दिल्ली में 1 जनवरी से लागू हो रहे ऑड-इवन फॉर्मूले के लिए सरकार ने 6000 बसों को जुटाने का दावा किया था. इसके लिए सरकार ने 26 दिसंबर तक का समय दिया था पर प्राइवेट बस मालिक इस योजना पर बेहद कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं. आलम ये है कि 2 दिन से भी कम वक्त बचा है और अभी तक टार्गेट का 50 प्रतिशत भी काम नहीं हुआ है. 6000 में से बुधवार तक 905 प्राईवेट बसें ही रजिस्टर्ड हुईं.
समस्या आ रही हैं सामने
ऐसा करने के पीछे कई समस्याएं आ रही हैं. जैसे- सबसे बड़ी समस्या है कि पेमेंट तक अपनी जेब से पैसे लगाने होंगे. यह फॉर्मूला अभी 15 दिनों के लिए है ऐसे में कोई अपना पुराना कांट्रैक्ट छोड़कर महज 15 दिन के लिए बस नहीं लगाना चाहता. कई बसों में पीछे गेट भी नहीं है. और लक्जरी बसों को सामाजिक परिवहन में नहीं देना चाहते.
अभी तक सरकार को जितनी सफलता की उम्मीद थी उतनी सफल ये योजना अभी तक नहीं दिख रही है. 27 तारीख से ट्रायल शुरू होना है. हालांकि कुछ बस यूनियन सरकार का समर्थन भी करते हुए बस मालिकों से इस योजना में जुड़ने के लिए अपील भी कर रही है. सरकार ने कई एसोसिएशन को तो अपने साथ जोड़ लिया है.
नहीं मिल रहीं स्कूल बसें
सरकार को इस फॉर्मूले को लागू करने के लिए स्कूल बसों की भी जरूरत है लेकिन कई स्कूल बस देने को तैयार नही दिख रहे, वहीं प्राईवेट बस मालिक भी अपनी बसें देने में दिलचस्पी नही दिखा रहे. वकील और स्कूली मामलों के जानकार का कहना है कि स्कूलों से बस मांगना कई नियमों और एक्ट का उल्लंघन है. सर्दियों की छुट्टी के दौरान कई स्कूलो में विंटर एक्टिविटीज होती है जिनमे स्कूल बसों का इस्तेमाल होता है. स्कूल एक्ट कहता है कि स्कूल की संपत्तियों को कमर्शियल एक्टिविटीज के तौर पर इस्तेमाल नही कर सकते है. बस स्कूल की संपत्ति है. बसों के बीमा में ये क्लॉज होता है कि बस केवल स्कूली बच्चो को लाने ले जाने में इस्तेमाल होनी चाहिए नही तो बीमा एक्ट का उल्लंघन होगा. स्कूली बसों के रजिस्ट्रेशन के समय रोड टैक्स में छूट मिलती है जबकि कमर्शियल बसो का टैक्स अलग होता है.
यानि अब जो कुछ सरकार को करना है वो एक हफ्ते से भी कम समय में करना है. क्योंकि एक तारीख से हो सकता है लाखों लोग बस और दूसरे परिवहन से जाने की योजना बना रहे हो.
लव रघुवंशी