सब पर सरकार की नजर

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि निविदा की भाषा आइटी ऐक्ट 2000 का उल्लंघन है.

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इलेस्ट्रशनः तन्मय चक्रव्रर्ती इलेस्ट्रशनः तन्मय चक्रव्रर्ती

कौशिक डेका / संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर

  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2018,
  • अपडेटेड 3:37 PM IST

जब केंद्रीय बजट आया था तो उस वक्त स्मृति ईरानी की अगुआई वाले सूचना और प्रसारण (आइबी) मंत्रालय ने 'बजट' पर केंद्रित ऑनलाइन लाइव चर्चाओं की साथ-साथ मॉनिटरिंग की थी. एक टीम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और फेसबुक के अलावा कई सारे ब्लॉग्स की गहरी छानबीन की थी.

उनके विश्लेषण के आधार पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जाना कि कुछ बजटीय प्रावधानों पर लोगों में गुस्सा है और उन्होंने उसे दूर करने की कोशिश भी की थी. मसलन, विश्लेषण से पता चला था कि व्यक्तिगत आय पर लगने वाले टैक्स स्लैब में कोई बदलाव न होने से लोग जेटली से खासे नाराज थे.

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नतीजतन वित्त मंत्री ने वेतनभोगियों के लिए 40,000 रु. के एक स्टैंडर्ड डिडक्शन (मानक कटौती) का प्रावधान फिर से लागू किया. हालांकि यह प्रावधान नगण्य था पर इसने लोगों के गुस्से को थोड़ा शांत किया.

अब जब आम चुनावों में साल भर से भी कम वक्त बचा है, उस प्रयोग से उत्साहित होकर सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने एक 'सोशल मीडिया कम्युनिकेशन हब' के गठन की योजना बनाई है. इसमें देश के सभी 716 जिलों में लोगों को अनुबंध पर रखकर केंद्र की योजनाओं पर लोगों की प्रतिक्रिया और सुझावों पर नजर रखने की कोशिश होगी.

अफसरों के अनुसार इस योजना पर काम कर रहे लोग सरकार के 'आंख और कान' बनेंगे और सरकार को सोशल मीडिया के साथ मुख्यधारा के मीडिया पर रिपोर्ट देंगे, अखबारों, टीवी और रेडियो स्टेशनों की खबरों पर पैनी नजर रखेंगे.

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सरकार ने इसके लिए लोगों को काम पर रखने की मंजूरी इस साल फरवरी में ही दे दी थी. इसके तहत हर जिले के लिए एक और दिल्ली में करीब 20 लोगों को काम पर रखा गया है. वे रोजाना कम से कम छह रिपोर्ट तैयार करेंगे. सरकार ने इस हब के लिए 17 करोड़ रु. मंजूर किए हैं.

मंत्रालय के अधीन ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड ने इस प्रोजेक्ट के लिए सॉफ्टवेयर की आपूर्ति के वास्ते निविदा भी निकाली है. उसके दस्तावेज में कहा गया है कि सॉफ्टवेयर सभी डिजिटल चैनलों के बीच सामंजस्य बनाने के लिए कंप्यूटरीकृत रिपोट्र्स, नीतिगत निरीक्षण और व्यापक कार्य प्रगति में सक्षम होना चाहिए, साथ ही इसमें सूचनाओं को प्रसारित करने की सुविधा भी होनी चाहिए.

उसमें कहा गया है कि नया टूल फेसबुक, ट्विटर, गूगल प्लस, लिंक्डइन, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और 'गूगल प्लेस्टोर, ईमेल, न्यूज, ब्लॉग्स, कंप्लेंट साइट्स और फोरम' पर 'सुनने' और जवाब देने में सक्षम होना चाहिए. इससे 'रियल-टाइम न्यू मीडिया कमांड रूम' बनाया जा सकेगा.

साइबर सुरक्षा के विशेषज्ञों का कहना है कि इस निविदा की भाषा आइटी एक्ट 2000 का उल्लंघन करने वाली है. मसलन, 'ईमेल को सुनना' या पढऩा-देखना बिना ईमेल खाताधारक की अनुमति के संभव नहीं.

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ सुबिमल भट्टाचार्जी कहते हैं, ''अन्य प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की मॉनिटरिंग के लिए फेसबुक या गूगल जैसी संस्थाओं की अनुमति लेनी होगी पर उन्हें इसके लिए तब तक बाध्य नहीं किया जा सकता, जब तक कोर्ट ऐसा आदेश न दे.''

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वे केंद्र की 2009 की एक अधिसूचना का हवाला देते हैं जो सरकार को विशेष परिस्थितियों में और एक नियत समय के लिए ही ऑनलाइन कंटेंट की निगरानी की अनुमति देता है जिसके लिए कई प्रकार की अनुमति भी लेने की जरूरत होगी.

बोली के दस्तावेज कहते हैं कि सॉफ्टेवयर को सोशल मीडिया और वल्र्ड वाइव वेब के उभरते ट्रेंड की निगरानी में सक्षम तथा इंटरनेट पर सक्रिय रहने वाले लोगों की भावनाओं को भांपने में समर्थ होना चाहिए. सॉफ्टवेयर की इन जरूरतों से सरकार के इरादों को भांपा जा सकता है. सरकार के सोशल मीडिया कैंपेन के प्रभाव को समझने में यह टूल एक 'मार्गदर्शक उपकरण' साबित हो सकता है.

यह कोई नया विचार नहीं है. मंत्रालय का मौजूदा सोशल मीडिया एनालिटिक्स विंग सोशल मीडिया पर आने वाली पोस्ट की जांच करके प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कार्यालय, खुफिया एजेंसियों और गृह एवं रक्षा जैसे मंत्रालयों के लिए रिपोर्ट तैयार करता है. यह विंग एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रयोग करता है जो प्रति घंटे चार करोड़ पेज की बारीक पड़ताल कर सकता है. राष्ट्रीय सुरक्षा एक विषय है पर निजता और व्यक्तिगत आजादी का क्या? ऐसे प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं.

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