लव जेहाद शब्द पार्टी के राजनीतिक प्रस्ताव में कभी नहीं था. हमने इस शब्द से बचते हुए प्रस्ताव में इसकी परिभाषा का उपयोग किया है.” 23 और 24 अगस्त को वृंदावन में चली बीजेपी कार्यसमिति की दो दिन की बैठक के बाद लखनऊ में कार्यकारिणी के एक सदस्य ने कुछ इस अंदाज में पार्टी के इरादे जाहिर किए. उनका इशारा कार्यकारिणी में पारित दो पन्ने के राजनैतिक प्रस्ताव की 29वीं लाइन में लिखे वाक्य की ओर था, जिसमें लिखा है, “राज्य में वर्ग विशेष की महिलाओं से हो रहे दुराचार और उसमें एक विशेष वर्ग के लोगों का सम्मिलित होना महज संयोग है या योजना, यह चिंता का विषय है.”
कोई एक दशक से हिंदुत्व के स्वयंभू झंडाबरदार एक तजवीज पेश करते रहे हैं जिसमें मुसलमान लड़कों के एक साजिश के तहत हिंदू लड़कियों से शादी करने के किस्से होते हैं. हालांकि यह कभी तय नहीं हो पाया कि जो नजीरें वे पेश करते हैं, वे किसी जोड़े का निजी मामला है या वाकई उनमें इतना दम है कि उन्हें सामाजिक ट्रेंड कहा जा सके.
बहरहाल, यूपी में पिछले 12 साल से सत्ता का वनवास झेल रही बीजेपी ने बड़ी चतुराई से लव जेहाद को ध्रुवीकरण के एक घातक हथियार के रूप में चुन लिया है. कार्यसमिति के उद्घाटन सत्र में 23 अगस्त को प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने सुर छेड़ा, “यह (सपा) सरकार जन भावनाओं और होने वाली घटनाओं के ताप को या तो समझ नहीं रही या फिर मजहबी तुष्टीकरण नीति के कारण समझना नहीं चाहती. तभी तो मेरठ, अमानीगंज-फैजाबाद, लोनी-गाजियाबाद जैसी घटनाओं के अभियुक्तों के प्रति सरकार नरम दिखती है. आखिर जो दोषी हैं उनके प्रति नरमी क्यों? क्या मजहब विशेष का होने से उन्हें दुराचार करने का प्रमाणपत्र मिल गया है?” जाहिर है, उत्तर प्रदेश विधानसभा की 11 सीटों के लिए अगले महीने होने वाले उपचुनाव से पहले बीजेपी ने लव जेहाद का विरोध कर हिंदूवादी संगठनों के मंसूबों को हवा दे दी थी. बाजपेयी कहते भी हैं, “लड़कियों को बहलाने-फुसलाने के खिलाफ जनमत जागरण होगा” (देखें इंटरव्यू).
लेकिन क्या बाजपेयी और प्रदेश बीजेपी के नेता सिर्फ अपने बलबूते यह नया जिन्न बोतल से बाहर लाने में सफल रहे या उन्हें पार्टी केंद्रीय नेतृत्व का वरदहस्त प्राप्त है? इसके लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा. बात 19 अगस्त की है. उस दिन अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार अपनी विजय भूमि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचे. निरालानगर में राम मंदिर के जमाने के नारे “जय श्रीराम” की हुंकार भरी गई. शाह को सिर्फ मालाओं से नहीं लादा गया बल्कि एक खास रणनीति के तहत शाह को अयोध्या, मथुरा, काशी और विंध्याचल का प्रसाद और सिख समुदाय की ओर से सरोपा भेंट किया गया. मंच से अपने संबोधन में अमित शाह ने सपा सरकार पर एक विशेष वर्ग के तुष्टीकरण का आरोप लगाया. उन्होंने इशारा कर दिया कि हिंदुत्व और धु्रवीकरण की आजमायी हुई बारूद में तीली फेंकने का सही समय आ गया है.
यह महज संयोग नहीं है कि पिछले साल दंगों की आग में झुलस चुके पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ही एक धार्मिक शहर को कार्यसमिति के लिए चुना गया. बैठक शुरू होने से पहले बीजेपी ने सभी सदस्यों को राज्य में सपा सरकार बनने के बाद हुए दंगों, महिला अत्याचारों और मुस्लिम तुष्टीकरण की घटनाओं से जुड़े पर्चे बांटे. हिंदुत्व एजेंडे को धार देने के लिए बीजेपी ने नेताओं को सांप्रदायिक टकराव में पीड़ित हिंदुओं को कानूनी से लेकर हर तरह की मदद करने का निर्देश दिया है. ये सारी घटनाएं 22 साल पहले बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले हुए अनुष्ठान से खासी मेल खाती हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय में अरबी-फारसी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. खान आतिफ कहते हैं, “बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले बड़ी चतुराई से हिंदू और मुसलमानों को आमने-सामने खड़ा कर दिया था. पार्टी इसी माहौल को विधानसभा चुनाव तक बरकरार रखना चाहती है. दंगे और महिला अत्याचार रोक पाने में सपा की नाकामी और बीएसपी की निष्क्रियता ने बीजेपी के एजेंडे के लिए जगह बनाई है.”
ऐसे माहौल में कार्यसमिति में मौजूद पार्टी के फायर ब्रांड नेता विनय कटियार ने अपने विभाजक अंदाज में लव जेहाद के विरुद्घ संघर्ष का ऐलान कर डाला. कटियार कहते हैं, “पूरे प्रदेश में लव जेहाद चल रहा है. सपा सरकार प्यार के बहाने हिंदू लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराने वालों को संरक्षण दे रही है. प्रदेश सरकार को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.” मथुरा की सांसद हेमा मालिनी ने भी लव जेहाद के मसले को संसद में उठाने की बात कही है. यानी मामला गरम रहेगा.
असल में यूपी में 42 फीसदी वोट पाकर अपने सहयोगी के साथ कुल 73 सीटें जीतने वाली बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता अचानक बढ़े वोट बैंक को सहेजे रखने की है. मूल मुद्दा भले ही सांप्रदायिकता रहे, लेकिन जनता को जोड़े रखने के लिए इसके अंदर भी बहुत से अध्यायों की दरकार है. मुजफ्फरनगर दंगे को भुनाया जा चुका है. ऐसे में लव जेहाद जरखेज शिगूफा साबित हो सकता है. बीजेपी की राजनीति पर लंबे समय से नजर रख रहे लखनऊ विवि में राजनीति शास्त्र विभाग में प्रोफेसर डॉ. रमेश दीक्षित कहते हैं कि यूपी में बीजेपी कुछ वैसे हालात से गुजर रही है जैसा नब्बे के शुरुआती वर्षों में था. “राम मंदिर आंदोलन के दौरान वर्ष 1991 में बीजेपी ने यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में हालांकि बीजेपी ने क्रमशः 177 और 174 सीटें जीतीं लेकिन भावनात्मक मुद्दे की गैर-मौजूदगी और संगठन में निचले स्तर पर कुप्रबंध से पार्टी का जमीनी कार्यकर्ता छिटककर दूसरी पार्टियों में चला गया.”
अब बीजेपी यह नहीं चाहती, इसीलिए हिंदू संगठन बैंड-बाजा लेकर गड़े मुर्दों से लेकर नए मुद्दों तक की बारात निकालने पर आमादा हैं. सियासत एक बार फिर आपका इम्तिहान लेगी.
'लव जेहाद' के खिलाफ जागरण हो: लक्ष्मीकांत बाजपेयीबीजेपी प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी से इंडिया टुडे के विशेष संवाददाता आशीष मिश्र की बातचीत के अंश:
कथित लव जेहाद पर पार्टी का क्या स्टैंड है?
कार्यसमिति
में लव जेहाद जैसे किसी विषय पर कोई चर्चा नहीं हुई. एक वर्ग द्वारा
लड़कियों को बहलाने-फुसलाने और धोखा देकर ले जाने के खिलाफ हम अपने
कार्यकर्ताओं के माध्यम से गली-मुहल्ले में काम करने वाले सामाजिक संगठनों
को सक्रिय करेंगे. जनमत जागरण और कानून के दायरे में रहकर धरना-प्रदर्शन की
रणनीति भी बन रही है.
अमित शाह और राजनाथ सिंह ने अचानक
कार्यसमिति में आने का कार्यक्रम क्यों रद्द किया? क्या कथित लव जेहाद जैसे
मुद्दे से ये बड़े नेता बचना चाहते थे?
अचानक उपचुनाव की घोषणा हो
जाने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह संगठन के काम में काफी व्यस्त हो
गए. बाढ़ और नॉर्थ-ईस्ट की समस्या के चलते राजनाथ सिंह कार्यसमिति की बैठक
में नहीं आ सके.
कई पार्टी नेता सीधे तौर पर कथित लव जेहाद के खिलाफ आक्रामक बयान दे रहे हैं?
यह
उन नेताओं की व्यक्तिगत राय है जिसे गलत ढंग से पेश किया जा रहा है. एक
विशेष वर्ग द्वारा लड़कियों को बहला-फुसलाकर उनका शोषण करने की घटनाएं
लगातार सामने आ रही हैं. असल में यूपी में सपा सरकार बनने के बाद लड़कियों
पर सुनियोजित ढंग से अत्याचार के मामले तेजी से बढ़े हैं. पार्टी नेता
शुरुआत से इसका विरोध कर रहे हैं लेकिन अब उनके विरोध को लव जेहाद के खिलाफ
संघर्ष बताया जा रहा है जो कि गलत है.
क्या बीजेपी उपचुनाव के पहले कथित लव जेहाद जैसे मुद्दे उठाकर इसके जरिए ध्रुवीकरण की संभावना तलाश रही है?
लड़कियों
को बहलाने-फुसलाने, धोखे से उनका शोषण करने जैसी घटनाएं प्रदेश की सपा
सरकार की एक वर्ग विशेष वर्ग की तुष्टीकरण की नीति के चलते बढ़ी हैं. दंगों
का भी यही कारण है. सरकार को इसमें अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए. उपचुनाव तो
12 सीटों पर होने हैं, दंगे तो पूरे प्रदेश में हो रहे हैं.
आशीष मिश्र