केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 10वीं परीक्षा के नतीजे जारी कर दिए गए हैं और इस बार रिजल्ट 8 साल पुराने पैटर्न से जारी हुए हैं, जिसमें परीक्षार्थियों के नंबर भी जारी किए गए हैं. जिसका फर्क परीक्षार्थियों की मानसिक स्थिति से लेकर नतीजों के पास प्रतिशत पर भी पड़ता दिख रहा है. रिजल्ट आने के कुछ ही घंटों बाद 3 विद्यार्थियों ने रिजल्ट अच्छा ना रहने की वजह से खुद को मौत के हवाले कर दिया. साथ ही इस बार 10वीं का रिजल्ट भी पिछले सालों से कम रहा है.
8 साल बाद लागू हुआ मार्क्स पैटर्न
परीक्षार्थियों का रिजल्ट उम्मीद के अनुसार ना आने और पास प्रतिशत में कमी होने के पीछे परीक्षा पैटर्न में बदलाव भी एक अहम वजह हो सकती है. बता दें कि बोर्ड ने 8 साल बाद फिर से पुराना सिस्टम लागू किया है, जिसके अनुसार परीक्षार्थियों के नंबर और मार्क्स प्रतिशत की जानकारी दी जाती है, जबकि 8 साल से सीबीएसई 10वीं कक्षा में सीजीपीए के माध्यम से नतीजे जारी किए जाते थे.
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स्टूडेंट्स का भी मानना है कि पैटर्न में हुए बदलाव से तनाव ज्यादा रहता है और इससे मार्क्स पता चलने का डर बना रहता है. वहीं सीजीपीए सिस्टम में प्रतिस्पर्धा कम रहती है और अब छात्रों के बीच कंपीटिशन हर एक मार्क्स के आधार पर तय होता है. हाल ही में 10वीं की परीक्षा में भाग लेने वाले डीपीएस स्टूडेंट अभिनव चतुर्वेदी का कहना है, 'मार्क्स पैटर्न में हुआ बदलाव आपसी कंपीटिशन को जन्म देता है और टॉपर्स के नाम जारी होने से भी बच्चे खुद को कम आंकने लगते हैं, जो तनाव का कारण है.' अभिनव ने बताया,' पहले जब सीजीपीए आधारित रिजल्ट आता था तो फ्रैंड सर्किल में उतना कंपीटिशन नहीं होता था, लेकिन अब एक कक्षा में ही नंबर को लेकर टेंशन बढ़ रही है.'
वहीं भूपेश गुप्ता का कहना है, 'जब मेरे बड़े भाई ने सीजीपीए पैटर्न से 10वीं परीक्षा पास की थी तो उनको रिजल्ट की इतनी टेंशन नहीं थी, लेकिन जब मैंने इस पैटर्न से परीक्षा दी है तो मेरे साथ पूरा परिवार टेंशन में था. साथ ही बच्चों पर सामाजिक दबाव भी बना रहता है कि उसके ज्यादा नंबर आए हैं या उसके मुझसे कम आए हैं.' भूपेश के अनुसार सीजीपीए पैटर्न ठीक था, क्योंकि उसमें कम अंक हासिल करने वाले उम्मीदवार ज्यादा परेशान नहीं रहते थे.
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पास प्रतिशत में हुई कमी8 साल बाद आए इस पैटर्न से पास प्रतिशत में भी गिरावट आई है. इस साल पिछले 5 सालों में सबसे कम फीसदी बच्चे पास हुए हैं. अगर पिछले साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2014 में 98.87 फीसदी, 2015 में 97.32 फीसदी, 2016 में 96.21 फीसदी, 2017 में 90.95 फीसदी बच्चे पास हुए थे, जबकि इस बार 86.70 बच्चों ने सफलता हासिल की है.
कैसा रहा था रिजल्ट
जिसमें पहले 3 स्थानों पर 25 छात्रों विद्यार्थियों ने जगह बनाई है. पहले स्थान पर 499 अंक के साथ चार परीक्षार्थी हैं, जबकि दूसरे स्थान पर 498 अंक के साथ 7 और तीसरे स्थान पर 497 अंक के साथ 11 छात्रों ने जगह बनाई है. दूसरी ओर कई परीक्षार्थियों को निराशा हाथ लगी है, जिसमें असफल होने वाले और उम्मीद से कम अंक लाने वाले उम्मीदवार शामिल है.
ये हैं रिजल्ट के आंकडे
इस साल परीक्षा में 86.7 फीसदी बच्चे पास हुए हैं. वहीं लड़कियों ने लड़कों से अच्छा प्रदर्शन किया है. इसमें लड़कियों का पास प्रतिशत 88.67 फीसदी रहा और 85.32 फीसदी लड़के ही पास हुए हैं. इस परीक्षा में 16,24,682 विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था, जिसमें 14,08,594 फीसदी परीक्षार्थी पास हुए हैं. वहीं तिरुअनंतपुरम में 99.60 फीसदी, चेन्नई में 97.37 फीसदी और अजमेर क्षेत्र में 91.83 फीसदी बच्चे पास हुए हैं. इस साल 1,31,493 बच्चों ने 90 फीसदी से अधिक अंक हासिल किए हैं, जबकि 27,476 फीसदी बच्चों ने 95 फीसदी से अधिक अंक प्राप्त किए हैं.
मोहित पारीक