऐसा नहीं है. ग्राहक ढूंढे नहीं मिल रहे हैं. दूसरी ओर पटाखा बाजार सजधज के तैयार है.

रस्म निभाने के लिए खरीदे जा रहे हैं पटाखे

बच्चो के लिए खरीददारी कर रही नीलोफर का कहना है कि इस बार वो सिर्फ रस्म पूरी करने के लिए पटाखे खरीद रही हैं, क्योंकि बच्चे जिद कर रहे हैं. उनके मुताबिक पटाखे काफी महंगे हैं और उन महंगे पटाखे से प्रदूषण भी होता है. लिहाजा उन्होंने अपने बच्चों को समझाया और सादगी से दिवाली मनाने के लिए बच्चे राजी हो गए. ऐसे ही एक और शख्स का कहना है कि रायपुर समेत राज्य के कई जिले प्रदूषण से काफी प्रभावित है. इस लिहाज से पटाखों की खरीदी में कटौती करना अच्छा कदम है. वहीं हेमलता चंद्राकर के मुताबिक  इस बार दीप दान की परंपरा पुनर्जीवित हुई है. लोग एक दूसरे को दीप दान कर रहे हैं. यह परंपरा छत्तीसगढ़ में वर्षों पहले लुफ्त हो चुकी है. लेकिन एक बार फिर इस ओर लोगों को बढ़ता देख लोगों को खुशी हो रही है.

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दीप दान पर जोर

ये हाल सिर्फ रायपुर का ही नहीं है, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा ही नजारा है. कोई देवालय और मंदिरों में दीप जला रहा है तो कोई तालाब और नदियों की धारा में दीप दान कर रहा है.  एक दूसरे को भी दीप ज्योति भेट कर लोगों का चेहरा खुशियों से खिल उठा है.

इस पहल से कम होगा प्रदूषण

छत्तीसगढ़ वैसे तो पारम्परिक त्योहारों का राज्य है. यहां तीज त्योहार में पूजा पाठ और यज्ञ हवन की परंपरागत छटा देखने को मिलती है. इसके बावजूद भी रायपुर, दुर्ग, भिलाई , बिलासपुर, रायगढ़ , कोरबा और चांपा जांजगीर ऐसे जिले हैं जहां प्रदूषण का स्तर काफी अधिक है. बिजली घरों और दूसरी औद्योगिग इकाइयों के चलते यहां प्रदूषण का स्तर बजाए कम होने के दिन रात बढ़ रहा है. ऐसे समय पटाखों और प्रदूषण फैलाने वाली दूसरी वस्तुओं को लेकर लोगों के बीच बढ़ी जागरूकता भविष्य में कारगर होती दिख रही है.

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