बिहार में होने वाले उपचुनाव में महागठबंधन की पार्टियों के बीच खींचतान जारी है. खासकर भभुआ में होने वाले उपचुनाव को लेकर आरजेडी और कांग्रेस आमने-सामने हैं. आरजेडी पहले ही ऐलान कर चुकी है कि वह बिहार में तीन सीटों पर होने वाले उपचुनाव पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. कांग्रेस को अररिया लोकसभा और जहानाबाद विधानसभा को लेकर कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन वो भभुआ सीट किसी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती है.
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में यह सीट जनता दल यू के खाते में थी, लेकिन जीत बीजेपी की हुई थी. अब जनता दल यू महागठबंधन का हिस्सा नहीं है. लिहाजा इस सीट पर कांग्रेस अपना दावा कर रही है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह का कहना है कि पिछले चुनाव में भभुआ सीट पर न तो आरजेडी खड़ी थी और न कांग्रेस. ऐसे में वहां की राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए यह सीट कांग्रेस के खाते में जाना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस यहां से पहले सात बार विजयी हुई है, जबकि आरजेडी दो ही बार इस सीट को जीत पाई हैं. समाजिक समीकरण के हिसाब से यह सीट कांग्रेस को शूट करता है, ऐसे में यह सीट कांग्रेस को ही मिलना चाहिए.
हालांकि आरजेडी तीनों सीटों के लिए उम्मीदवारों को भी तय कर चुकी है. आरजेडी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राबड़ी देवी ने पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में कहा कि हमने तीनों सीट पर लड़ने का फैसला किया है. कांग्रेस की तरफ से कोई बातचीत करने नहीं आया है. उन्हें बात करने आना चाहिए. पर सवाल उठता है कि जब महागठबंधन की पार्टियों के बीच कोई बातचीत ही नहीं हुई, तो आखिरकार आरजेडी ने तीनों सीटों पर उम्मीदवार उतरने का ऐलान कैसे कर दिया?
कांग्रेस यह भलीभांति जानती है कि अगर इस बार वो भभुआ सीट के लिए नहीं लड़ती है, तो उसे इसका खामियांजा आने वाले चुनाव में भुगतना पड़ सकता है. इसलिए उसने अपने रुख में तल्खी लाई है और कहा है कि अगर उसे भभुआ सीट नहीं मिली, तो वो तीनों सीटों पर उम्मीदवार उतार सकती है.
दूसरी तरफ आरजेडी यह चाहती है कि कांग्रेस सिर्फ भभुआ सीट लडे़, क्योंकि उससे उसे फायदा होगा. भभुआ सीट ब्राह्मण बाहुल क्षेत्र है. ऐसे में अगर कांग्रेस यहां से अपना उम्मीदवार खड़ा करती है, तो बीजेपी का वोट काटेगा और आरजेडी को इससे फायदा होगा, लेकिन अगर कांग्रेस अररिया लोकसभा के उपचुनाव में मैदान में उतरती है, तो नुकसान आरजेडी का होना तय हैं.
राम कृष्ण / सुजीत झा