बुधवार को लीक एक वीडियो में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को यह कहते देखे गए हैं कि महाराष्ट्र में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ सकती है और एनसीपी के साथ अपना गठबंधन जारी रखना नहीं चाहती है. इससे इस बात की पुष्टि होती है कि सहयोगी दल कांग्रेस की चाहत नहीं बल्कि जरुरत हैं.
2004 में कांग्रेस पार्टी की नीति में ऐतिहासिक बदलाव देखा गया जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया रामविलास पासवान से मिलने उनके घर पहुंच गई थी. इस कदम से यह दिखाने की कोशिश की गई कि कांग्रेस ने अपने मनोवैज्ञानिक रुकावट को दूर कर गठबंधन की राजनीति को पूरे मन से स्वीकार कर लिया है. इसके बाद एक गठबंधन तैयार हुआ. लेकिन आठ साल बाद एक बार फिर कांग्रेस ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है.
उसके बाद एक-एक कर यूपीए के सहयोगी दल साथ छोड़ने लगे और जो अभी साथ हैं वे किसी ना किसी क्षेत्रीय राजनीति की मजबूरी की वजह से है. लेकिन अंदर ही अंदर उनके बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है. उत्तर प्रदेश और बिहार में पराजय से दांव बदल गए हैं. जो पहले शिकार हो रहे थे, आज शिकारी बन बैठे हैं क्योंकि क्षेत्रीय ताकतें कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ एकजुट हैं. एनसीपी प्रवक्ता डी पी त्रिपाठी के मुताबिक ,' वर्तमान में भारतीय राजनीति की सबसे खास बात यह है कि कोई भी दल अकेले सरकार बनाने में सक्षम नहीं है. आज कोई भी दल 'बिग बॉस' की भूमिका निभाने में सक्षम नहीं है'. वे कहते हैं कि, 'राहुल के इस वीडियो से उनकी पार्टी खुश तो नहीं है मगर महाराष्ट्र में उन्हें सरकार चलानी है.
आंकड़ों का खेल
आगामी आम चुनाव को देखते हुए एक बार फिर कांग्रेस भ्रम की स्थिति में हैं. बहुत हद तक यही स्थिति बीजेपी की भी है. दोनों दल ने ही चुनावी लड़ाई की शुरुआत अपने मौलिक सहयोगियों को साथ करने की ठानी है. अभी वे सहयोगी दल जुटाने की रेस करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं.
कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी के प्रदर्शन पर ही सबकुछ निर्भर है और उम्मीद जताई कि बीजेपी से कहीं ज्यादा कांग्रेस सहयोगी दल जुटा लेगी. सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी का मानना है कि सहयोगी दल जुटाने का प्रश्न तो जनता का समर्थन मिलने का बाद ही पैदा होता है.
दोनों दलों का लक्ष्य 272 सीटें जीतना है. मगर कांग्रेस और बीजेपी दोनों को इस आंकड़े से कम में ही संतोष करना पड़ेगा. खेल मंत्री और कांग्रेस के गठबंधन समिति के सदस्य जीतेंद्र प्रसाद सिंह ने संकेत दिए हैं कि उनकी पार्टी चुनाव के बाद भी नए सहयोगी दलों से गठबंधन कर सकती है. जेडीयू, लेफ्ट और अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों से कांग्रेस को समर्थन मिलने की उम्मीद है. जेडीयू नेता केसी त्यागी कहते हैं कि 2014 चुनाव के बाद दिल्ली में जेडीयू की क्या भूमिका होगी, ये तो कहना मुश्किल है. लेकिन इतना जरुर है कि हम बीजेपी के साथ नहीं होंगे.'कांग्रेसी सूत्रों के मुताबिक एआइएडीएमके-बीजेपी गठबंधन की वजह से डीएमके का साथ एक बार फिर से कांग्रेस को मिल सकता है. यहीं फॉर्मूला लालू-नीतीश की पार्टी और सपा-बसपा पर लागू होगा. सिर्फ कांग्रेस को चुनना है. कांग्रेस के लिए मोदी से बेहतर और कोई साबित नहीं हो सकता है. बीजू-जनता दल भी मोदी को लेकर खुश नहीं है.
सत्ता बहुत कुछ बदल देती है. इसलिए 272 के आंकड़े के सही मंत्र का पता चुनाव के बाद ही चलेगा.
किसका किधर है झुकाव
1. चंद्रशेखर राव
टीआरएस नेताओं से विलय के लिए कांग्रेस की बातचीत जारी है. लेकिन टीआरएस के मुखिया चंद्रशेखर राव की शर्त है- तेलंगाना और इसकी राजधानी हैदराबाद. सूत्रों के मुताबिक आंध्र प्रदेश में अपना जनाधार खो चुकी कांग्रेस को टीआरएस की मदद से राज्य में वापसी की राह तलाश रही है.
2. नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री को लुभाने के लिए कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने बिहार के गांवों में में 5700 KM सड़क के निर्माण के लिए 4,130 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की है. पिछले 12 साल आवंटित की गई राशियों में यह सबसे बड़ी राशि है. जेडीयू को 'बीजेपी गठबंधन के टूटने' के बाद के परिणाम की कोई चिंता नहीं है.
3. लालू प्रसाद
वह अध्यादेश जिसके बाद दागी विधायक और सांसद चुनाव लड़ने से वंचित नहीं रहेंगे. इससे आरजेडी के मुखिया लालू प्रसाद को बड़ी राहत मिलेगी. इस तरह के अध्यादेश लाने के सरकार के कदम को 2014 के चुनाव मद्देनजर लालू जैसे कई नेताओं की तुष्टीकरण के रुप में देखा जा रहा है.
4. नवीन पटनायक
कांग्रेस की नेतृत्व वाला गठबंधन जिसने उड़ीसा में हाल के स्थानीय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को भी संदेश दे रही है. सत्ता वापसी के लिए जूझ रही कांग्रेस को क्षेत्रीय नेताओं के समर्थन से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है.
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