जानें, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में...

हमारे देश में शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के वीरता की कहानियां न सुनी हों. उनके शहादत के मौके पर जानिए उनके बारे में सबकुछ...

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Laxmi Bai Laxmi Bai

वंदना भारती

  • नई दिल्‍ली,
  • 18 जून 2016,
  • अपडेटेड 2:37 PM IST

साल 1858 में जून का 17वां दिन था जब खूब लड़ी मर्दानी, अपनी मातृभूमि के लिए जान देने से भी पीछे नहीं हटी. 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी' अदम्य साहस के साथ बोला गया यह वाक्य बचपन से लेकर अब तक हमारे साथ है. उनके शहादत 18 जून के मौके पर आइए जानते हैं रानी लक्ष्मीबाई के बारे में.

क्या था बनारस से लक्ष्मीबाई का रिश्ता...
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को बनारस के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ. उन्हें मणिकर्णिका नाम दिया गया और घर में मनु कहकर बुलाया गया. 4 बरस की थीं, जब मां गुजर गईं. पिता मोरोपंत तांबे बिठूर जिले के पेशवा के यहां काम करते थे और पेशवा ने उन्हें अपनी बेटी की तरह पाला. प्यार से नाम दिया छबीली

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झांसी की ओर बढ़े कदम...
मणिकर्णिका का ब्याह झांसी के महाराजा राजा गंगाधर राव नेवलकर से हुआ और देवी लक्ष्मी पर उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा. बेटे को जन्म दिया, लेकिन 4 माह का होते ही उसका निधन हो गया. राजा गंगाधर ने अपने चचेरे भाई का बच्चा गोद लिया और उसे दामोदार राव नाम दिया गया.

संकट की बरसात...
राजा का देहांत होते ही अंग्रेज़ों ने चाल चली और लॉर्ड डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य के पैर पसारने के लिए झांसी की बदकिस्मती का फायदा उठाने की कोशिश की. अंग्रेजों ने दामोदर को झांसी के राजा का उत्तराधिकारी स्वीकार करने से इनकार कर दिया. झांसी की रानी को सालाना 60000 रुपए पेंशन लेने और झांसी का किला खाली कर चले जाने के लिए कहा गया.

रानी से मर्दानी तक...
झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने बागियों की फौज तैयार करने का फैसला किया. उन्हें गुलाम गौस ख़ान, दोस्त ख़ान, खुदा बख्‍़श, सुंदर-मुंदर, काशी बाई, लाला भऊ बख्‍़शी, मोती भाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह से मदद मिली. 1857 की बगावत ने अंग्रेजों का फोकस बदला और झांसी में रानी ने 14000 बागियों की सेना तैयार की.

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जब झांसी बना मैदान-ए-जंग..
रानी लक्ष्मीबाई, अंग्रेजों से भिड़ना नहीं चाहती थीं लेकिन सर ह्यूज रोज की अगुवाई में जब अंग्रेज सैनिकों ने हमला बोला, तो कोई और विकल्प नहीं बचा. रानी को अपने बेटे के साथ रात के अंधेरे में भागना पड़ा.

ग्वालियर के फूल बाग इलाके में मौजूद उनकी समाधि आज भी मर्दानी की कहानी बयां कर रही है. हम सभी ने लक्ष्मीबाई की कहानी सुनी है, लेकिन सुभद्राकुमारी चौहान ने अपनी कलम के जरिए उनकी जो बहादुरी हमारे सामने रखी, उसकी मिसाल दूसरी कोई नहीं.

सौजन्य: NEWSFLICKS

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