ऑस्ट्रेलिया ने गूगल और FB से ऐड रेवेन्यू मीडिया फर्म्स से शेयर करने को कहा

कोरोना वायरस संकट के बाद कई देश अब फेसबुक और गूगल से देश में की कई कमाई शेयर करने को कह रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया ने इस पर काम शुरू कर दिया है.

Advertisement
Representational Image Representational Image

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 21 अप्रैल 2020,
  • अपडेटेड 2:17 PM IST

फेसबुक और गूगल जैसी इंटरनेट बेस्ड कंपनियां आम तौर पर उन्हीं देशों के लिए पैसा बनाती हैं जहां की ये होती हैं. दूसरे देशों में ये अपना बिजनेस तो करती हैं, लेकिन फिर भी कुछ देश इससे खुश नहीं हैं.

ऑस्ट्रेलिया ने फेसबुक और गूगल से कहा है कि वो देश में कि गए एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू का हिस्सा लोकल मीडिया फर्म के साथ शेयर करें. गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया पहला देश बन गया है जिसने डिजिटल प्लैटफॉर्म से कॉन्टेंट के लिए पैसे मांगे हैं.

Advertisement

ऑस्ट्रेलिया में वहां के लोकल मीडिया प्लेयर्स ये शिकायत करते हैं कि बड़ी टेक कंपनियों का दबदबा एडवर्टाइजिंग में ज्यादा है. ऐसे में उनकी कमाई का मुख्य जरिया भी विज्ञापन ही है.

ट्रेजरर फ्राइडेनबर्ग ने कहा है, 'हम समझते हैं कि जो चैलेंज हम फेस कर रहे हैं और ये बड़े माउंटने पर चढ़ने जैसा है'. उन्होंने ये भी कहै है कि ये बड़ी कंपनियां हैं जिससे हम डील कर रहे हैं, लेकिन हमलोग का बहुत कुछ दांव पर है, हम इस लड़ाई के लिए तैयार हैं.

ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने देश की ऑस्ट्रेलियन कॉम्पटीशन एंड कंज्यूमर कमीशन (ACCC) को मैंडेटरी कोड ऑफ कंडक्ट फ्रेम करने को कहा है जो डिजिटल प्लैटफॉर्म और मीडिया आउटलेट्स के बीच पेमेंट के नियम बना सके.

फ्रायडेनबर्ग ने कहा है कि मैनडेटरी कोड में डेटा शेयरिंग, न्यूज की रैंकिंग और डिस्पले से लेकर न्यूज से जेनेरेट होने वाले रेवेन्यू शामिल होंगे.

Advertisement

यह भी पढ़ें - FB ने भारत में लॉन्च किया गेमिंग ऐप, बिना डाउनलोड किए खेल सकेंगे गेम

फेसबुक और गूगल ने एक तरह से डिजिटल कॉन्टेंट पर अपना कब्जा जमा लिया है और ये किसी मुल्क तक लिमिटेड नहीं है, बल्कि दुनिया भर में ऐसा है. फेसबुक और गूगल न्यूज ऑर्गाइजेशन के साथ रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल पर भी काम करते हैं.

हालांकि मौजूदा बिजनेस मॉडल में कुछ खामियां भी हैं. इस वजह से गूगल और फेसबुक उन कॉन्टेंट से भी पैसा बनाते है जिन्हें वो कभी नहीं बनाते है और जो असल कॉन्टेंट निर्माता होते हैं उन्हें रेवेन्यू का बहुत कम हिस्सा ही मिल पाता है.

दूसरी तरफ न्यूज ऑर्गनाइजेशन की बात करें तो यहां जर्नलिस्ट हायर किए जाते हैं, टेक्निकल स्टाफ से लेकर कॉन्टेंट जेनेरेशन का सिस्टम बनाने में करोड़ों रुपये खर्च करने होते हैं. इसके अलावा फोटो से लेकर न्यूज एजेंसियों को पैसे देने होते है.

यानी किसी कॉन्टेंट को बनाने के लिए पूरा पैसे न्यूज ऑर्गनाइजेशन का लगता है, लेकिन उसी कॉन्टेंट से फायदा फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियां उठाती हैं.

गौरतलब है कि कोरोना वायरस संकट से पहले इस तरह की बातें उठी नहीं थीं, लेकिन अब कई देशों को इस बात का अंदाजा हो रहा है और अब इसे लेकर पॉलिसी पर काम किया जा रहा है.

Advertisement

फ्रांस भी उन देशों में जहां कोरोना का संकट ज्यादा है और इससे प्रभावित लोगों की संख्या भी. इस देश ने गूगल को आदेश दिया है कि वो पब्लिशर्स को उनके कॉन्टेंट यूज के लिए पैसे दें.

हालांकि भारत ने अब तक ऐसे कुछ भी नहीं कहा है और न इस बारे में यहां किसी तरह की बातचीत हो रही है. क्या भारत भी इन देशों की तरह गूगल और फेसबुक को आदेश देगा?

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement