अयोध्या में दाखिल होते ही वहां की सड़कें स्वागत और बधाई संदेशों वाली होर्डिंगों से भरी नजर आ रही हैं. दरअसल, यहां स्थानीय निकाय चुनाव है और ये होर्डिंग उसी की जोर-आजमाइश को बयान कर रहे हैं. फैजाबाद और अयोध्या नगरपालिका परिषद को मिलाकर बने अयोध्या नगर निगम के मतदाता पहली बार अपने मेयर का चुनाव करेंगे. जैसे-जैसे स्थानीय निकाय चुनाव नजदीक आता जा रहा है, फैजाबाद-अयोध्या की सड़कें चुनावी रंग में रंगी होर्डिंगों से घिरती जा रही हैं. कोई खुद को मेयर पद का उम्मीदवार बता रहा है तो किसी को पार्षद के टिकट की दरकार है.
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एजेंडे पर आई रामनगरी अयोध्या में पहली बार नगर निगम चुनाव की जंग का मैदान सज रहा है. चुनावी गोटियां बिछने लगी हैं. छोटी दीपावली के दिन अयोध्या में भव्य दीपोत्सव के आयोजन को भगवा दल के नेताओं ने अपने लिए मौके के तौर पर लिया. ऐसा ही माहौल मथुरा और वृंदावन नगरपालिका परिषद को एक करके बनाए गए मथुरा-वृंदावन नगर निगम का भी है. यहां भी मतदाता पहली बार मेयर का चुनाव करेंगे. मतदाताओं से पहले टिकट की चाह में अपनी पार्टियों के शीर्ष नेताओं का दिल जीतने के लिए सभी पार्टियों के नेताओं ने दिन-रात एक कर दिए हैं.
उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास में इस बार का निकाय चुनाव कई मायने में अलग है. पहली बार अयोध्या और मथुरा-वृंदावन को मिलाकर कुल 16 नगर निगम क्षेत्रों में चुनाव होंगे. बीते डेढ़ दशक में यह भी पहली बार होगा कि सभी प्रमुख राजनैतिक दल स्थानीय निकाय चुनावों में अपने चुनाव चिन्ह पर दम ठोकेंगे. इन चुनावों के जरिए एक ओर जहां सत्तारूढ़ भाजपा विधानसभा चुनावों में अपने स्वप्निल प्रदर्शन को बरकरार रखने की कोशिश करेगी, वहीं विपक्षी पार्टियों के लिए यह चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले खोयी प्रतिष्ठा हासिल करने का एक अवसर है. सूबे के 16 नगर निगम, 199 नगर पालिका परिषद, 438 नगर पंचायत में सवा तीन करोड़ से अधिक मतदाता लोकसभा चुनाव के महासमर से पहले राजनैतिक दलों की रणनीति पर अपना फैसला सुनाएंगे.
योगी सरकार की पहली परीक्षा
ये स्थानीय निकाय चुनाव प्रदेश में भारी बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज होने वाली भाजपा सरकार की पहली परीक्षा लेंगे. ये चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कामकाज और उनके चुनावी कौशल की भी परीक्षा लेंगे. पिछले निकाय चुनाव में भाजपा के 10 महापौर जीते थे लेकिन प्रदेश के किसी भी नगर निगम में पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. लखनऊ विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर मनीष हिंदवी बताते हैं, 'विधानसभा चुनाव में सहयोगियों के साथ 325 सीटें जीतने वाली भाजपा के सामने सबसे ज्यादा चुनौती है. पार्टी को यह साबित करना है कि विधानसभा चुनाव की जीत महज तुक्का नहीं थी.''
स्थानीय निकाय चुनाव की अहमियत को देखते हुए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने पिछले डेढ़ महीने के दौरान लगातार जिलों के दौरे कर विकास और हिंदुत्व के एजेंडे को साधना शुरू कर दिया है. अयोध्या में दीपोत्सव और उसके फौरन बाद चित्रकूट जाकर विकास योजनाओं की घोषणा मुख्यमंत्री की एक सोची रणनीति का हिस्सा है. भाजपा इन चुनावों के जरिए लोकसभा चुनाव से पहले अपनी बढ़त बरकरार रखने की कोशिश में है.
विधानसभा चुनाव में सधी रणनीति से यूपी में कमल खिलाने वाले प्रदेश संगठन महामंत्री ने स्थानीय निकाय चुनाव की कमान संभाल ली है. प्रदेश उपाध्यक्ष और विधानसभा चुनाव में माइक्रोमॉनिटरिंग के जरिए चुनावी रणनीति को अमलीजामा पहनाने वाले जे.पी.एस. राठौर को भाजपा ने निकाय चुनावों का प्रभारी बनाया है. राठौर बताते हैं, ''पार्टी ने वार्ड स्तर तक संगठन खड़ा किया है. निकाय चुनाव में एक बार फिर भाजपा जनता का विश्वास जीतने में कामयाब होगी.'' हालांकि पिछले चुनाव में भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए नगर निगमों में बेहतर प्रदर्शन किया था. फिर भी, पार्टी ने दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष के आयोजन इस तरह से तय किए कि प्रदेश के हर क्षेत्र और समाज तक पहुंचा जा सके.
खुलेगा चुनावी वादों का पिटारा
सूबे की सभी राजनैतिक पार्टियों ने निकाय चुनाव को उसी तर्ज पर लडऩे की तैयारी की है जिस प्रकार विधानसभा और लोकसभा चुनाव की जंग होती है. भाजपा ने पहली बार निकाय चुनाव के लिए घोषणापत्र जारी करने की तैयारी की है. राठौर बताते हैं, ''स्वच्छता के क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकार ने उल्लेखनीय कार्य किया है. स्वच्छ प्रशासन देने की बातें घोषणापत्र मंन शामिल की जाएंगी.'' स्थानीय निकाय चुनावों में पहली बार आम आदमी पार्टी (आप) भी उपस्थिति दिखाएगी. आप ने दिल्ली मॉडल की तर्ज पर यूपी के निकाय चुनावों में घोषणा पत्र जारी करने की कवायद शुरू कर दी है.
हाउस टैक्स के बकाया भुगतान को माफ करना, पार्किग शुल्क को आधा करना, कूड़ा उठाने की निःशुल्क व्यवस्था, नगर निगमों में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने जैसे वादों के जरिए आप मतदाताओं को खींचने का प्रयास करेगी. समाजवादी पार्टी ने निकाय चुनाव में घोषणा पत्र जारी करने पर अभी कोई निर्णय नहीं किया है लेकिन पार्टी ने सभी जिला प्रभारियों को स्थानीय मुद्दों को सूचीबद्ध करने को कहा है. वरिष्ठ सपा नेता और देश के सबसे गंदे जिले का दर्जा पाए गोंडा के प्रभारी जयशंकर पांडेय बताते हैं, ''निकाय चुनाव में टिकटार्थियों से स्थानीय समस्याओं का ब्योरा भी मांगा जा रहा है. इसके बाद हर निकाय के लिए अलग-अलग मुद्दे तय किए जाएंगे.''
गुटबाजी भी चरम पर
कानपुर के नवीन मार्केट स्थित सपा कार्यालय में पार्टी जिला निकाय चुनाव प्रभारी संजय अग्रवाल 23 अक्तूबर को दोपहर 12 बजे से पार्षद का टिकट चाहने वालों का इंटरव्यू ले रहे थे. शाम करीब 4 बजे संजय अग्रवाल की जगह पूर्व मंत्री अताउर्रहमान को चुनाव प्रभारी बना दिया गया. कानपुर ही नहीं, मुरादाबाद में भी सपा भीषण गुटबाजी का शिकार हो गई है. भाजपा के लिए मेयर के टिकटों का बंटवारा सिरदर्द बन गया है. सबसे बड़ा सिरदर्द पश्चिमी यूपी के गाजियाबाद, मेरठ, मुरादाबाद, बरेली, अलीगढ़, मथुरा, आगरा के लिए मेयर उम्मीदवारों का चयन है.
इन जिलों में औसतन तीन दर्जन से अधिक लोगों ने मेयर पद के लिए आवेदन किया है. समस्या यह भी है कि भाजपा के शीर्ष नेताओं ने पश्चिमी यूपी के जिन नेताओं को मेयर पद के लिए अपनी पसंद बताई है, उन पर संघ सहमत नहीं है. अलीगढ़, आगरा जैसे महानगरों में सांसद और विधायक अपने-अपने प्रत्याशियों की पुरजोर पैरवी कर रहे हैं जिससे भी चुनाव से पहले गुटबाजी और विवाद के हालात पैदा हो गए हैं.
निकाय चुनाव में एक बार फिर राजनैतिक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर है. यही चुनाव जमीन पर राजनैतिक पार्टियों की हैसियत का आकलन भी करा देंगे.
आशीष मिश्र