क्या BMC के नतीजों ने खत्म कर दिया है राज ठाकरे का सियासी करियर?

बीएमसी में मिली करारी हार के बाद क्या महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे और उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना(मनसे)पर संकट के बादल मडराते दिख रहे हैं?

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राज ठाकरे राज ठाकरे

विकास कुमार

  • मुंबई,
  • 24 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 11:11 AM IST

बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) में मिली करारी हार के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे और उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना(मनसे) पर संकट के बादल मडराते दिख रहे हैं. बीएमसी चुनाव में पार्टी को केवल सात सीटें मिली हैं.

यह चुनाव मनसे के लिए अपने डूबते हुए राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की लड़ाई थी.

क्या राज ठाकरे का अस्तित्व खतरे में है?
बीएमसी में मिली करारी हार के बाद यह चर्चा गर्म है कि राज ठाकरे का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले कई चुनावों से पार्टी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ रहा है. फिर भी फिलहाल यह कहना जल्दीबाजी होगा कि राज ठाकरे का अस्तित्व खतरे में है.

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राजनीति में कोई भी पार्टी हमेशा शक्तिशाली नहीं रहती. कद घटते-बढ़ते रहते हैं. हालांकि यह भी एक सच्चाई है कि अगर राज ठाकरे अपनी राजनीति और राजनीति करने के तरीकों में बदलाव नहीं करते तो आगे की राह मुश्किलों भरी हो सकती है.

क्या 'मराठी मानुष’ का राग काम नहीं आ रहा?
साल 2006 में शिवसेना से अलग होकर राज ठाकरे ने अपनी पार्टी मनसे बनाई थी. राज ठाकरे ने अपनी पार्टी का मुख्य एजेंडा 'मुंम्बई, मराठियों के लिए’ को बनाया. पार्टी के कार्यकर्ताओं ने समूचे मुंम्बई में उत्तर भारत खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश से रोजी-रोटी कमाने आए लोगों को निशाना बनाया.

संभव है कि राज ठाकरे ने सोचा हो कि वो इस भावनात्मक मुद्दे के सहारे बाकी पार्टियों को आसानी से हरा देंगे और सत्ता के करीब पहुंच जाएंगे लेकिन वास्तव में ऐसा हुआ नहीं. उल्टे पार्टी को चुनाव दर चुनाव नुकसान हुआ. पिछले साल बीएमसी चुनाव में 28 सीटें जीतने वाली मससे इस बार के चुनाव में 7 सीटों पर सिमट गई.

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2009 के विधनासभा चुनाव में 288 में से 13 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली मनसे 2014 के चुनाव में एक सीट पर सिमट गई और 203 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 288 में से 218 सीटों पर अपने उम्मीदवार उताड़े थे.

ये सारे आंकड़े इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि मुंम्बई और महाराष्ट्र के मतदाताओं को केवल 'मराठी मानुष’ का राग अलापने वाली पार्टी पसंद नहीं आ रही.

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