नम, खारी और दर्द से भरी इरफान की वो आंखें, एक तस्वीर की कहानी

इरफान की एक्टिंग में एक अजब सी ऊर्जा और आक्रामकता थी. एक तेज़ी थी, पैनापन था. वह हर किरदार को पर्दे पर जीवंत कर देते थे. एकदम सहज स्वाभाविक. ऐसा महसूस होता था कि ये जो एक्टर विश्वस्तर पर छा रहा है, अपने आसपास का ही कोई है, हममें से एक है.

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फिल्म अभिनेता इरफान खान (Photo Credit: Bandeep singh, Photo Editor India Today Group) फिल्म अभिनेता इरफान खान (Photo Credit: Bandeep singh, Photo Editor India Today Group)

बंदीप सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 07 मई 2020,
  • अपडेटेड 10:08 AM IST

फोटोग्राफर में हमेशा एक व्याकुलता होती है. व्याकुलता कि वो लीक से हटकर कुछ अलग तस्वीरें आपको दिखाए और आपकी चेतना के सरोवर को कोलाहल से, लहरों से, उत्क्षेप से भर दे. यह व्याकुलता और इसपर इरफ़ान जैसा एक्टर. मुझे कुछ स्मरणीय होने का अंदेशा था.

इरफान की एक्टिंग में एक अजब सी ऊर्जा और आक्रामकता थी. एक तेज़ी थी, पैनापन था. वह हर किरदार को पर्दे पर जीवंत कर देते थे. एकदम सहज स्वाभाविक. ऐसा महसूस होता था कि ये जो एक्टर विश्वस्तर पर छा रहा है, अपने आसपास का ही कोई है, हममें से एक है.

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उनकी तस्वीरों में एक चमक है. बंद होठों से बोलता हुआ चेहरा और आपके अंदर तक झांकती आंखें. अगर आप एक फोटोग्राफर हैं, उन्हें शूट कर रहे हैं और उनकी बड़ी-बड़ी, ऊर्जा से लबरेज आंखों को अपने कैमरे में कैद नहीं किया तो वह ऐसा ही है जैसे एक अद्भुत सूर्यास्त में सूरज का तस्वीर में न होना.

मैं भी उनकी आंखों से आगे नहीं बढ़ सका. मैंने पहली बार 10 साल पहले उनकी फोटोग्राफी की थी. उनका कैमरे के लैंस से गजब का तालमेल था और मैंने इरफान की आंखों की गहराई वाली कई तस्वीरें कैमरे में कैद कर ली.

लेकिन उनकी कई शानदार फिल्में देखने के बाद मैं एक अभिनेता को कैमरे में कैद करना चाहता था, सिर्फ उनकी बड़ी-बड़ी आंखों को कैमरे में घूरते हुए नहीं बल्कि उनके अभिनय को कैद करना चाहता था. जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरे दिमाग में ये कीड़ा घर करता गया. मैं अगले मौका की तलाश में था. और आखिरकार वह मौका आ ही गया.

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यह साल 2016 था. देश पर कट्टरपंथ के काले बादल छाए हुए थे. तब हमलोगों ने अपने समय की सबसे खराब मॉब लिंचिंग देखी. गौ-रक्षकों ने लोगों में दहशत पैदा कर रखी थी. कई बड़े-बड़े लेखक और स्कॉलर इन घटनाओं पर सरकार की चुप्पी और बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में अपने-अपने पुरस्कार लौटा चुके थे.

इंडिया टुडे मैग्जीन अपना स्वतंत्रता दिवस विशेषांक लाने वाला था जिसमें देश के अलग-अलग हिस्से के लोगों से उनके विचार संजोए जाने थे कि वे स्वतंत्रता का मतलब क्या समझते हैं. मुझे उस विशेषांक के लिए कवर फोटो लेना था. मैं एक ऐसी तस्वीर खींचना चाहता था जो लोगों के दर्द को दर्शा सके, उनकी पीड़ा को महसूस करा सके.

इस विशेषांक के एक लेखक इरफान भी थे. उन्होंने इस्लाम में जानवरों की कुर्बानी प्रथा पर सवाल उठाए थे और उनके इस विचार के लिए उनपर हमले हो रहे थे. मुझे उनकी भी फोटो लेनी थी. इसी दौरान वो एक फिल्म के प्रमोशन के लिए हमारे ऑफिस के स्टूडियो में थे.

(Photo Credit: Bandeep singh, Photo Editor India Today Group)

क्राई फ्रीडम

सबसे पहले यह विचार आया कि उनकी बंद आंखों वाली एक तस्वीर ली जाए लेकिन वह बहुत आसान था और मैंने पहले कई लोगों की ऐसी तस्वीरें ली थी. उधऱ मेरे दिमाग में शब्दों का कोलाहल गूंज रहा था. उमड़ते-घुमड़ते शब्दों के मंथन में से एक शब्द उभरा- 'क्राई फ्रीडम' ये 80 के दशक की एक फिल्म थी जिसका पोस्टर, जो कहीं मेरे जेहन में दबा था, अचानक उभरकर खयालों की दीवार पर चिपक गया. मुझे जैसे एक डोर मिल गई थी जिसके ज़रिए मैं अपनी तस्वीर तक पहुंचना चाहता था.

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मैं खुद से बोला कि कैसा हो अगर इस तस्वीर की आंखों में आंसू हो! क्या यह उस मुद्दे पर जोरदार कमेंट नहीं होगा? इरफान की आंखों में आंसू.... उनकी यह तस्वीर लोगों को देखने पर विवश करेगी और यह उनके चेहरे को ही नहीं बल्कि उनके अभिनय को भी दर्शाएगा. इस तस्वीर के जरिए लोग उन्हें काफी नजदीक से महसूस कर सकेंगे. ऐसे कितने ही विचार और उनके लिए फोटो के संयोजन के तर्क मेरे मन में आ रहे थे.

मैं उनसे मिला, उन्हें पहले की शूटिंग के बारे में याद दिलाया. मैंने अपने बैकअप के लिए कुछ तस्वीरें ले लीं और फिर उन्हें अपने कंसेप्ट के बारे में बताया कि मैं ऐसा क्यों करना चाहता हूं. मैंने कहा- इरफान भाई, जरा सोचिए अगर एक बड़े और मुख्य अभिनेता की आंखों में आंसू हो तो स्वतंत्रता दिवस विशेषांक के लिए यह कितना बड़ा कमेंट होगा. लेकिन एक्टर ज्यादातर फोटो शूट के दौरान अभिनय करना नहीं चाहते हैं और खासकर ऐसे फोटोग्राफर के सामने जिन्हें वह पर्सनली नहीं जानते. और कैमरा के सामने रोना, यह उनके लिए आसान नहीं होता.

उन्होंने यह कहते हुए मेरा अनुरोध टाल दिया कि आज उन्हें कई जगह जाना है. उनके जाते-जाते मैंने कहा- आप ध्यान में जरूर रखिएगा, हम इसे फिर कभी करेंगे.मेरे पास उनकी कई तस्वीरें थीं लेकिन मेरे दिमाग में उनकी आंसू वाली फोटो लगातार घूम रही थी. इसे मुझे पूरा करना था.

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फोटोशूट

सौभाग्य से उसी सप्ताह इंडिया टुडे टीवी सीरीज ''अनफॉरगेटेबल'' के लिए इरफान को नसीरुद्दीन शाह के साथ बातचीत करनी थी और उनके पोर्ट्रेट के लिए एक फोटोग्राफर की मांग की गई थी. मैंने इस मौके को लपक लिया.

मैंने मुंबई स्थित ताज लैंड के बैंक्वेट हॉल के गलियारे में लाइट सेटअप कर लिया था. नसीरुद्दीन शाह समय पर आ गए. मैंने उनका पोर्ट्रेट कर लिया और इरफान का इंतजार करने लगे. आधे घंटे के बाद वह पहुंचे. शो के प्रोड्यूसर रिकॉर्डिंग कर रहे थे. मेरे पास दोनों को एकसाथ शूट करने के लिए मुश्किल से दो मिनट थे.

इस बार इरफान ने मुझे पहचान लिया. इरफान ने जैसे ही हाथ जोड़कर नसीर साहब को झुककर सलाम किया, नसीर का गुस्सा गायब हो गया. जैसे ही उनलोगों ने रिकॉर्डिंग के लिए हॉल में प्रवेश किया, मैंने उनसे आहिस्ता से फिर आग्रह किया- इरफान भाई हमें वह 'रोने वाला' शूट करना है और मेरे मुंबई आने की यही मुख्य वजह है. उन्होंने स्टेज पर चढ़ते हुए कहा- बाद में करते हैं-शो के बाद. मेरे अंदर उम्मीद की किरन जग गई.

भारतीय सिनेमा के दो दिग्गजों के बीच हुई बातचीत मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी. दोनों प्रतिभा के पावरहाउस, अभिनय की बारीकियों और अपनी व्यक्तिगत यात्राओं पर चर्चा कर रहे थे. (यह बातचीत यूट्यूब पर 'इंडिया टुडे अनफॉरगेटेबल' शीर्षक से देखी जा सकती है.)

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जब दोनों की शानदार बातचीत की शूटिंग खत्म हुई तो वे गलियारे पर लगे सोफे पर बैठ गए. दोनों के बीच वार्ता जारी रही लेकिन अब शूटिंग नहीं हो रही थी. दोनों अब ज्यादा खुलकर बातचीत कर रहे थे अपने-अपने विचार रख रहे थे. कुछ और कुर्सियां लगाई गईं. बातें, वाइन और सहजता... एक यादगार शाम हम सबके हिस्से में नुमाया हो गई थी. सभी लोग निश्चिंत थे लेकिन इस दौरान एक मैं ही था जो बेचैन था. मुझे अपने शूट की चिंता हो रही थी. मेरा सहायक भूखा था लेकिन मैंने उसे लाइट का सेटअप तैयार रखने को कहा.

अब आधी रात होने को थी, सभी लोग थक चुके थे. इरफान अबतक कागज़ में सुलगकर उठते धुंए पर सवार एक रूमानी दुनिया में दाखिल हो चुके थे. ऐसे, जैसे गोया धरती पर बस एक जोड़ा पैरों की चहलकदमी है जो रूमानियत और भौतिक सच के बीच तालमेल बैठाने की कोशिश पर लड़खड़ाती आगे बढ़ रही थी. विचार, तबीयत, शरीर, सोच... सब उस नशीले आगोश में लोबान की तरह बहके-महके नज़र आ रहे थे. इरफ़ान बीच से उठे और निकलने को तैयार दिखे.

मैंने रास्ता रोकते हुए कहा- इरफान भाई... सिर्फ दो मिनट लगेंगे...यार फिर कभी कर लेंगे...अपने चेहरे की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अभी इसे करने की स्थिति में वे नहीं हैं. मुझे अपनी तस्वीर गायब होती महसूस हुई. लेकिन इसके बाद जो हुआ वह बॉलीवुड के किसी फिल्मी सीक्वेंस की तरह है.

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जैसे ही वो मुड़ने वाले थे, मैंने दिल से मानो चुनौती देते हुए उनसे कहा, अभी आपने अपनी बातचीत में कहा कि कलाकार का काम साधारण के सांचे को तोड़ना होता है. मैं वही करने की कोशिश कर रहा हूं और आप जा रहे हैं. वह वापस मुड़कर रुक गए. उन्होंने कहा- ''अरे यार! चलो, करते हैं.'' फिर उन्होंने अपने मेकअप वाले से कुछ कहा और उसने उन्हें आई ड्रॉप की एक शीशी दी.

और फिर वो आंखें...

मैं एक्शन में आ गया और अपने सहायक को निर्देश देने लगा. इसे एक स्लो मोशन सीक्वेंस के रूप में समझें...वह लाइट के नीचे खड़े हो गए. मैं अपना कैमरा अपनी आंखों तक लाया...उनके चेहरे की मांसपेशियों से एक पीड़ा झलक रही थी, दर्द दिख रहा था. वह एक ऐसे आदमी की तरह लग रहे थे, जो अंदर किसी गुस्से से उबल रहा हो. मैं इसे अपने कैमरे के लेंस से महसूस कर रहा था. उनकी आंखों की नमी आंसू की बूंद में बदल गई. मैंने एक शॉट ले लिया था...मैं अब उनके चेहरे को नहीं देख रहा था, सिर्फ उनकी बाईं आंख से गिर रही बूंद को देख रहा था...वह गिरी...और कैमरे ने अपना काम किया...

क्या मैंने शूट कर लिया? मेरे पास चेक करने का समय नहीं था, मैं दाईं आंख से गिरने को तैयार बूंद को देख रहा था...जैसे ही बूंद गिरी, उसी समय फ्लैश लाइट चमकी. ''तुम्हे शॉट मिल गया'', उन्होंने कहा.

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मैंने कैमरे को देखा. मैंने आंसू की गिरती बूंद को शूट कर लिया था और इरफान का एक्सप्रेशन बदल गया था, उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी. मैं घबराकर अपना चेहरा उठाते हुए बोला, "भाई एकबार और...क्या हम एकबार और कर सकते हैं.''

लेकिन तबतक वह जा चुके थे. मुझे एहसास हुआ कि यह सब खत्म हो चुका है. ऐसा लगा जैसे मैं हार गया, मैं कुर्सी पर बैठते हुए अपने कैमरे की स्क्रीन को देखने लगा... मेरे पास ऐसा शॉट था जो करीब-करीब मेरे मन का था. फिर कुछ सोचकर मैंने पहले शॉट को देखने के लिए रोल किया...

मुझे मेरा शॉट मिल गया था. वो कैमरे में दर्ज हो चुका था.... एक वरदान की तरह... गिरती हुई बूंद उनके गाल पर जम गई थी और उनकी पीड़ा को दर्शा रही थी... तब एहसास हुआ कि इरफान इसी शॉट के बारे में कह रहे थे. एक गहरी सांस लेते हुए मैं मुस्कुराने लगा. मुझे मेरी तस्वीर मिल गई थी और... मेरी दाहिनी आंख में अब एक आंसू गिरने को तैयार था.

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