नगर निगम में फेल हुई आप
दिल्ली नगर निगम पर बीते 10 साल से बीजेपी का परचम लहरा रहा है. बीजेपी ने दिल्ली नगर निमग में अपनी जगह 2007 के चुनावों में कांग्रेस को पटखनी देकर बनाई और उसके बाद से लगातार उसका वर्चस्व नगर निगम पर कायम रहा. हालांकि 2016 में हुए नगर निगम उपचुनावों में 13 सीटों में सर्वाधिक 5 सीटों पर जीत दर्ज कर दिल्ली पर शासन कर रही आम आदमी पार्टी ने अपना खाता खोला. लेकिन अब नगर निगम की 270 सीटों में महज आप को महज 41 सीट पर जीत मिलने के बाद साफ हो चुका है कि वह दिल्ली में बीजेपी के हाथों एक बड़ी हार का शिकार हुई है.
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पार्टी |
2002 |
2007 |
2012 |
2017 |
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बीजेपी |
16 |
164 |
138 |
181 |
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कांग्रेस |
108 |
67 |
77 |
30 |
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बीएसपी |
1 |
17 |
15 |
- |
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आप |
- |
- |
5 (मध्यावधि) |
48 |
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अन्य |
5 |
24 |
37 |
10 |
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कुल |
134 |
272 |
272 |
270 |
दिल्ली पर भी आप की पकड़ कमजोर
इन उपचुनावों के बाद माना जा रहा था कि 2017 एमसीडी चुनावों में आम आदमी पार्टी अपने प्रमुख प्रतिद्वंदी बीजेपी को नगर निगम से बाहर करने में सफल होगी. हालांकि 2016 में हुए मध्यावधि चुनावों के बाद राजनीतिक जानकारों का मानना था कि भले आम आदमी पार्टी अपना खाता खोलने में सफल हुई थी लेकिन दिल्ली राज्य में उसके पक्ष में पड़ने वाले वोट (वोट पर्सेंट) में कमी दर्ज होने से साफ है कि दिल्ली पर उसकी पकड़ विधानसभा चुनावों के अप्रत्याशित नतीजों के बाद कमजोर पड़ी है. अब एमसीडी चुनावों के नतीजों ने एक बार फिर दिखा दिया है कि दिल्ली पर आप की राजनीतिक पकड़ लगातार मजबूत हो रही है.
आम आदमी पार्टी (आप) का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव के मुकाबले आधा रह गया है. आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव के मुकाबले 26 प्रतिशत कम हुआ है. पार्टी को विधानसभा चुनाव में 54.3 प्रतिशत वोट मिले थे.
मोदी लहर से साफ हो गए छोटे राजनीतिक दल
दिल्ली नगर निगम चुनावों में 2007 में बीजेपी को 164 सीटों पर जीत दर्ज हुई थी. इन चुनावों में दूसरे नंबर पर 67 सीटों के साथ कांग्रेस और 17 सीटों के साथ मायावती की बहुजन समाज पार्टी थी. वहीं पांच साल बाद 2012 में हुए नगर निगम चुनावों में बीजेपी ने महज 138 सीटें जीती और कांग्रेस के खाते में 77 सीटें आई. इन दोनों चुनाव में सबसे खास यह रहा कि अन्य या छोटे राजनीतिक दलों और इंडीपेंडेंट ने मिलकर 2007 में 41 सीट और 2012 में 52 सीटों पर जीत दर्ज कर नगर निगम में अपनी अहमियत बनाई थी. लेकिन मौजूदा निकाय चुनावों में मोदी लहर के चलते जहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की उम्मीद पर पानी फिरा है वहीं छोटे राजनीतिक दलों का सफाया भी हो गया है.
राहुल मिश्र