जामिया नगर, दिल्ली. होली फैमिली अस्पताल का इमरजेंसी वार्ड. सारे बेड भरे हुए हैं. जो कुर्सियां लगी हैं, उन पर तीमारदार नहीं, खुद मरीज बैठे हैं. उन्हें बैठे-बैठे ही बोतल चढ़ाई जा रही है. बुखार से उनके बदन टूट रहे हैं, लेकिन वे लेट नहीं सकते. अस्पताल में लगाए गए सारे अतिरिक्त बिस्तर पहले ही भर चुके हैं. बीच में टंगी एक तक्चती पर हाथ से लिखा है—''आइसीयू और सेमी आइसीयू में कोई बिस्तर खाली नहीं है. आपको हुई असुविधा के लिए खेद है.'' डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया के त्रिशूल से पीड़ित दिल्ली इन दिनों कुछ इसी तरह आपका स्वागत कर रही है.
होली फैमिली मिशनरी संस्था का चैरिटेबल हॉस्पिटल है. यह ओखला बैराज के चलते यमुना में बनने वाली बड़ी-सी झील के किनारे वाले इलाके में पड़ता है. यानी यहां का साफ पानी डेंगू और चिकनगुनिया फैलाने वाले एडीज इजिप्टी मच्छर का सबसे बड़ा घर है. दिल्ली में जब-जब वायरल बुखारों का जोर होता है, तो सबसे पहले संकेत इसी इलाके से मिलने शुरू होते हैं. अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. सुंबुल वारसी तस्दीक करते हैं, ''सामान्य दिनों में ओपीडी में 200 से 250 लोग आते हैं. इस समय यह संख्या 500 से ऊपर पहुंच गई है. शनिवार-इतवार में यही तादाद 600 तक पहुंच जाती है.'' ओपीडी में आने वाले 60 फीसदी से ज्यादा मरीज डेंगू और चिकनगुनिया से पीड़ित हैं.
होली फैमिली अगर निजी क्षेत्र का प्रतिष्ठित अस्पताल है, तो संसद के नजदीक केंद्र सरकार के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी मरीजों का तांता लगा है. यहां तो ऐसे दृश्य तक देखने को मिले जहां, बिना तीमारदार के आई एक महिला के एक हाथ में ड्रिप लगी है और दूसरे हाथ से वह बोतल संभाले है. यही सूरते हाल दिल्ली सरकार के लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में दिखा. दोनों अस्पतालों की ओपीडी में मेले की तरह भीड़ है. फर्क बस यह है कि यहां मेले की तरह उत्साह नहीं, दर्द और बेबसी की दास्तां पसरी है. यह दर्द उस वक्त और सालता है, जब एक तरफ तो पड़ोसी मुल्क श्रीलंका को मलेरिया मुक्त घोषित करने की खबर आती है, तो वहीं दूसरी तरफ इसी दिन दिल्ली में मलेरिया से इस साल की दूसरी मौत की रिपोर्ट आती है.
वैसे मौत के आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो दिल्ली की हालत पिछले सालों से खराब नजर नहीं आएगी. बुखार के आधिकारिक आंकड़े भी अभी पिछले सालों से खराब नहीं हुए हैं. दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले रिपोर्ट करने की नोडल एजेंसी दक्षिण दिल्ली नगर निगम से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 3 सितंबर तक दिल्ली में डेंगू के 771 और चिकनगुनिया के 560 मामले दर्ज किए गए. लेकिन बीमारियां अगस्त के अंतिम हक्रते के बाद से कितनी तेजी से बढ़ी हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि पिछले 7 दिन में ही डेंगू के 284 मामले और चिकनगुनिया के 137 मामले दर्ज किए गए. डेंगू के मामले पिछले साल से कम हैं. लेकिन चिकनगुनिया की 10 साल बाद दिल्ली में हुई खौफनाक वापसी ने पीड़ितों के जोड़ चटखा दिए हैं.
दो सौ साल पहले अफ्रीका से शुरू हुई दोनों बीमारियां दिल्ली की स्थायी दहशत बनती जा रही हैं. वैज्ञानिक तथ्य यह है कि ये दोनों ही बुखार एडीज इजिप्टी मादा मच्छर के काटने से फैलते हैं. दोनों वायरल बुखार है. डेंगू में मनुष्य के खून में प्लेटलेट्स की संख्या घटने लगती है. एक स्तर से ज्यादा प्लेटलेट्स घट जाने की स्थिति में अगर तुरंत प्लेटलेट्स न चढ़ाए जाएं तो इनसान की मौत हो सकती है. सामान्य तौर पर सरकारी विज्ञापनों में यही कहा जाता है कि जब तक प्लेटलेट्स की संख्या 10,000 से नीचे न चली जाए, तब तक प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती. लेकिन एक वरिष्ठ डॉक्टर बताते हैं, ''इस तरह की प्रवृत्ति कई बार घातक हो सकती है. ऐसे मामले भी आते हैं जब प्लेटलेट्स की संख्या बहुत कम नहीं होती लेकिन इनसान के दिमाग में इंटरनल ब्लीडिंग होने लगती है. इसलिए समय रहते जांच और इलाज कराने में ही समझदारी है.'' एक अस्पताल में पिछले दिनों एक गर्भवती महिला को भर्ती कराया गया. जांच में पाया गया कि महिला के दिमाग में इंटर्नल ब्लीडिंग हो रही थी, बल्कि उसके गर्भ में पल रहे जुड़वा बच्चों में से एक बच्चे के दिमाग में भी डेंगू के कारण ब्लीडिंग हुई. ऐसे में सिजेरियन पद्धति से जच्चगी कराई गई और जच्चा की जान बच सकी, हालांकि बच्चों को नहीं बचाया जा सका.
डेंगू के साथ दूसरी समस्या यह है कि इसका सबसे ज्यादा शिकार 21 से 30 साल की उम्र के लोग होते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बड़ी उम्र के लोग वायरल या डेंगू का असर किसी न किसी रूप में पहले ही झेल चुके होते हैं. ऐसे में उनकी रोग प्रतिरोधकता जवान लोगों से बेहतर हो जाती है. डेंगू के मरीजों के लिए समय रहते प्लेटलेट्स जुटाना भी कठिन हो जाता है. सामान्य तौर पर ब्लड बैंक या अस्पताल तभी प्लेटलेट्स देता है, जब बदले में उसी ब्लडग्रुप का रक्दान किया जाता है. कई मामले इस तरह के भी सामने आए हैं, जब रक्दान करने गए व्यक्ति को उसी समय पता चलता है कि उसकी प्लेटलेट्स पहले से ही कम हैं.
डेंगू के बारे में आम तजुर्बा तो यही है कि दक्षिण दिल्ली के इलाके इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं. लेकिन इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने पिछले साल जून में प्रकाशित एक शोध पत्र के जरिए यह साबित किया कि दिल्ली पॉश कॉलोनियों की तुलना में आर्थिक रूप से पिछड़े इलाके में डेंगू का लार्वा ज्यादा मिल रहा है. अध्ययन में दिल्ली के 18 इलाकों को शामिल किया गया. इनमें से हाइ इनकम ग्रेड वाले पश्चिम विहार, राजौरी गार्डन, आर.के. पुरम, कीर्ति नगर, वसंत कुंज और मुखर्जी नगर, मध्यम आय वर्ग में बापा नगर, मधु विहार, पालम कॉलोनी, कोटला मुबारकपुर और रानी गार्डन, निम्न आय वर्ग में- मंगोलपुरी, बुद्धविहार, प्रेम नगर (नागलोई), हस्तसाल गांव, जय विहार (नजफगढ़) और संगम विहार को चुना गया. इन इलाकों से 2,408 मादा और 1,206 नर एडीज एजिप्टी मच्छरों को पकड़ा गया. अध्ययन में पाया गया कि एचआइजी इलाकों में मच्छरों में मिनिमम इन्फेक्शन रेट (एमआइआर) 1.3, मध्यम एमआइजी कॉलोनी में एमआइआर 6.2 और एलआइजी कॉलोनी में एमआइआर 9.8 था. यह शोध इंगित करता है कि डेंगू का सीधा संबंध साफ-सफाई से है. अगर सरकार गरीब इलाकों की सफाई पर ज्यादा ध्यान दे तो डेंगू की बेहतर रोकथाम हो सकती है.
दूसरी तरफ चिकनगुनिया डेंगू की तरह जानलेवा नहीं है, लेकिन इसमें तेज बुखार और शरीर में बहुत ज्यादा दर्द होता है. बीमारी की पहचान के लिए होने वाले सेरोलॉजी जांच में अक्सर बीमारी पकड़ में नहीं आती. वहीं आरजी पीसीआर जांच के लिए प्राइवेट अस्पतालों में चार-पांच हजार रु. तक फीस देनी पड़ती है. सिर्फ जांच के लिए यह खासी बड़ी रकम है. डेंगू और चिकनगुनिया की महंगी जांचों को देखते हुए दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र कुमार जैन ने निर्देश दिया, ''निजी अस्पताल और लैब को निर्देश दिए गए हैं कि डेंगू और चिकनगुनिया की जांच 600 रु. में की जाए. चिकनगुनिया की आरटी-पीसीआर जांच अधिकतम 1,500 रु. में की जाए.'
वैसे सरकारों ने और भी काम किए हैं, जैसे अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद 2015-16 के बजट में दिल्ली में स्वास्थ्य का बजट 45 फीसदी बढ़ाया गया. इस तरह बजट 2,724 करोड़ रु. से बढ़कर 4,787 करोड़ रु. हो गया. इसके बाद इस साल बजट में स्वास्थ्य का बजट बढ़ाकर 5,259 करोड़ रु. कर दिया गया. केजरीवाल सरकार ने दो साल में 1,800 बिस्तर क्षमता के नए अस्पताल बनाने और मौजूदा अस्पतालों में 4,000 बेड की क्षमता बढ़ाने का वादा किया है. पिछले बजट में भी बिस्तर बढ़ाने की बात कही गई थी. हालांकि, दिल्ली सरकार ने साफ शब्दों में यह नहीं बताया है कि अब तक उसने दिल्ली सरकार के अस्पतालों में कितने बेड बढ़ा दिए हैं. ये बेड डेंगू-चिकनगुनिया के मरीजों को समाने के लिए नाकाफी क्यों साबित हो रहे हैं?
वैसे फौरी उपाय करते हुए दिल्ली सरकार ने 28 जुलाई को एडवाइजरी जारी कर निजी अस्पतालों को अस्थायी रूप से 10 से 20 फीसदी तक बेड बढ़ाने की इजाजत दे दी थी. दिल्ली में जिन दिनों दोनों बीमारियां अपने चरम की तरफ बढ़ीं उस दौरान स्वास्थ्य मंत्री जैन वैटिकन सिटी में मदर टेरेसा को संत की उपाधि देने वाले कार्यक्रम में शिरकत करने गए थे.
उधर, देश में स्मार्ट शहरों की झड़ी लगाने का वादा करने वाली केंद्र सरकार देश की सबसे पुरानी स्मार्ट सिटी को संभालने के लिए क्या कर पाई, इस पर भी नजर जाएगी. तो देश के स्वास्थ्य मंत्री जे. पी. नड्डा भी इन दिनों श्रीलंका गए हुए हैं. उनकी गैर मौजूदगी में केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सी. के. मिश्रा ने इंडिया टुडे को बताया, ''इस वक्त डेंगू और चिकनगुनिया का सबसे ज्यादा प्रकोप पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और दिल्ली राज्यों में है. केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों के संपर्क में है. वेक्टर नियंत्रण, जागरूकता अभियान और अस्पतालों की बेहतर व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.'' केंद्र सरकार अस्पताल और मोबाइल क्लीनिक में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करा रही है. इस संबंध में दिल्ली सरकार भी अपने स्तर पर प्रयास कर रही है.
लेकिन जो बात स्वास्थ्य सचिव नहीं कह पा रहे हैं, वह बात मंत्रालय एक ही अन्य वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ''दिल्ली सरकार को जनवरी से ही इस बारे में मंत्रालय से कई पत्र भेजे जा चुके हैं. इसमें दिल्ली में डेंगू के मच्छर पनपने से रोकने के तत्काल उपाय करने के साथ ही अस्पतालों के इंतजाम दुरुस्त रखने की बात कही गई. ये काम दिल्ली सरकार और नगर निगम के सहयोग से होने थे. लेकिन दिल्ली सरकार नगर निगम को अपना मानती ही नहीं है. दिल्ली की मौजूदा अव्यवस्था के पीछे दिल्ली सरकार और नगर निगम की तनातनी की भी बड़ी भूमिका है.'' जैन एक बयान में कह भी चुके हैं, ''नगर निगम डेंगू और चिकनगुनिया से लडऩे में कोई काम नहीं कर रहा है.'' वैसे निगम की कहानी और दिलचस्प है. दिल्ली में एफएम रेडियो पर विज्ञापन में नगर निगम के प्रमुख लोग शिकायत करते हैं, ''निगम के कर्मचारी घरों में मच्छर और लार्वा की जांच करने जाते हैं, तो बहुत-से लोग उनका सहयोग नहीं करते. अगर आप उन्हें घर में नहीं आने देंगे तो डेंगू से लड़ाई अधूरी रह जाएगी.'
परस्पर आरोपों का सिलसिला कहीं थमता नजर नहीं आता. और शायद इसीलिए कई साल से दिल्ली में डेंगू का कहर भी कम होता नजर नहीं आता. तो क्यों न विवाद छोड़कर, अब श्रीलंका से ही सबक लेते हुए हर साल आने वाली इन बीमारियों से मुक्ति का अभियान चलाया जाए. यह नामुमकिन नहीं है, हम पोलियो में यह कर चुके हैं.
पीयूष बबेले