डेविड हेडलीः नापाक मंसूबे बेनकाब

मुंबई में 26/11 के षड्यंत्रकारी डेविड हेडली ने लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ की भूमिका का खुलासा किया. हेडली के कबूलनामे से पाकिस्तान बेनकाब हो गया और भारत का पक्ष मजबूत हुआ है.

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संदीप उन्नीथन

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  • 19 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 9:54 AM IST

कभी वापस न आने के लिए शिकागो की एक उड़ान में सवार होने के तकरीबन सात साल बाद डेविड कोलमैन हेडली मुंबई लौटा. हालांकि इस बार वह आधी दुनिया को पार करके आए वीडियो सिग्नलों के मार्फत उसी शहर की एक सत्र अदालत के खचाखच भरे कमरे में लौटा था, जहां उसने 26 नवंबर 2008 के आतंकी हमलों के दौरान 166 लोगों के कत्लेआम की साजिश रचने में हाथ बंटाया था.

धूसर रंग का ढीला-ढाला स्वेटर पहने 55 बरस की उम्र का यह सजायाफ्ता तीन अमेरिकी अफसरों से घिरा था. उसने 8 फरवरी से एक हफ्ते तक शांति के साथ अदालत के सामने 26/11 की साजिश की परतें एक-एक कर उधेड़ीं. हेडली के प्रत्यर्पण की भारत सरकार की कोशिशों पर तब विराम लग गया था, जब अमेरिका की एक अदालत ने 2013 में उसे आतंकी कार्रवाइयों के लिए 35 साल की कैद की सजा सुनाई थी.
पिछले दिसंबर में 26/11 के षड्यंत्रकारी अबु जुंदाल के खिलाफ चल रहे मुकदमे में उसके गवाह बनने के नतीजे के तौर पर यह वीडियो लिंक ही सबसे नजदीकी जरिया था, जिससे भारत की कानूनी व्यवस्था उस तक पहुंच सकती थी. हेडली ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया और एक सुई की मानिंद 26/11 की साजिश के तमाम लापता धागों को जोड़कर जल्दी ही पूरा लिहाफ बुन दिया. उसके बुने इस लिहाफ में फौजी अफसरों और कट्टर दहशतगर्दों के पैबंद लगे थे, जिन्हें पाकिस्तान की चुनी हुई सत्ता के ऊपर काबिज असल रहस्यमयी सत्ता की भारत के खिलाफ खत्म न होने वाली जंग छेडऩे की अजीबोगरीब मजबूरियों ने आपस में जोड़ रखा था. उसने अपनी गवाही में जिन नामों का खुलासा किया&आइएसआइ के भीतर उसका “हैंडलर” मेजर इकबाल और जकी-उर-रहमान लखवी का “हैंडलर” ब्रिगेडियर रियाज&उनका जिक्र पहले भी आया था, जब 2010 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) के पुलिस अफसरों ने शिकागो में उससे हफ्ते भर तक पूछताछ की थी. लेकिन इससे पहले ये बयान न तो शपथ लेकर गवाही के दौरान दिए गए थे और न ही खुली अदालत में दिए गए थे. यही वजह है कि विशेष सरकारी वकील उज्ज्वल निकम को भरोसा है कि इन बयानों से 26/11 के मुकदमे में मजबूती आएगी और पुलिस अपनी जांच को और आगे बढ़ा पाएगी.

अमेरिका में एक गुप्त जगह से विशेष जज जी.ए. सनप की अदालत में 52 इंच के फ्लैट स्क्रीन एलसीडी टीवी मॉनिटर पर प्रसारित हेडली की गवाही ट्रायल कोर्ट से उसे माफी दिए जाने के बदले में मुमकिन हुई थी. यह किसी भी दूसरी गवाही की तरह नहीं थी. हेडली का एलसीडी मॉनिटर अदालत के कमरे के दाहिने कोने में इस तरह लगा था कि उसके ठीक सामने ठीक उसी की तरह लगी एक दूसरी एलसीडी स्क्रीन पर मुंबई पुलिस के एक कॉन्स्टेबल की बगल में अनमना-सा जुंदाल दिखाई दे रहा था. जुंदाल हिंदुस्तानी नागरिक था जिसे 2011 में सऊदी अरब से लाया गया था. उसने कराची में लश्कर के कंट्रोल रूम की हिफाजत की पनाह में छिपकर उन दो दहशतगर्दों को रास्ता दिखाया था, जिन्होंने नरीमन हाउस पर हमला किया था. विडंबना यह थी कि जुर्म में उसके तत्कालीन साझेदार के साथ जुंदाल का यह इलेक्ट्रॉनिक आमना-सामना अब उसकी सुरक्षा को लेकर फिक्र की वजह से करवाया जा रहा था.

रहस्यमयी सत्ता
अपनी छह घंटे लंबी चली गवाही में हेडली ने तफसील से बताया कि किस तरह लश्कर-ए-तैयबा सरीखे तथाकथित “गैर-सरकारी किरदार” पाकिस्तान की रहस्मयी सत्ता, खासकर उसके कई सिरों वाली इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस (आइएसआइ) के साथ गहराई से जुड़े हुए थे. लश्कर के हाथों अंजाम दिए गए 26/11 के कत्लेआम की योजना मुकम्मल ढंग से इस तरह बनाई गई थी, ताकि उससे “भरोसेमंद तरीके से इनकार” किया जा सके और कोई सुराग उसके मुजरिमों के गिरेबान तक न पहुंच सके. यह हमला भारी हथियारों से लैस 10 आतंकियों ने किया था जो हमले में मारे गए, लेकिन उन्होंने भारत के सिम कार्डों का इस्तेमाल किया और वे ऐसे आइडी कार्ड लिए हुए थे, जिनमें उनकी पहचान हैदराबाद कॉलेज के छात्रों के तौर पर बताई गई थी. लेकिन शुक्र है 26/11 की रात अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया और 2009 के बीतते-बीतते हेडली भी गिरफ्तार हो गया, वरना जांच अंधे मुहाने पर जाकर खत्म हो जाती. हेडली की गवाही में अब आइएसआइ के चार सेवारत अफसरों का नाम आया है&ब्रिगेडियर रियाज, मेजर समीर अली, लेफ्टिनेंट कर्नल हमजा और मेजर इकबाल. उसकी गवाही ने अब पाकिस्तान सेना को 26/11 की मुंबई साजिश से सीधे-सीधे जोड़ दिया है. (भारतीय खुफिया अफसर मानते हैं कि आइएसआइ के आदमियों ने फर्जी नामों का इस्तेमाल किया हो सकता है). हेडली की गवाही में इन अफसरों का नाम हैंडलर या अफसरों की तौर पर लिया गया है, जिन्होंने आइएसआइ और लश्कर के लिए बिचौलियों के तौर पर देखरेख की या काम किया. हेडली के मुताबिक, लश्कर के हरेक कर्ताधर्ता का, यहां तक कि उसके सुप्रीमो हाफिज मुहम्मद सईद का भी, एक आइएसआइ हैंडलर था. इस तरह इस इनकार की अब रही-सही धज्जियां भी उड़ गई हैं कि मुंबई हमलों के बारे में पाकिस्तान सेना पूरी तरह अंधकार में थी.

लश्कर ने साफ तौर मुंबई पर हमला करने की ठान रखी थी. यह साजिश 2006 में रची गई. यह वह साल था जब हेडली ने अपना नाम बदला था और अपनी मारक रेकी शुरू करने के लिए मुंबई में दाखिल हुआ था. पता नहीं क्यों, लश्कर के सिर पर ताज महल होटल पर हमला करने का खब्त सवार था. 2007 में उन्होंने हेडली की रेकी के वीडियो का इस्तेमाल करके पाकिस्तान के भीतर होटल की एक नकल तैयार की थी. उन्होंने रक्षा वैज्ञानिकों के जमावड़े पर हमला करने की योजना बनाई थी, जो वहां सम्मेलन करने वाले थे. यह धड़ा शहर पर हमला करने पर किस कदर आमादा यह था, यह तब पता चला जब हेडली ने खुलासा किया कि उन्होंने अगस्त 2008 में इन्हीं 10 दहशतगर्दों के गुट को शहर में घुसाने की दो नाकाम कोशिशें की थीं. विशेष सरकारी वकील निकम कहते हैं, “यह साफ है कि लश्कर और आइएसआइ के बीच नजदीकी साठगांठ है.” कितनी नजदीकी है यह साठगांठ, यह हेडली की आगे की गवाही से साफ हो गया.

उसकी गवाही बताती है कि लश्कर की अगुआई करने वाली जमात में आइएसआइ की जबरदस्त दखल और घुसपैठ है. इसीलिए वहां ब्रिगेडियर रियाज थे, जो लश्कर के मिलिटरी कमांडर जकी-उर-रहमान को संभालते थे; मेजर इकबाल थे, जो आइएसआइ में हेडली के हैंडलर थे; और इकबाल के बॉस लेफ्टिनेंट हमजा थे. माना जाता है कि ये तमाम अफसर आइएसआइ की रहस्यमयी “एस” ब्रांच के हैं, जो दहशतगर्दों के धड़ों को संभालती है और एजेंसी की सीमापार कार्रवाइयों को नियंत्रित करती है.

एक रईस अमेरिकी महिला एलिस सेरिल हेडली और पाकिस्तानी शायर तथा राजनयिक सईद सलीम गिलानी का बेटा आखिर कैसे पाकिस्तान की रहस्यमयी सत्ता की तिकड़मों के फेर में पड़ गया और उनका सक्रिय साझेदार बन गया, यह असल जिंदगी की किसी रोमांचक कहानी का मसाला हो सकता है. दाऊद गिलानी की शक्ल में पैदा हुए हेडली का बचपन तकलीफजदा था. अटक के कैडेट कॉलेज हसन अब्दाल में उसकी पढ़ाई हुई. 1980 के दशक में उसने अफगानिस्तान-पाकिस्तान के “गोल्डन क्रिसेंट” से हेरोइन की तस्करी की. विदेशों में कई बार जेलों की हवा खाने के बाद वह 1990 के दशक के आखिरी साल में किसी वक्त अमेरिका के ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के एजेंट के तौर पर पाकिस्तान लौटा. पाकिस्तान के आतंकी धड़ों के साथ उसकी नजदीकी 2002 के आसपास शुरू हुई, जब 9/11 के हमलों के बाद वह लश्कर और अल कायदा के बारे में जानकारियां इकट्ठा करने लगा. उसने लश्कर के पैदल सिपाही के तौर प्रशिक्षण हासिल किया और यहां तक कि कश्मीर में लडऩे जाने की भी पेशकश की. मगर उसकी उम्र की वजह से यह पेशकश मंजूर नहीं हुई.

जो चीज हेडली को 26/11 के हमलों का रोजेटा स्टोन बना देती है, वह इस साजिश के भीतर उसका अनोखा मुकाम है. उसने आइएसआइ, लश्कर और बाद में यहां तक कि अल कायदा सहित कई चकराने वाले किरदारों के साथ काम किया है. वह असली डबल एजेंट था, जिसने 2006 में लश्कर के हुक्म पर अपना नाम बदल लिया. उसने अपने नाम में अपनी मां का कुलनाम रखा, ताकि वह मुंबई में गोपनीय तौर पर एक अमेरिकी कारोबारी के रूप में रह सके और उन जगहों की सावधानी से शिनाख्त कर सके, जहां वह हमले करना चाहता था&ताज महल होटल, नरीमन पॉइंट, ओबेरॉय होटल. 2006 और 2008 के बीच उसने अपने हैंडलरों और आइएसआइ के अफसरों से मिलने और उन्हें रेकी की तस्वीरें और वीडियो सौंपने के लिए मुंबई और पाकिस्तान की आठ यात्राएं कीं.

भारत के विकल्प
हेडली का कबूलनामा ऐसे समय आया है जब सरकार 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाहौर दौरे से पैदा हुई खुशी को 2 जनवरी को पठानकोट में वायु सेना के अड्डे पर आतंकी हमले के बाद उडऩछू होते देख चुकी थी. उस हमले में भारतीय सैन्य बलों के छह जवान मारे गए थे और उसके बाद दोनों देशों के बीच सचिव स्तर की बातचीत टल गई थी. भारत ने इस बातचीत को पठानकोट हमले के दोषियों के खिलाफ पाकिस्तान की कार्रवाई से जोड़ दिया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, “गेंद अब पाकिस्तान के पाले में है. अब तात्कालिक मुद्दा यह है कि पाकिस्तान पठानकोट हमले पर क्या कदम उठाता है और दी गई पुख्ता खुफिया जानकारियों पर क्या करता है.”
मुंबई आतंकी हमले के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे एम.के. नारायणन पूछते हैं, “बाद में जो कुछ हुआ (हेडली का बयान), क्या मोदी अब पाकिस्तान के साथ बातचीत कर सकते हैं. अगर देश का जनमानस आपके साथ नहीं है तो आप किस मुंह से पाकिस्तान के साथ बातचीत कर सकते हैं?”

पठानकोट हमले की जांच एनआइए कर रही है, जिसने स्थापित कर दिया है कि हमला करने वाले पाकिस्तान से आए थे, ठीक उन हमलावरों की तरह जिन्होंने पिछले साल जून में गुरदासपुर में एक पुलिस थाने पर हमला किया था या उन दो आतंकियों की तरह जिन्होंने अगस्त के महीने में जम्मू में बीएसएफ के काफिले को निशाना बनाया था. सरकार ने संकेत दिया है कि वह हेडली के बयानों के आधार पर जल्दी ही पाकिस्तान को एक नया डोजियर भेजेगी. क्या वास्तव में इससे कोई फर्क पड़ेगा, जबकि पाकिस्तान को भेजे गए ढेरों डोजियरों को अभी देखा जाना बाकी है? खासकर इसलिए कि पाकिस्तानी सेना अब भी अपना हुक्म चलाती है और लगता नहीं है कि वह अपनी देखरेख में चल रही आतंक की मशीन को रोकने वाली है.

आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञ और वाशिंगटन में ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन में सीनियर फेलो ब्रुस रीडेल कहते हैं, “हेडली के इस बयान में कुछ नया नहीं है कि मुंबई हमलों की योजना के पीछे आइएसआइ का हाथ था, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि पाकिस्तानी सेना अब भी आतंकवादियों को संरक्षण देती है.”

मोदी सरकार को तब काफी निराशा हुई थी जब लश्कर के कमांडर लखवी को पिछले साल अप्रैल में जमानत पर जेल से रिहा कर दिया गया था, और 2009 में शुरू हुआ मुकदमा टांय-टांय फिस्स हो गया था. मोदी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ कई बार इस मुद्दे को उठा चुके हैं. पाकिस्तान ने कहा है कि उसे 26/11 हमलों पर अभी और “जानकारियों और सबूतों की जरूरत” है.

26/11 हमले के तीन समांतर मुकदमों&अमेरिका में 2013 का मुकदमा जिसमें हेडली को 35 साल की जेल हुई थी, 2012 का फैसला जिसमें एकमात्र जीवित पकड़े गए आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी की सजा हुई थी, और 2009 का मुकदमा, जिसमें पाकिस्तान में आतंकविरोधी एक अदालत ने मामला दर्ज किया था&में से यह आखिरी है जो बिना किसी नतीजे के खत्म होता दिख रहा है.

भारतीय जांचकर्ताओं को उम्मीद है कि हेडली के खुलासों से अब कहीं ज्यादा सबूत सामने आएंगे. रॉ में पूर्व विशेष सचिव वी. बालचंद्रन दो सदस्यों वाली रामप्रधान समिति, जो हमले के समय मुंबई पुलिस की कार्रवाई की जांच के लिए बनाई गई थी, के सदस्य थे. वे कहते हैं, “पाकिस्तान की साजिश को समझने के लिए हेडली के बयान की जरूरत है. इससे पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने में मदद मिलेगी.”

इस्लामाबाद में भारत के पूर्व उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी को पूरा यकीन है कि हेडली के बयान का हश्र भी पाकिस्तान के खिलाफ आतंक के संरक्षण के हर मामले जैसा ही होगा (देखें बॉक्स). वे कहते हैं, “नरमी भरे विकल्पों का समय खत्म हो चुका है. भारत को पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए.”

पाकिस्तान सरकार ने हेडली के बयानों पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन 26/11 हमलों के समय पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक ने उसके बयानों को “झूठ का पुलिंदा” और “गढ़े हुए बयान” बताकर खारिज कर दिया है. मलिक का कहना है भारतीय खुफिया एजेंसियों ने मुंबई हमलों को अंजाम देने और मनगढ़ंत बयान दिलाने के लिए हेडली का इस्तेमाल किया. पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर का कहना है कि पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों के लिए भारतीय अदालत में हेडली के दावों की अनदेखी करना आसान नहीं होगा. वे कहते हैं, “हेडली कोई भारतीय नागरिक नहीं है. वह पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी नागरिक है और उसने अपने सारे बयान भारत की हिरासत में रहकर नहीं दिए हैं, बल्कि अमेरिका की हिरासत में दिए हैं. उसने साफ-साफ कहा कि वह पाकिस्तान में हाफिज सईद और लखवी के संपर्क में था.”

एक माहिर जासूस
26/11 हमलों से पहले की घटनाओं से जुड़े एक बड़े रहस्य की गुत्थी नवंबर 2010 में कुछ हद तक सुलझा ली गई थी. 26/11 हमलों के कुछ महीने पहले मुंबई पर हमलों के बारे में जो ढेरों खुफिया चेतावनियां मिल रही थीं, उसका स्रोत अमेरिका था. दो साल बाद अमेरिकी डाइरेक्टरेट ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस (डीएनआइ) ने भारत के गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें  बताया गया था कि अमेरिकी सरकार ने “भारत सरकार को जून और सितंबर 2008 के बीच मुंबई के कई ठिकानों पर हमला करने की लश्कर-ए-तैयबा की योजनाओं के बारे में विशेष चेतावनियां मुहैया कराई थीं.”

अमेरिकी से मिलने वाली चेतावनियां काफी स्पष्ट थीं. 2006 और 2008 के बीच आइबी और रॉ को कई खुफिया सूचनाएं मिली थीं. 2008 तक ये चेतावनियां काफी तेज हो चुकी थीं. जो बात समझ से परे थी, वह यह कि अमेरिका को ये सारी विस्तृत जानकारियां किस तरह मिल रही थीं. 26/11 हमलों में मुंबई पुलिस की गलतियों की जांच के लिए गठित प्रधान समिति ने बताया कि कुल 26 चेतावनियां दी गई थीं, जिनमें होटलों और सरकारी इमारतों को निशाना बनाने की बात थी.

तीन चेतावनियों में तो मुंबई पर हमले की तारीख तक बता दी गई थीः 20 अगस्त, 2006, 24 मई और 11 अगस्त, 2008. छह चेतावनियों में समुद्र से हमला करने की संभावना बताई गई थी, 11 चेतावनियों में एक साथ हमले की आशंका जाहिर की गई, तीन में इन ठिकानों पर फिदायीन हमले की चेतावनी दी गई. पिछले साल सितंबर में डीएनआइ ने बताया कि “सामरिक चेतावनियां” नवंबर महीने तक जारी रहीं.
सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआइए) के पूर्व कॉन्ट्रैक्टर एडवर्ड स्नोडेन ने 2013 में खुलासा किया कि सीआइए ने मुंबई हमले से ठीक आठ दिन पहले 18 नवंबर को रॉ को एक चेतावनी भेजी थी. सीआइए को यह जानकारी लश्कर-ए-तैयबा की नाव और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लश्कर के मुख्यालय के बीच होने वाली बातचीत को टैप करने से हासिल हुई थी. सीआइए ने यह चेतावनी रॉ को भेज दी थी, और फिर रॉ ने उसे भारतीय नौसेना और तटरक्षक दल को पहुंचा दी थी, लेकिन महाराष्ट्र पुलिस को यह चेतावनी नहीं दी गई. इस अंतिम चेतावनी में लश्कर की नौका अल हुसैनी की सही स्थिति तक बता दी गई थी, जब वह दस हमलावरों के साथ कराची से चली थी.

प्रधान समिति को दिल्ली में आइबी और रॉ की मूल जानकारियां उपलब्ध कराने से मना कर दिया गया था. केंद्रीय एजेंसियों की ओर से महाराष्ट्र में डीजीपी के आफिस में जो चेतावनियां दी गई थीं, उनमें बाकी की जानकारियों को पहले ही हटा दिया गया था ताकि उन चेतावनियों के मूल स्रोतों का कोई सुराग न मिल सके. रॉ के पूर्व विशेष सचिव बालचंद्रन कहते हैं, “आम तौर पर देश के भीतर भी सूचना देते समय सूचना देने वाले का नाम नहीं बताया जाता है.”

क्या हेडली लश्कर के अंदर ही एक भेदिया था जो अमेरिकी सरकार को मुंबई हमलों की योजना के बारे में लगातार जानकारी दे रहा था? हेडली की दोहरी चाल को देखते हुए यह संभावना चौंकाने वाली भी नहीं लगती है. एक माहिर गुप्त एजेंट के तौर पर, जिसने हाल के दौर में सबसे कुख्यात हमलों में से एक में रेकी का काम किया था और जिन हमलों की नकल 13 नवंबर, 2015 को इस्लामिक स्टेट के हमलावरों ने भी पेरिस हमले में की थी, हेडली हमेशा अपनी संदिग्ध भूमिकाओं के लिए जाना जाएगा.

अमेरिका में जिस तरह वह खुलासे कर रहा है, उससे उसके बारे में कुछ अलग राय भी बन सकती है, एक ऐसा शक्चस जिसने आतंकवाद में पाकिस्तान के असली खिलाडिय़ों की साजिश को बेनकाब कर दिया है.

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