छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों ने नया गोरखधंधा शुरू किया है. वो ठेकेदारों से सांठ-गांठ कर उनके वाहनों को आग के हवाले कर रहे हैं. खासतौर पर सड़क निर्माण में लगे वाहनों और मशीनों को. इसके अलावा यात्री सुविधा मुहैया कराने वाली बसें और दूसरे वाहनों को भी जला दिया जाता है. इसके बाद वाहन मालिक जले हुए अपने पुराने वाहनों के एवज में इंश्योरेंस कंपनियों से क्षतिपूर्ति और सरकार से मुआवजा वसूलते हैं.
नक्सलियों और ठेकेदारों की गठजोड़
बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क निर्माण कार्यों में लगे डोजर, डंपर, ट्रक, बुलडोजर, मशीनें, बस और दूसरी गाड़ियों को नक्सलियों के हाथों जलवाने का खेल चल रहा है. मामले के खुलासे के बाद पुलिस ने नक्सलियों और ठेकेदारों की गठजोड़ को सबक सिखाने का फैसला किया है.
आगजनी का खास मकसद
बस्तर में जंगलों में आगजनी की घटनाओं को खास मकसद से अंजाम दिया जा रहा है. जंगल में जलते वाहनों को देख कर यही कहा जा सकता है कि नक्सलियों ने सरकार के खिलाफ बगावत का ऐलान कर आगजनी की घटना को अंजाम दिया, लेकिन सच्चाई ये नहीं है. दरअसल आगजनी के ज्यादातर मामले नक्सलियों को मामूली रकम देकर खुद वाहन मालिक अंजाम दिलवा रहे हैं.
इंश्योरेंस क्लेम कर कंपनियों से क्षतिपूर्ति
बस्तर के ज्यादतर हिस्सों में सड़क निर्माण, भवन और दूसरे विकास कार्य हो रहे हैं. कई निर्माण एजेंसियां और ठेकेदार इस काम को कर रहे हैं. निर्माण कार्य में कई मशीनें, ट्रक, डोजर, डंपर से लेकर यात्री वाहनों तक का उपयोग हो रहा है. लेकिन इस्तेमाल हो रहे वाहन नए नहीं बल्कि वर्षों पुराने हैं. कामकाज के दौरान इन वाहनों को नक्सलियों से मिलकर आग के हवाले कर दिया जाता है. फिर जले हुए वाहनों के इंश्योरेंस क्लेम कर कंपनियों से क्षतिपूर्ति और राज्य सरकार से मुआवजा वसूल लिया जाता है. कई संदेहजनक मामलों को लेकर पुलिस ने ऐसे ठेकेदारों का ब्यौरा तैयार किया है, जो नक्सलियों से सांठगांठ कर वाहन जलाने के गोरख धंधे को अंजाम दे रहे हैं.
सुरक्षित रहती हैं ठेकेदारों की नई गाड़ियां
आईजी बस्तर रेंज विवेकानंद सिन्हा के मुताबिक लंबे आरसे से ये खेल चल रहा है. उनके मुताबिक जिन इलाकों में नक्सली ठेकेदारों की पुरानी गाड़ियों को आग के हवाले कर रहे हैं, उसके चंद कदमों पर दूर ठेकेदारों की नई गाड़ियां सुरक्षित रहती हैं. इससे साफ है कि सोच-समझ कर नक्सली गाड़ियों में आग लगा रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे कई मामले सामने आए, जिसमे निर्माण कार्य में लगी नई मशीनें और गाड़ियां पूरी तरह से सुरक्षित रहीं, जबकि उसी के करीब खड़ी पुरानी गाड़ियां इतनी बुरी तरह से से जलाई गई कि उसके सभी पार्ट्स राख में तब्दील हो गए.
अब सबक सिखाएगी पुलिस
सिन्हा ने बताया की बस्तर के सभी थानों और सुरक्षा बलों के परिसरों में निर्माण कार्य से जुड़े वाहनों और मशीनों को रखने के निर्देश हैं. इसके एवज में कोई शुल्क नहीं लिया जाता. जबकि वाहनों की पूर्ण सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस उठाती है. इसके बावजूद ठेकेदार यहां अपने वाहन नहीं रखते. उन्होंने कहा कि अब पुलिस इंश्योरेंस कंपनियों के जरिए ऐसे ठेकेदारों को सबक सिखाएगी.
तीन साल में 260 से ज्यादा वाहन आग के हवाले
बस्तर में बीते तीन साल में नक्सलियों ने 260 से ज्यादा वाहनों को आग के हवाले किया है. इन वाहनों में सर्वाधिक वाहन उन ठेकेदारों के हैं, जो निर्माण कार्य में जुटे हैं. इनमे से ज्यादातर वाहन पंद्रह से बीस साल पुराने हैं. इन वाहनों का बाकायदा इंश्योरेंस करवा कर जंगलों में भेज दिया जाता है. बीते तीन माह में नक्सलियों ने 18 आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया. इसमें लगभग 65 वाहन आग के हवाले किए गए. हाल ही में बस्तर के गादीरास, बीजापुर के मीरपुर और फूलगट्टा इलाके में नक्सलियों ने आगजनी कर जिन वाहनों को नष्ट कर दिया, वे बीस साल पुराने थे. जबकि घटना स्थल से महज पांच मीटर की दूरी पर ठेकेदारों के नये वाहनों को नक्सलियों ने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया.
बस्तर के बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, गीदम, कांकेर, भोपालपटनम, कोंडागांव और अभुझमाड इलाकों में काम करने के लिए सड़क निर्माण, फॉरेस्ट और दूसरे विभागों के ठेकेदारों से नक्सली लेवि के रूप में मोटी रकम वसूलते हैं. इससे ठेकेदारों और नक्सलियों के बीच संपर्क स्थापित हो जाता है. ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए नक्सली मामूली रकम लेकर उनके वाहनों को आग लगा देते हैं. ऐसी घटनाओं से देश भर में संदेश जाता है कि नक्सली हावी हैं और जान जोखिम में डाल कर ठेकेदार उन इलाकों में काम कर रहे हैं.
सुरभि गुप्ता / सुनील नामदेव