अरविंद केजरीवाल की माफी की कीमत पार्टी को चुकानी पड़ेगी !

केजरीवाल ने 'असत्यापित' और 'बेबुनियाद' आरोप लगाने की बात कुबूल की और जोर देकर कहा कि अपने बयानों से उन्होंने जिन लोगों की मानहानि की थी, उनके खिलाफ उनके मन में 'कुछ भी निजी' नहीं था.

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उलटा पड़ता दांवः शांति लाने के केजरीवाल के उपायों से पार्टी अशांत उलटा पड़ता दांवः शांति लाने के केजरीवाल के उपायों से पार्टी अशांत

असित जॉली / संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर

  • नई दिल्ली,
  • 26 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 3:46 PM IST

साल 2016 में पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 'नशे के कारोबार में लिप्त होने' का आरोप लगाया और अब उनसे माफी मांग ली. ऐसा कर केजरीवाल अपनी बात से मुकर के बेइज्जत होने की जबरदस्त क्षमता का प्रदर्शन कर रहे हैं.

19 मार्च को उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल और उनके बेटे अमित सिब्बल के खिलाफ लगाए गए अपने आरोपों के लिए भी ऐसा ही पछतावा और मलाल जाहिर किया.

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अलग-अलग लिखित माफीनामों में केजरीवाल ने 'असत्यापित' और 'बेबुनियाद' आरोप लगाने की बात कुबूल की और जोर देकर कहा कि अपने बयानों से उन्होंने जिन लोगों की मानहानि की थी, उनके खिलाफ उनके मन में 'कुछ भी निजी' नहीं था.

लेकिन सियासी विरोधियों के खिलाफ  इस कदर जहर उगलने वाले नेता में अचानक इतना पश्चाताप कैसे आ गया? आम आदमी पार्टी के सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल 2013 से ही अपने खिलाफ  चल रहे मानहानि के 33 मुकदमों में से हरेक को कोर्ट के बाहर सुलह से निबटाना चाहते हैं.

इन मुकदमों का पार्टी के वित्तीय संसाधनों पर बुरा असर पड़ रहा है. सूत्रों के मुताबिक, 18 मार्च को डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के घर पर पंजाब के कुछ विधायकों से उन्होंने यह भी कहा कि श्चुनावी साल में वे अदालती मुकदमों में उलझे रहना नहीं चाहते.''

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सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्री अरुण जेटली, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और भाजपा नेता रमेश विधूड़ी—इन्होंने भी केजरीवाल के खिलाफ  मानहानि के मुकदमे दायर कर रखे हैं—के साथ जल्दी ही ऐसे ही सुलह-समझौतों की संभावना है. जेटली से भी उन्होंने माफी मांगी है लेकिन जेटली ने उन्हें माफ करने से इनकार करते हुए केस को अंजाम तक ले जाने की बात कही है.

अपने खिलाफ मुकदमों के निबटारे की केजरीवाल की कोशिशों ने, खासकर मजीठिया को दी गई उनकी 'क्लीन चिट' ने, आप के भीतर भारी संकट पैदा कर दिया. पार्टी की पंजाब इकाई दोफाड़ हो गई और उसके 20 में से 14 विधायक 'दिल्ली से दूरी बनाने' के लिए जोर देने लगे.

उनमें से कई तो 'नई क्षेत्रीय पार्टी' लांच करना चाहते हैं. कई विश्लेषकों का कहना है कि केजरीवाल ने 'नशे के कारोबार में मिलीभगत के लिए मजीठिया' को अलग से उनका नाम लेकर जिस तरह कठघरे में खड़ा किया था, उसने उस वक्त गद्दीनशीन अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के खिलाफ मतदाताओं में नाराजगी पैदा करने में मदद की थी.

पंजाब विधानसभा में आप के नेता सुखपाल खैरा ने 15 मार्च को एक ट्वीट में कहा, ''आज अरविंद केजरीवाल की माफी से हम नाराज और हैरान हैं, हमें यह मानने में कोई झिझक नहीं कि उनके कद के एक नेता के आत्मसमर्पण पर हमसे सलाह नहीं ली गई.''

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एक दिन बाद आप के राज्य संयोजक भगवंत मान और सह-संयोजक अमन अरोड़ा ने भी अपने इस्तीफे ट्वीट कर दिए, जिनमें मान ने इस 'नए तकलीफदेह घटनाक्रम' को इस्तीफे की वजह बताया. 17 मार्च को पंजाब के 14 विधायकों ने केजरीवाल के साथ सुलह की सिसोदिया की पेशकश को ठुकरा दिया.

खैरा की अगुआई में विधायकों ने कहा कि चीजों को बिगडऩे से बचाने का अकेला तरीका नई पार्टी लॉन्च करना है. दूसरी ओर, हाल ही में राज्यसभा की सदस्यता से नवाजे गए संजय सिंह ने 17 मार्च को मजीठिया को दी गई आप सुप्रीमो की 'क्लीन चिट' का समर्थन करने से इनकार कर दिया.

उन्होंने कहा, ''मैंने पहले जो कुछ भी कहा है, उस पर कायम हूं.'' पंजाब में तो तुरंत नतीजा आ गया, पर यह देखना होगा कि दिल्ली के मतदाता 'माफीनामों' पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं.

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