केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर दिल्ली में नॉन मोटरेबल जोन बनाने की बात कही थी. उनका कहना था कि दिल्ली में गाड़ियों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है और सरकारों को इस पर गम्भीरता से विचार करना पड़ेगा. वैंकेया ने भले ही दिल्ली में नॉन मोटरेबल जोन बनाने की वकालत की है लेकिन क्या दिल्लीवाले इसके लिए तैयार हैं? यही जानने के लिए हमने दिल्ली के अलग अलग इलाकों में जाकर पड़ताल की. पढ़ें खास रिपोर्ट...
लाजपत नगर मार्केट
शुरुआत हमने साउथ दिल्ली के सबसे ज्यादा भीड़भाड़ वाले बाजार लाजपत नगर से की. यहां रोजाना हज़ारों लोग अपने निजी वाहनों से आते तो हैं लेकिन पार्किंग न मिलने के कारण गाड़ियों को सड़क पर ही पार्क कर दिया जाता है. इसकी वजह से यहां रोजाना जाम लगता है. इसके बावजूद यहां कार से आने वालों का बोलना है कि वे नॉन मोटरेबल जोन के पक्ष में नहीं है. वे किसी भी कीमत पर कार से बाजार आना नही छोड़ेंगे.
वे कहते हैं कि खरीददारी के बाद सामान ले जाने में आसानी होती है तो वहीं कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिनको खरीदने के बाद मेट्रो में एंट्री नही मिलती.
कार से आने वाले लोग तो वैसे ही नॉन मोटरेबल जोन के पक्ष में नहीं हैं. वहीं लाजपत नगर में व्यवसाय करने वालों की मानें तो इससे उनका बिजनेस प्रभावित होगा. लाजपत नगर मार्केट असोसिएशन के श्याम सुंदर की मानें तो इस मार्केट में ग्राहक दूर-दूर से आते हैं और उनमें से ज्यादातर कार वाले होते हैं. ऐसे लोग मेट्रो में सफर पसंद नहीं करते.
कमला नगर मार्केट
ऐसा नहीं है कि लाजपत नगर अकेली जगह है. उत्तरी दिल्ली में स्टूडेंट्स की पहली पसंद कमला नगर मार्केट में भी व्यापारियों से लेकर ग्राहक तक सभी नॉन मोटरेबल जोन से इत्तेफाक नही रखते. व्यापारियों और ग्राहकों की यहां अपनी-अपनी परेशानी है. इस बाजार में लगभग 5 हजार दुकानें हैं. छोटी दुकानों से लेकर ब्रांडेड शोरूम हैं. लगभग 50 हजार लोग रोजाना कमला नगर मार्केट आते हैं. इस मार्केट में जहां भी नज़र दौड़ाइए आपको वहां गाड़ियां ही गाड़ियां नज़र आएंगी. इसके बावजूद खरीददारी के लिए आने वाले कार से ही मार्केट आना पसन्द करते हैं. उनकी माने तो इस मार्किट में मेट्रो से आना-जाना मुश्किल है.
यहां से सबसे नजदीकी मेट्रो स्टेशन भी कई किलोमीटर दूर है.
यहां के व्यापारियों की मांग है कि यहां पार्किंग की व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए. वे कहते हैं कि एमसीडी द्वारा बनाई गई मल्टीलेवल पार्किंग में बेहद कम गाड़ियां खड़ी हो पाती हैं. मार्केट में रोजाना हजारों की संख्या में कारें आती हैं लेकिन एमसीडी की मल्टीलेवल पार्किंग में सिर्फ 827 कारें ही पार्क की जा सकती हैं.
कनॉट प्लेस
दिल्ली में नॉन मोटरेबल जोन का ख्याल आने पर जहन में सबसे पहले नाम कनॉट प्लेस का ही आता है. यहां हर बार नॉन मोटरेबल जोन का विरोध हुआ है. नई दिल्ली या सेंट्रल दिल्ली में जाने के लिए भी कनॉट प्लेस से होकर ही गुजरना पड़ता है. लिहाजा यहां हर वक्त गाड़ियों का दबाव होता है. इस पूरे इलाके को नॉन मोटरेबल न किए जाने के पीछे यहां के कस्टमर जिम्मेदार हैं. कनॉट प्लेस के व्यापारियों की मानें तो उनके पास 90% हाई एन्ड कस्टमर हैं. यानी वे ग्राहक जो कि बड़े और बेहतर आर्थिक बैकग्राउंड से आते हैं. जाहिर है ये कि सभी ग्राहक कारों से आते हैं. इनमें से कई बड़े नेता, फिल्म स्टार या खेल जगत की मशहूर हस्तियां हैं जो कनॉट प्लेस में शॉपिंग करती हैं. ऐसे में यहां गाड़ियों का बन्द होना सीधे-सीधे इनके व्यवसाय पर असर डालेगा.
कनॉट प्लेस के व्यापारियों के मुताबिक 1994 में सबसे पहले कनॉट प्लेस को नॉन मोटरेबल बनाने की योजना लाई गई थी लेकिन तब भी उसका विरोध हुआ था. इस साल जनवरी में भी NDMC ने कनॉट प्लेस के इनर सर्कल को नॉन मोटरेबल जोन बनाने का कहा था तब भी व्यापारियों ने इसका विरोध किया और फरवरी में व्यापारियों ने विरोधस्वरूप अपनी दुकानों को एक दिन के लिये बन्द रखा.
व्यापारियों का तर्क है कि कनॉट प्लेस में लोग ना सिर्फ शॉपिंग बल्कि रेस्टोरेंट में खाने भी आते हैं और देर रात तक यहां रेस्टोरेंट खुले रहते हैं. ऐसे में रात के वक़्त कोई कैसे कनॉट प्लेस से अपनी कार तक जाएगा.
व्यापारियों के मुताबिक कनॉट प्लेस में ना तो पैदल चलने वालों के लिए जगह की कमी है और न ही हरियाली की. ऐसे में बार बार नॉन मोटरेबल जोन के लिए कनॉट प्लेस की बजाय सिविक एजेंसियों को दूसरी जगहों के बारे में सोचना चाहिए जहां पैदल चलने वालों को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
व्यापारियों और कार चालकों की माने तो दिल्ली नॉन मोटरेबल जोन के पक्ष में नहीं है लेकिन दिल्ली को और दिल्ली की बसाहट को करीब से जानने वाले विशेषज्ञ बताते हैं कि इसमें तकनीकी पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. डीडीए के पूर्व प्लानिंग कमिश्नर ए.के. जैन के मुताबिक पिछले कुछ सालों में दिल्ली की आबादी तो तेजी से बढ़ी लेकिन गाड़ियों की संख्या भी तेजी से बढ़ जाने के कारण दिल्ली पर दोतरफा दबाव बन रहा है. पहला आबादी का और दूसरा प्रदूषण का.
इसको रोकने के लिए सबसे अहम किरदार पब्लिक ट्रांसपोर्ट का होना चाहिए. उसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है और यही इस समस्या की बड़ी वजह है. ए.के.जैन बताते हैं कि दिल्ली में मेट्रो तो है लेकिन बसों की जरूरत ज्यादा है. पहले जहां 60 फीसदी से ज्यादा लोग बस इस्तेमाल करते थे तो वही ये प्रतिशत अब घट कर 40 फीसदी के आसपास रह गया है.
रवीश पाल सिंह