दिल्ली हाईकोर्ट में आरटीई (राइट टू एजुकेशन) एक्ट और उसके लागू होने में विरोधाभास को लेकर एक जनहित याचिका दाखिल की गई है. सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार और मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय को नोटिस जारी किया है. साथ ही हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को याचिकाकर्ता से 11 जुलाई को मिलकर आरटीई एक्ट में संशोधन को लेकर मिलने के भी निर्देश दिए हैं.
HC का आदेश- प्रभावित ना हो बच्चों की पढ़ाई
हाई कोर्ट ने कहा कि बच्चों की शिक्षा को लेकर किसी भी स्तर पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता. सरकारों को ये सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह की स्थिति से बच्चों की पढ़ाई पर कोई असर ना पड़े और साथ ही गरीब अभिभावक अपने बच्चों की पढ़ाई छोड़वाने के लिए मजबूर ना हो.
खुद कई खर्च उठा रहे हैं अभिभावक
जनहित याचिका में कहा गया है कि आरटीई एक्ट के तहत साफ निर्देश है कि बच्चों की पढ़ाई से जुड़े सभी खर्च सरकार और स्कूल मिलकर उठाएगें, लेकिन इसके बावजूद पढ़ाई के खर्चों में सिर्फ स्कूल की फीस, यूनिफॉर्म या किताबें ही मुश्किल से मिल पाती हैं. याचिका में कहा गया है कि आरटीई रूल में कहीं भी पढ़ाई के बाकी खर्चों जैसे ट्रांसपोर्ट, स्कूल प्रोजेक्ट से जुड़े खर्च, दिव्यांग बच्चों के लिए स्कूल जाने के जरूरी सामान से लेकर दिव्यांग बच्चों की जरूरतों का खर्च उठाने का कहीं जिक्र नहीं है, जिसकी वजह से गरीब लोगों को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कई खर्च खुद उठाने पड़ते हैं, जबकि आरटीई एक्ट में अभिभावकों को सिर्फ बच्चों को स्कूल भेजने की जिम्मेदारी है, खर्च उठाने की नहीं.
31 अगस्त को होगी अगली सुनवाई
फिलहाल इस मामले में अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी. याचिकाकर्ता का कहना है कि आरटीई के रूल में जिन सुविधाओं को दिया गया है, सरकार और स्कूल वो भी मुहैया नहीं करा पा रहे हैं. ऐसे में आरटीई का फायदा उस वर्ग के बच्चों को मिल ही नहीं पा रहा है, जो इसके हकदार हैं. लिहाजा आरटीई को सही से लागू कराने के लिए सरकार और स्कूलों के बीच फंड को लेकर चलने वाली तनातनी को रोकने की जरूरत है. हाई कोर्ट फिलहाल दिल्ली सरकार के जवाब का इंतजार कर रहा है क्योंकि उसके बाद ही कोर्ट एचआरडी मिनिस्ट्री और केंद्र सरकार का रुख देखेगा.
पूनम शर्मा / सुरभि गुप्ता