छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अचानक एक बड़ा दांव खेला है. अब सरकारी विभागों का सारा कामकाज हिंदी और अंग्रेजी की बजाए छत्तीसगढ़ी भाषा में होगा. छत्तीसगढ़ी भाषा को सन 2007 में राजकीय भाषा का दर्जा दिया गया था, लेकिन 10 साल बाद भी इसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया. अब जबकि सन 2018 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके लिए तुरुप के इस पत्ते को उछाल दिया गया है. हालांकि कांग्रेस समेत तमाम किसान संगठन इस बात का आरोप लगा रहे हैं कि ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी सरकार ने भाषाई कार्ड खेला है, जबकि बीते 15 दिनों में दस किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
विधानसभा चुनाव से पहले सरकार का ये कदम
छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्रालय में इन दिनों कर्मचारियों से लेकर अफसरों तक को छत्तीसगढ़ी भाषा की पढ़ाई कराई जा रही है. उन्हें छत्तीसगढ़ भाषा की बारीकियां बताई जा रही हैं. नोटशीट लिखने से लेकर सभी पत्राचार अब छत्तीसगढ़ी भाषा में होंगे. अभी तक मंत्रालय से निकलने वाले सभी आदेश और निर्देश हिंदी या अंग्रेजी में होते थे. लेकिन अब इस पर रोक लग गई है. छत्तीसगढ़ की विधान सभा में भी छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रश्न लगेंगे और मंत्रियों को इसी भाषा में उसका जवाब देना होगा. 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद से ही इस भाषा को राजकीय भाषा का दर्जा देने के लिए आंदोलन ने जोर पकड़ा था. सन 2008 में होने वाले विधान सभा चुनाव के मद्देनजर तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने एक साल पहले 2007 में छत्तीसगढ़ी भाषा को राजकीय भाषा का दर्जा दे दिया था. लेकिन दस वर्षों में भी ये भाषा प्रशासनिक भाषा नहीं बन पाई और अब 2017 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव होने हैं. लिहाजा राज्य की एक बड़ी आबादी को इस भाषाई कार्ड ने खुश कर दिया है.
अफसरों को दी जा रही ट्रेनिंग
छत्तीसगढ़ी भाषा को मूर्त रूप देने के लिए सरकारी विभागों में उपयोग होने वाले सभी दस्तावेजों का प्रारूप अब छत्तीसगढ़ भाषा में होगा. छुट्टी का आवेदन, अर्जित अवकाश, नियुक्ति आदेश, जाति प्रमाण पत्र से लेकर पत्राचार के सभी दस्तावेजों का प्रारूप छत्तीसगढ़ भाषा में प्रिंट कराने के लिए भेज दिया गया है. सरकार की कोशिश है कि महीने भर के भीतर सारा कामकाज राजकीय भाषा में संचालित होने लगे. इसके लिए गैर छत्तीसगढ़ी या फिर हिंदी और अंग्रेजी का इस्तेमाल करने वाले कर्मचारियों व अफसरों को छत्तीसगढ़ी बोलने का प्रशिक्षण रोजाना दिया जा रहा है. हालांकि इस प्रशिक्षण में यह भी बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ी भाषा का हिंदी और अंग्रेजी या फिर और कोई दूसरी भाषा से बैर नहीं है.
किसानों ने की आत्महत्या
उधर कांग्रेस समेत तमाम किसान संगठन सरकार के इस कदम पर निगाह गड़ाए हुए हैं. उन्हें बेमौसम लिया गया सरकार का यह फैसला बिलकुल भी रास नहीं आ रहा है. उनके मुताबिक राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ किसान आंदोलन के जोर पकड़ने की आशंका के चलते यह सरकार की सुनियोजित चाल है. कांग्रेस भी इस बात से इत्तेफाक रखती है और उसकी भी दलील है कि यह जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश है. जबकि किसानों को राहत देने या फिर उनके आंसू पोंछने के लिए किसी पैकेज का ऐलान होना चाहिए था. राज्य में बीते 15 दिनों में कहीं कर्ज की अदायगी को लेकर, तो कहीं समय पर बुआई नहीं होने और फसलों की बर्बादी को लेकर किसानों ने आत्महत्या की है.
सरकार पर भाषाई कार्ड खेलने का आरोप
संयुक्त किसान मोर्चा के अध्यक्ष वीरेंद्र पांडे के मुताबिक वे आत्महत्या करने वाले सभी दस किसानों के घर जाएंगे, जिन्होंने बीते दिनों में आत्महत्या की है. उनके परिजनों से भविष्य में बुआई को लेकर होने वाली कठिनाई और दूसरी समस्याओं पर चर्चा करेंगे. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल के मुताबिक ध्यान भटकाने के लिए भाषाई कार्ड सरकार के काम नहीं आएगा. दरअसल किसानों की बड़ी आबादी आक्रोशित है क्योंकि बीजेपी सरकार ने उनके साथ वादाखिलाफी की और किसानों की हालत सुधारने के लिए कोई प्रयास नहीं किया.
सुरभि गुप्ता / सुनील नामदेव