जलवायु परिवर्तन और कोविड महामारी के बीच एक और खतरा भारत पर मंडरा रहा है और यह है टिड्डी दल का. टिड्डियों के इस हमले से पांच राज्यों में बड़े पैमाने पर फसलें नष्ट हो सकती हैं. राजधानी दिल्ली में भी टिड्डी दलों के हमले की आशंका बढ़ गई है. दिल्ली सरकार ने इस संभावित खतरे के अंदेशे को भांपते हुए एहतियाती कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. इधर, टिड्डियों के पहुंचने का खतरा प्रायद्वीपीय भारत में भी बढ़ गया है. ऐसा 46 साल के बाद होगा. टिड्डी दल इस वक्त भारत के पश्चिमोत्तर हिस्से और मध्य भारत के कई इलाकों में मौजूद हैं और हरियाली तबाह कर रहे हैं. जानकारों के मुताबिक टिड्डी दल को आगे बढ़ने में हवा की दिशा बहुत मदद करती है. इस वक्त असली खतरा इनके मध्य भारत में फैलने का है.
सरकार क्या कर रही है?
27 मई को बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि ब्रिटेन से अतिरिक्त स्प्रेयर 15 दिनों में आने शुरू हो जाएंगे. इनका आर्डर पहले ही दिया जा चुका है. 45 और स्प्रेयर भी अगले एक-डेढ़ महीने में खरीद लिए जाएंगे. कीटनाशकों के छिड़काव के लिए ड्रोन और हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल करने की तैयारी है.
टिड्डी दल क्यों फैल रहे हैं?
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, भारत के पश्चिमी तट के उत्तरी छोर से आने वाली पश्चिमी हवाएं दो भागों में बंट जाती हैं और इसकी एक शाखा मध्य और उत्तर पूर्वी भारत में और दूसरी शाखा देश के दक्षिणी हिस्से की ओर जाती है. यही हवाएं टिड्डी के झुंड को राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में स्थित उत्तर प्रदेश-बिहार की तरफ ले जाने के बजाए, मध्य प्रदेश की तरफ मोड़ रहीं हैं. हालांकि, मौसम वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर बेहद स्थानीय पवनों के चलने की दिशा का सही अंदाजा लगाया जाए तो टिड्डी दलों पर नियंत्रण करने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी. पर स्थानीय पवनों को लेकर बारीक ब्योरे वाले आंकड़ों की कमी है. मसलन, मध्य प्रदेश के टिड्डी प्रभावित 16 जिलों में से 12 में स्थित मौसम विभाग का स्वचालित मौसम केंद्र हवा, तापमान और दूसरे मौसम संबंधी जानकारी को लेकर कोई डेटा नहीं दिखा रहा है. गैर-सरकारी आंकड़े कहते हैं कि 2019 में भारत में करीब 200 बार टिड्डों के हमले हुए पर सरकार के पास इससे फसलों को पहुंचे नुक्सान का कोई आंकड़ा नहीं है. राज्य सरकारें और लोकस्ट वॉच सेंटर 2019 नवंबर में हरकत में आए और उन्होंने किसानों को इससे निपटने के परामर्श दिए. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.
तो टिड्डों से निपटने का क्या उपाय है
वैज्ञानिकों के मुताबिक, टिड्डे सिर्फ दिन में ही खाते और उड़ान भरते हैं. यानी उनसे रात में निबटा जा सकता है. खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने टिड्डी दलों से निबटने के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं. इसके मुताबिक, ऐसी रेतीली जगहें जहां हरियाली मौजूद हैं, उन पर लगातार निगरानी की जरूरत है.
ऐसे रेगिस्तानी इलाके जहां बारिश हो रही हो, उन पर भी टिड्डों और उनके अंडों की मौजूदगी की निगहबानी की जरूरत है. और उनके प्रजनन को रोकने के लिए भी एफएओ ने कुछ कीटनाशकों की सूची दी है. संगठन के मुताबिक, ऐसे इलाके जहां का तापमान 20 डिग्री से 38 डिग्री सेल्यियस के बीच है, उन पर खास नजर रखे जाने की जरूरत है क्योंकि यहां नमी हो या बारिश हो रही हो तो इन इलाकों में टिड्डी दलों का हमला हो सकता है. जाहिर है भारतीय एजेंसियां, एफएओ के इस दिशा-निर्देशों का पालन करने में चूक गई हैं.
आखिर ये हिंदुस्तान तक पहुंचे कैसे?
ये टिड्डी दल मूल रूप से सऊदी अरब के हैं या मोटे तौर पर कहें तो अरब प्रायद्वीप के हैं. मॉनसूनी हवाओं के साथ वे हर साल राजस्थान और गुजरात पहुंचते हैं. अमूमन हर साल 10 ऐसे दल सामान्य रूप से भारत पहुंचते हैं. बहरहाल, 2018 से थोड़ा बदलाव आ गया.
सऊदी अरब में 2018 में अत्यधिक बरसात हुई. इसके पीछे दो चक्रवात थेः मई में मकेनू और अक्तूबर में लूबान. इस बरसात से अरब प्रायद्वीप के रूब-अल-खाली जैसे सूखे इलाकों में झीलें बन गईं. अब इसके पीछे की मोटी वजह जलवायु परिवर्तन ही है कि अरब प्रायद्वीप में दो चक्रवात भारी बारिश लेकर आए. पहले, अरब प्रायद्वीप में पांच साल में एक चक्रवात आने का औसत था. पर हाल के वर्षों में यहां सालाना तीन चक्रवात तक बढ़ गए.
तो इन चक्रवातों ने दो चीजें की. पहला, इन डेजर्ट लोकस्ट यानी टिड्डों को अपनी जन्मभूमि में ही पर्याप्त भोजन और प्रजनन के लिए अनुकूल मौसम हासिल हो गया. दूसरी बात यह हुई कि इन चक्रवातों ने हवा के पैटर्न को अस्थायी रूप से बदल दिया. टिड्डों के दल वहां से यमन की तरफ बढ़ते हुए अफ्रीका में प्रवेश गए. उनके अफ्रीका में प्रवेश करते ही अकाल जैसी परिस्थितियां पैदा हो गईं.
हिंदुस्तान पर हमला
उत्तर की तरफ बढ़ते टिड्डियों ने लाल सागर को पार किया और ईरान और पाकिस्तान पहुंच गए. लाल सागर के तट पर असामान्य तेज बरसात ने उनकी मदद ही की. 2019 के अप्रैल में, एक अनुमान के मुताबिक, पाकिस्तान में करीब 40 फीसद फसल इन टिड्डों ने खराब कर दी. 2019 में असामान्य मॉनसून ने इन टिड्डियों की मदद की. पश्चिमी राजस्थान में मॉनसून पिछले साल 6 हफ्ते पहले आ गया था. मॉनसून के देर तक रहने की वजह से, 90 दिनों के जीवनकाल वाले टिड्डे भारत में तीन बार प्रजनन कर गुजरे. तथ्य यह है कि टिड्डे तीन बार के प्रजनन में खुद को 16,000 गुना बढ़ा लेते हैं.
इस साल, भारत में 1 मार्च से 11 मई के बीच सामान्य से कोई 25 फीसद अधिक बारिश दर्ज की गई है. मई के पहले पखवाड़े तक राजस्थान में हीट वेव नहीं बन पा रही थीं. पश्चिमी विक्षोभ की वजह बार-बार बारिश आती रही और यही वजह है कि टिड्डी दल इस बार भारत में जल्दी और बड़ी संख्या में आ गए.
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मंजीत ठाकुर