जितना काला धन आएगा, उतना जीडीपी जाएगा, परेशानी आपका बोनस है

देश में नकद नारायण पर कर्फ्यू की घोषणा प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर की रात की थी. उसके बाद से देश में सारे मुद्दे खत्म हैं और देश की आबादी का कम से कम 80 करोड़ हिस्सा बैंक और डाकखानों की करीब दो लाख शाखाओं से एक अदद दो हजार रुपये का नोट हासिल करने के लिए हलकान है.

Advertisement
500-हजार के नोट बंद होने से लोग परेशान 500-हजार के नोट बंद होने से लोग परेशान

पीयूष बबेले

  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 6:50 PM IST

देश में नकद नारायण पर कर्फ्यू की घोषणा प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर की रात की थी. उसके बाद से देश में सारे मुद्दे खत्म हैं और देश की आबादी का कम से कम 80 करोड़ हिस्सा बैंक और डाकखानों की करीब दो लाख शाखाओं से एक अदद दो हजार रुपये का नोट हासिल करने के लिए हलकान है. देश के ज्यादातर कारोबार एक अघोषित बंद की जद में है. ऐसे में लगातार इस बात का इंतजार किया जा रहा था कि कोई औद्योगिक संगठन तुरंत यह आकलन पेश करेगा कि देश में ज्यादातर काम-काज ठप हो जाने से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को कितना नुकसान होगा. यह भी कि यह नुकसान वसूल किए जाने वाले काले धन की तुलना में कम होगा या ज्यादा. लेकिन भारत बंद या मजदूर संगठनों की हड़ताल में उसी शाम इस तरह के आंकड़े जारी करने वाले औद्योगिक संगठन इस बार चुप्पी लगा गए हैं. हो सकता है कि उन्हें डर हो कि कहीं उन्हें काले धन का हिमायती घोषित न कर दिया जाए.

Advertisement

ये सर्वेक्षण भले ही अब तक न आए हों, लेकिन इस तरह के पुराने सर्वेक्षण तो उपलब्ध हैं ही. जैसे फरवरी 2013 में जब मजदूर यूनियनों ने देशव्यापी बंद बुलाया तो औद्योगिक संगठन ऐसोचैम ने एक ही दिन में 26,000 करोड़ रुपये के जीडीपी का नुकसान होने का दावा किया. सितंबर 2016 में हुए इसी तरह के भारत बंद पर ऐसोचैम ने एक ही दिन में 16,000 से 18,000 करोड़ रुपये नुकसान होने का आकलन जताया. देश में एक्साइज ड्यूटी के खिलाफ हुई सुनारों की हड़ताल में ही 18 दिन में 60,000 करोड़ रुपये के जीडीपी के नुकसान का आकलन दिया गया. यह भी देखने में आता है कि संस्थाएं जितने नुकसान का अनुमान जताती है, बंद के बाद वास्तविक नुकसान का आंकड़ा अक्सर उससे ज्यादा होता है. इन आकलनों को गौर से देखें तो इनमें किया यह जाता है कि देश के साल भर के जीडीपी को 365 दिन से भाग देकर प्रति दिन का जीडीपी निकाल लिया जाता है. और नुकसान का आकलन प्राय: जीडीपी के 70 से 90 फीसदी के बीच आता है.

Advertisement

देश की मौजूदा हालत देखें तो दिहाड़ी मजदूरों का काम तो बुरी तरह ठप है. बाजारों की रौनक भी जाती रही है. बैंकों में भी सामान्य कामकाज होने के बजाय नोटों की अदला-बदली हो रही है. ऐसे में देश के 125 लाख करोड़ के सालाना जीडीपी (वर्तमान मूल्य पर) के हिसाब से एक दिन का जीडीपी 34,359 करोड़ बैठता है. स्थिर मूल्य पर रोजाना का जीडीपी 29161 करोड़ रु. बैठता है. इसका 80 फीसदी हुआ 23,328 करोड़ रु. और 70 फीसदी हुआ 20,412 रुपये तो अगर हम 70 फीसदी वाले नुकसान को मानकर ही चलें तो जीडीपी को 10 दिन में 2 लाख करोड़ से अधिक की चपत लगेगी. 11 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी बैंकिंग प्रणाली के पूरी तरह पटरी पर आने के लिए कम से कम 10 दिन लगने की बात कही है. तीन दिन पहले ही बीत चुके हैं. नोटों की बदली का यह पूरा खेल 50 दिन चलना है. ऐसे में जीडीपी को 3 से 5 लाख करोड़ की चपत लग जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है.

अब आते हैं इस पूरी मुहिम से वसूल होने वाले काले धन के सवाल पर. वित्त मंत्रालय के हवाले से यही कहा जा रहा है कि सरकार को उम्मीद है कि दो से तीन लाख करोड़ रुपये तक के नोट नंबर दो की कमाई के होंगे और इन्हें जमा करने की हिम्मत कोई नहीं दिखाएगा. ऐसे में सरकार के पास इतनी ही क्षमता के अतिरिक्त नोट छापने की शक्ति आ जाएगी. सीधी बात कहें तो अगर सब कुछ सरकार की मर्जी के मुताबिक हुआ तो दो से तीन लाख करोड़ रुपये के नोट अर्थव्यवस्था में मर जाएंगे और सरकार इतने ही नए नोट छापकर इसे कालाधन की वसूली मान लेगी. जो काफी हद तक सही है. यह रकम 125 लाख करोड़ रुपये सालाना जीडीपी वाली भारत की अर्थवयवस्था के 2 फीसदी के करीब बैठेगी. यानी इस पूरी मुहिम से देश की जीडीपी में 2 फीसदी का इजाफा होना चाहिए.

Advertisement

यानी जितना काला धन मिलने वाला है, उससे कहीं ज्यादा का नुकसान जीडीपी को हो सकता है. यानी देश को, देश का मतलब यहां के 125 करोड़ लोगों को, इस लंबी मुहिम से असल में बहुत ज्यादा फायदा नहीं होने वाला. जो करोड़ों लोग इन 50 दिन तक अपनी ही गाढ़ी कमाई को हासिल करने के लिए भिखारी की तरह कतारों में लगेंगे, जिन दिहाड़ी मजदूरों के घर चूल्हे नहीं जलेंगे, वे इसी मुगालते में खुश हो सकते हैं कि उनका चूल्हा नहीं जला तो क्या हुआ, किसी धन्ना सेठ के यहां नोट जरूर जले होंगे.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement