Alok Verma removed From CBI: CVC रिपोर्ट की वो 23 बातें जो आलोक वर्मा को पड़ गईं भारी

Alok Verma removed as CBI Director केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की रिपोर्ट के बाद आलोक वर्मा को केंद्रीय जांच ब्यूरो के डायरेक्टर पद से हटा दिया गया है. अब उनको फायर सर्विसेज एंड होम गार्ड का डायरेक्टर जनरल बनाया गया है. आइए जानते हैं कि सीवीसी की रिपोर्ट की 23 बातें, जो आलोक वर्मा को भारी पड़ीं.

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CBI Director Alok Verma (Photo- India Today) CBI Director Alok Verma (Photo- India Today)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 9:17 AM IST

केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के गंभीर आरोपों के बाद से विवादों में घिरे आलोक वर्मा को आखिरकार केंद्रीय जांच ब्यूरो के डायरेक्टर पद से हटा दिया गया है. CVC ने अपनी रिपोर्ट में आलोक वर्मा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं. साथ ही सीबीआई के रिकॉर्ड निकालकर आलोक वर्मा के खिलाफ फौरन जांच करने की भी बात कही.

सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया कि आलोक वर्मा को मोइन कुरैशी और अन्य के मामले की जांच बंद करने के लिए सतीश बाबू साना ने 2 करोड़ रुपये की घूस दी. आलोक वर्मा ने सीबीआई की जांच से IRCTC मामले के मुख्य आरोपी राकेश सक्सेना को बचाने की कोशिश की. इसके अलावा सीबीआई डायरेक्टर के पद पर रहते हुए आलोक वर्मा ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के ठिकानों पर तलाशी अभियान नहीं लेने का निर्देश भी जारी किया था.

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सीवीसी ने मामलों को गंभीर मानते हुए आलोक वर्मा को तीन बार नोटिस भेजा और दस्तावेजों को पेश करने को कहा. हालांकि सीबीआई की तरफ से दस्तावेजों को पेश करने के लिए तारीख बढ़ाने की अपील की गई. इसके बाद सीवीसी ने मामले की तारीख 14 सितंबर 2018 से टालकर 18 सितंबर 2018 कर दी थी. आइए जानते हैं कि सीवीसी ने अपनी 23 प्वाइंट की रिपोर्ट में क्या-क्या बातें कहीं.

1.आलोक वर्मा पर मोइन कुरैशी केस में सतीश बाबू साना से 2 करोड़ रुपये घूस लेने का आरोप था.

2.आलोक वर्मा पर आईआरसीटीसी केस में लालू प्रसाद यादव के परिसर में तलाशी नहीं लेने के निर्देश सीबीआई के संयुक्त निदेशक को जारी करने का आरोप था. सीबीआई निदेशक पर सीबीआई को चलाने में ऐसे ही कुछ और गंभीर आरोपों की बात कही गई थी.

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3. निदेशक को इन आरोपों के संबंध में 14 सितंबर 2018 को कमीशन के सामने जरूरी फाइल और दस्तावेज पेश करने को 3 नोटिस जारी किए गए थे.

4.सीबीआई की ओर से इस मामले में और समय देने का अनुरोध किया गया, जिससे सुनवाई को 18 सितंबर 2018 तक के लिए टाल दिया गया.

5. सीबीआई ने 18 सितंबर को राकेश अस्थाना के संबंध में कमीशन को लिखी चिट्ठी में कहा था कि संबंधित अधिकारी पर केस में लगे आरोप सच प्रतीत होते हैं. उनके खिलाफ आधे दर्जन से ज्यादा केस में आपराधिक कदाचार के सबूत पाए गए थे. अधिकारी को सीबीआई के पास अपने खिलाफ सबूत होने की भी जानकारी थी. सीबीआई ने कहा था कि राकेश अस्थाना की शिकायत को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह एक दागी अधिकारी की सीबीआई के दूसरे अधिकारियों को धमकाने की कोशिश है. सीबीआई ने कहा था कि वह कमीशन को जरूरी फाइल उपलब्ध कराने को भी तैयार हैं. साथ ही सीबीआई ने शिकायतकर्ता की पहचान भी पूछी थी.

6. सीबीआई की 18 सितंबर की चिट्ठी के संदर्भ में कमीशन ने शिकायतकर्ता की पहचान बताने से इनकार कर दिया था. इसके बाद कमीशन ने सीबीआई डायरेक्टर को अपने तीन पुराने नोटिस को दोहराया और सभी दस्तावेज और फाइल 20 सितंबर तक पेश करने को कहा.

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7. सीबीआई ने 19 सितंबर को चिट्ठी लिखकर कमीशन से कहा कि मोइन कुरैशी केस के दस्तावेज विभिन्न शाखाओं से जमा किए जा रहे हैं. कमीशन ने सीबीआई से इस केस की ओरिजनल नोटशीट फाइल और रिकॉर्ड 24 सितंबर तक पेश करने को कहा.

8. सीबीआई ने 24 सितंबर को अपनी चिट्ठी में लिखा कि रिकॉर्ड हजारों पन्नों में हैं, फाइलें मालखाना, कोर्ट आदि जगहों पर हैं. इन्हें पेश करने के लिए तीन हफ्ते चाहिए. कमीशन ने कहा कि इन्हें यथाशीघ्र पेश किया जाए. हालांकि, सीबीआई हेडक्वॉर्टर में मौजूद नोटशीट फाइल को 28 सितंबर तक पेश करने को कहा.

09. कमीशन ने 9 अक्टूबर को सीबीआई की चिट्ठी के आधार पर कहा कि सीबीआई से शिकायत के संबंध में फाइलें मांगे हुए एक महीने का समय हो गया है. कमीशन ने माना कि सीबीआई की फाइल सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, लेकिन इसे सक्षम अधिकारी देख सकता है. कमीशन ने फिर से सीबीआई निदेशक को जरूरी जांच में मदद देने की सलाह दी और 22 अक्टूबर तक दस्तावेज दिखाने को कहा, लेकिन 23 अक्टूबर तक न तो दस्तावेज दिए गए और न ही समय सीमा बढ़ाने का अनुरोध किया गया.

10. इस दौरान सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने कई बार आलोक वर्मा पर मौखिक और लिखित आरोप लगाए और कहा कि उनके द्वारा लगाए गए 6 आरोपों की जांच से आलोक वर्मा और एके शर्मा को अलग किया जाए. इसके बाद कमीशन ने 25 सितंबर को कहा कि कमीशन को सीबीआई के किसी अधिकारी के खिलाफ सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन उसे जांच में निष्पक्षता बरतनी चाहिए.

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11. 25 सितंबर को सीबीआई निदेशक को एक और चिट्ठी भेजी गई और कहा गया कि कमीशन द्वारा मांगी गई जानकारी के बारे में कई रिमाइंडर भेजे गए, लेकिन 10 महीने बीतने के बाद भी कोई एक्शन नहीं लिया गया है. इस बारे में हुई आतंरिक रिपोर्ट का नतीजा 3 अक्टूबर तक बताने को कहा गया.

12. 3 अक्टूबर तक कोई जवाब नहीं मिलने पर सीबीआई निदेशक से सीवीसी से 4 अक्टूबर को राकेश अस्थाना के प्रतिनिधित्व के संदर्भ में मुलाकात करने को कहा गया. इसमें सीबीआई निदेशक नहीं आए.

13. 15 अक्टूबर को एक और चिट्ठी सीबीआई निदेशक को भेजी गई. इसमें सीबीआई के किसी भी अधिकारी के खिलाफ जांच से पहले आवश्यक अनुमति लेने को कहा गया. सीबीआई निदेशक से फिर से जरूरी दस्तावेज मुहैया कराने को कहा गया.

14. इस दौरान पता चला कि 15 अक्टूबर को सीबीआई ने हैदराबाद के सतीश बाबू साना की शिकायत पर एक केस दर्ज किया है, जो कि सीबीआई के विशेष निदेशक द्वारा जांच किए जा रहे मामले में आरोपी है. इस बारे में विशेष निदेशक का दावा है कि उन्होंने इसकी गिरफ्तारी की इजाजत मांगी थी, जो कि सीबीआई निदेशक से नहीं मिली. राकेश अस्थाना कमीशन के सामने 12, 18, 19 और 20 अक्टूबर को पेश हुए. 20 अक्टूबर को निदेशक को सीबीआई के डीएसपी देविंदर कुमार ने चिट्ठी लिखी कि सतीश बाबू से उनके संपर्क के झूठे आरोपों में उनके घर की तलाशी ली जा रही है, जबकि उन्होंने पहले ही सतीश की गिरफ्तारी और पूछताछ करने की अपील की थी, जिसे आज तक मंजूरी नहीं मिली. उन्होंने कहा कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है. कमीशन को यह चिट्ठी 22 अक्टूबर को मिली.

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15. 22 अक्टूबर को सीबीआई की SIT के संयुक्त निदेशक साईं मनोहर ने कमीशन को राकेश अस्थाना के रिकॉर्ड के हवाले से चिट्ठी लिखी कि मोइन कुरैशी केस में सूत्रों के हवाले से पता चला है कि सीबीआई निदेशक को 2 करोड़ रुपये की घूस दी गई.

16. कमीशन ने माना कि सीबीआई निदेशक जांच में मदद नहीं कर रहे हैं और कोई फाइल उपलब्ध नहीं कराई. तीन हफ्ते मांगने के बाद भी कोई रिकॉर्ड सबमिट नहीं किया गया.

17. सीवीसी ने आरोप लगाया कि उसने इस बात को गौर किया कि सीबीआई ने इसी तरह दूसरे मामलों में भी रिकॉर्ड नहीं पेश किए.

18. सीवीसी ने कहा कि सीबीआई ने मामले की जांच में सहयोग नहीं किया. सीवीसी के काम में जानबूझकर रोड़ा अटकाया गया.

19. रिपोर्ट में कहा गया कि CVC एक्ट के सेक्शन 8 (1) (a) सीवीसी को सीबीआई के कार्यों की निगरानी करने का अधिकार है. जहां तक भ्रष्टाचार के इन आरोपों की बात है, तो भ्रष्टाचार कानून के तहत सीवीसी इसकी जांच करने के लिए प्रतिबद्ध है.

20. सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उसको कैबिनेट सचिव ने 24 अगस्त 2018 को शिकायत दी थी, जिसके बाद उसने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सीबीआई से मामले में रिकॉर्ड पेश करने को कहा, लेकिन 40 दिन गुजर गए और रिकॉर्ड पेश नहीं किया गया. जब सीबीआई ने रिकॉर्ड पेश नहीं किया और सहयोग नहीं किया, जिसके चलते सीवीसी इन गंभीर आरोपों के मामलों अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर पा रही है.

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21. सीबीआई के अंदर झगड़ा काफी बढ़ गया है, जिससे जांच एजेंसी की गरिमा को भी नुकसान हुआ है. सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दूसरे शीर्ष अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने की खबरें मीडिया में भी खूब चलीं, जिससे भी जांच एजेंसी के अंदर वर्किंग एनवायरनमेंट (Working environment) खराब हुआ. इसका असर सीबीआई के दूसरे अधिकारियों पर पड़ा.

22. दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (DSPE Act) का सेक्शन- 4 (1) सीवीसी को सीबीआई की निगरानी करने का अधिकार देता है. इसके अलावा CVC एक्ट का सेक्शन 8 (1) (a) और (b) भी सीवीसी को सीबीआई के कार्यों की superintendence करने का अधिकार देती है. इसको अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी superintendence की व्याख्या की है. भ्रष्टाचार कानून के तहत आलोक वर्मा के खिलाफ केस दर्ज हैं और कई मामलों की जांच किया जाना बाकी है. ऐसे में उनको डायरेक्टर पद की शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

23. सीवीसी ने कहा कि सीबीआई में आपातकाल जैसे हालात पैदा होने के कारण यह रिपोर्ट दी गई है. हालांकि इस रिपोर्ट के आधार पर फैसला लेने के पहले नेचुरल जस्टिस यानी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किया जाए.

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