मोदी सरकार ने जब 500 और 1000 के नोट बंद करने की घोषणा की थी तो इसके पीछे कालेधन के अलावा आतंकियों, नक्सलियों और उग्रवादियों से लड़ने का भी तर्क दिया गया था. खुफिया और पुलिस अधिकारियों द्वारा एक आकलन के अनुसार, सरकार का ये फैसला नक्सलियों की गतिविधियों को कमजोर करने में सबसे कारगर साबित होगा. नक्सलियों के डंप में रखे करोड़ों रूपए के कचरे में बदलने की संभावना है.
जानकारों का मानना है कि ये फैसला पिछले कुछ सालों में चलाए गए ऑपरेशंस से भी ज्यादा कारगार साबित होगा. नक्सलियों के गढ़ छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के जंगलों में इनका काफी कैश मौजूद है. नक्सलियों ने जंगलों में पैसा गाड़ रखा है. सूत्रों की मानें तो नक्सली इन पैसों को जंगलों से बाहर लाने का प्रयास कर सकते हैं, जिस पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है.
नक्सलियों के पास ये पैसा विभिन्न जगहों से उगाही किए गए पैसों का ही हिस्सा है. यह पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों की सूरत में है. राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के मुताबिक नक्सली राज्य से प्रति वर्ष लगभग डेढ़ हजार करोड़ रूपए की उगाही करते हैं. यह उगाही खदानों से, विभिन्न उद्योगों से, तेंदूपत्ता और सड़क ठेकेदारों से, परिवहन व्यवसायियों से, लकड़ी व्यापारियों से और अन्य स्थानों से की जाती है. यह पैसा नक्सली अपने वरिष्ठ नेताओं को भेजते हैं जहां से अलग अलग जगहों पर विभिन्न मदों में खर्च के लिए दिया जाता है.
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित राजनांदगांव जिले में वर्ष 2014 के मार्च महीने में पकड़े गए नक्सलियों की निशानदेही पर जंगल में डंप किए गए गड्ढे से 29 लाख रुपये बरामद किए गए थे. वहीं पुलिस ने इस वर्ष मई महीने में गरियाबंद जिले में मुठभेड़ के बाद घटनास्थल से आठ लाख रूपए बरामद किए थे, जबकि जुलाई महीने में सुकमा जिले में नक्सलियों से एक लाख रुपये बरामद किया गया था.
लव रघुवंशी