इस महीने किए गए सियासी दलों के 2016-17 के वित्तीय विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा ने स्वाभाविक तौर पर चुनावों के साथ रोकड़े के मामले में भी अच्छा प्रदर्शन किया है. उस वित्त वर्ष में कांग्रेस के चंदे में कमी आई, वहीं भाजपा के खाते में सैकड़ों करोड़ रु. की आमद हुई.
चुनाव प्रचार अभियानों में यह दिखा भी, जहां भाजपा ने कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ दिया और कई राज्यों में सरकारें बनाकर देश की सियासत पर अपनी पकड़ मजबूत की. भाजपा की ज्यादातर आय स्वैच्छिक चंदे से आई है और इस चंदे में से ज्यादातर अज्ञात स्रोतों से मिली है.
तो जैसा कि कुछ आलोचकों का कहना है कि नोटबंदी के जरिए जिस काले धन पर निशाना साधा गया था, उसका एक बड़ा हिस्सा कहीं भाजपा के ही खाते में तो नहीं आ गया, चंदे की शक्ल में?
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राष्ट्रीय दलों ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में अपनी कुल कमाई 1,559.2 करोड़ रु. दिखाई जबकि उनका कुल खर्च 1,228.3 करोड़ रु. रहा.
321.6 करोड़ रु.
कांग्रेस ने खर्चे. यह वर्ष 2016-17 में कांग्रेस की
कुल आय से 96.3 करोड़ रु. ज्यादा है.
710.1 करोड़ रु.
भाजपा ने वर्ष 2016-17 में खर्चे. यह देश की कुल राष्ट्रीय पार्टियों की खर्च की गई रकम का 57.8 % है. 606.6 करोड़ रुपए ‘चुनाव/ आम प्रचार’ में खर्च हुए.
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राज्यों में भाजपा ने इस अवधि में जीत दर्ज की.
96.4%
भाजपा की कुल आय का या 997.1 करोड़ रु. ‘स्वैच्छिक दान’ के रूप में अज्ञात स्रोतों से प्राप्त हुआ. कांग्रेस को 50.6 करोड़ रु. स्वैच्छिक दान के रूप में अज्ञात स्रोतों से मिले.
1,034.27 करोड़ रु. भाजपा की 2017 की घोषित आय रही जो सभी राष्ट्रीय दलों की कुल आय का 66.3% है. कांग्रेस की आय 225.4 करोड़ रही यानी 4.5 % के बराबर.
31%
रकम भाजपा की कुल आमदनी में से बच गई जो कि 324.2 करोड़ के आसपास बैठती है. इस प्रकार भाजपा की बचत कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा रही.
463.4 करोड़ रु.
भाजपा की 2017 में अतिरिक्त आय रही. पिछले साल के मुकाबले इसमें 81% का उछाल देखा गया. कांग्रेस की आय में इस अवधि 14% की कमी आई.
138 दिनों की देरी से कांग्रेस ने ऑडिट रिपोर्ट पेश की. 30 अक्तूबर ’17 की बजाए 19 मार्च ’18 को. भाजपा की रिपोर्ट 99 दिनों की देरी से पेश हुई.
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संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर