झरखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के साथ कांग्रेस का गठबंधन नहीं होने से बीजेपी को राहत मिली है. पर ऑल झरखंड स्टुडेंट्स यूनियन (एजेएसयू) जैसी छोटी पार्टी के साथ गठबंधन करके उसने जाहिर किया कि वह कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती. पार्टी में गुटबाजी के चलते भितरघात का खतरा है. अर्जुन मुंडा और रघुवर दास के बीच भी मुख्यमंत्री पद को लेकर होड़ जगजाहिर है.
सूत्रों के अनुसार पहली बार गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग के तौर पर दास का पलड़ा भारी था. लिहाजा मुंडा परेशान थे. इसलिए उन्होंने धनबाद में कहा था कि झरखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) प्रमुख बाबूलाल मरांडी के बीजेपी के साथ आने पर उन्हें नेतृत्व को लेकर परेशानी नहीं होगी. मरांडी बीजेपी के साथ नहीं आए. बेचैन मुंडा ने बीजेपी सरकार में अपने करीबी रह चुके सुदेश महतो की एजेएसयू के साथ गठबंधन करने के लिए पार्टी को मना लिया, ताकि बहुमत न मिलने की स्थिति में गठबंधन के दम पर मुख्यमंत्री का दावा कर सकें. पार्टी नेतृत्व कोई खतरा उठाना नहीं चाहता था, इसलिए राजी हो गया.
दूसरी ओर सुदेश को जेवीएम से बीजेपी में आए अमित महतो से खतरा था. अमित सिल्ली विधानसभा क्षेत्र से लडऩे वाले हैं जहां से सुदेश भी दावेदारी ठोकते हैं. चूंकि बीजेपी की स्थिति बेहतर है और वोट बंटने का खतरा था, सो वे चिंतित थे. लोकसभा चुनाव में भी उन्हें रांची से हार का सामना करना पड़ा था. इसलिए उन्होंने बीजेपी के साथ जाना उचित समझ. गठबंधन से सुदेश की दावेदारी वहां पुख्ता हो जाती पर उन्हें झ्टका लगा है क्योंकि अमित बीजेपी छोड़ जेएमएम में शामिल होकर सिल्ली से उन्हें चुनौती पेश कर रहे हैं.
2009 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 18 तो एजेएसयू ने पांच सीटें जीती थीं. 2012 के उपचुनाव में उसे एक और हटिया सीट मिली. सुदेश ने हटिया सीट बीजेपी को देने में देर नहीं की. वहां से एजेएसयू के विधायक नवीन जायसवाल नाराज होकर जेवीएम में चले गए हैं. गठबंधन को लेकर पार्टी में मतभेद उभरे हैं. लेकिन पार्टी के मुख्य प्रवक्ता देवशरण भगत कहते हैं, ''राज्य के नवनिर्माण और विकास के लिए हमने गठबंधन किया है.ÓÓ गठबंधन को लेकर बीजेपी में भी आक्रोश है. बरकागांव और रामगढ़ की सीटें एजेएसयू को दिए जाने के खिलाफ पार्टी के हजारीबाग जिला कमेटी के सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा कहते हैं, ''कार्यकर्ताओं में थोड़ी नाराजगी है क्योंकि वे सभी 81 सीटों के लिए चुनावी तैयारी कर रहे थे. उन्हें परिस्थितियों से अवगत कराकर मना लिया गया है.ÓÓ एजेएसयू को बेशक बीजेपी की संजीवनी मिल गई है पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी उसका नुक्सान कर सकती है. न तो बीजेपी के कार्यकर्ता उसके लिए मन से काम करेंगे और न ही उसकी पार्टी के नाराज कार्यकर्ता.
राष्ट्रीय स्तर पर बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस को गठबंधन की सख्त जरूरत थी. पार्टी के राज्य प्रभारी बी.के. हरिप्रसाद ने जेएमएम के हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनाव लडऩे की सहमति दी थी. पर कांग्रेस नेताओं को उसकी बजाए अपने हितों के लिए जेडी (यू) और आरजेडी के साथ जाना बेहतर नजर आया. दरअसल उलटफेर की स्थिति में वे भी मुख्यमंत्री या सत्ता की धुरी बनने का सपना देख रहे हैं, कांग्रेस जेएमएम के साथ बड़ा गठबंधन बना सकती थी. इधर जेवीएम ने तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया है.
लोकसभा चुनाव में राज्य की 14 में से 12 सीटों पर दमदार जीत तथा हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सिक्का जमाने के बाद बीजेपी में उत्साह है. उसे कथित सेकुलर दलों में बिखराव का फायदा भी मिल सकता है. पर भितरघात से निबटना चुनौती है.
अभिषेक चौबे