दिल्ली में एक तरफ कोरोना के केस बढ़कर एक लाख से ऊपर का आंकड़ा पार कर चुके हैं तो दूसरी तरफ सवाल ये भी खड़ा हो रहा है कि क्या कोरोना टेस्टिंग में किसी मरीज को वरीयता दिए जाने की जरूरत है. दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि कोर्ट निर्देश दे कि गर्भवती महिलाओं के कोविड-19 टेस्ट के नतीजों को प्राथमिकता के आधार पर बताया जाए.
याचिका लगाने वाले वैभव अग्निहोत्री ने कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में कहा कि दिल्ली में सरकार की तरफ से कहा गया है कि गर्भवती महिलाओं का कोविड-19 का रेपिड एंटीजेन टेस्ट किया जाएगा, जिससे परिणाम बहुत जल्दी मिले. लेकिन सरकार ने जो बात कही है वो उसके द्वारा जारी किए गए नोटिफिकेशन में नहीं है जिसके चलते व्यावहारिक रूप से गर्भवती महिलाओं का कोविड के लिए रैपिड एंटीजेन टेस्ट अस्पतालों में नहीं हो पा रहा है.
बुधवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने जब दिल्ली सरकार के वकील से पूछा कि गर्भवती महिलाओं के कोविड-19 के टेस्ट के परिणाम आने में कितना वक्त लगता है तो वकील की तरफ से बताया गया कि इसमें 48 घंटे तक का वक्त लगता है. जिस पर कोर्ट ने कहा कि क्या ये सैंपल लेने से लेकर टेस्ट के नतीजे आने का वक्त है? इस पर दिल्ली सरकार के वकील के पास इसका कोई साफ-साफ जवाब नहीं था, जबकि याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि गर्भवती महिलाओं के कोविड-19 के टेस्ट के नतीजे आने में 5 से 6 दिन तक का वक्त लग रहा है.
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कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि कोई भी गर्भवती महिला जो एक बच्चे को जन्म देने जा रही है अगर उसके कोविड टेस्ट के नतीजे में इतना समय लगेगा तो वो आगे इलाज कैसे करा पाएगी. कोई भी गर्भवती महिला हाई रिस्क पर होती है और उसे तुरंत उपचार की जरूरत होती है. कुछ वक्त पहले ही दिल्ली सरकार और कुछ अस्पतालों की तरफ से गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी से पहले कोविड टेस्ट कराना अनिवार्य कर दिया गया है, लेकिन इसके नतीजों के लिए कई-कई दिन का इंतजार गर्भवती महिलाओं को करना पड़ता है.
फिलहाल दिल्ली हाई कोर्ट ने इस याचिका पर गुरुवार को दोबारा सुनवाई करने का फैसला किया है. सरकार को इस पर अपना रुख साफ करना होगा कि फिलहाल गर्भवती महिलाओं का टेस्ट कैसे किया जा रहा है और टेस्ट के नतीजे आने में कम से कम और ज्यादा से ज्यादा कितना वक्त लग सकता है.
पूनम शर्मा