भाईचारे के लिए साथ आए गुजरात दंगे का आरोपी और पीड़ित

सांप्रदायिक नफरत इंसान के तौर पर कैसे आपको तबाह कर देती है, जानना हो तो इन दो लोगों से मिलिए. नाम है कुतुबुद्दीन अंसारी और अशोक भावनभाई परमार. गुजरात दंगों के बाद जो दो तस्वीरें लोगों के जेहन में सबसे देर तक रहीं, वे इन्हीं की थीं. लेकिन 12 साल बाद सोमवार को केरल के कन्नूर जिले के थालीपरम्बा में जो नजारा था, वह सबके लिए चौंकाने वाला था.

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Qutubuddin Ansari, Ashok Mochi Qutubuddin Ansari, Ashok Mochi

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 मार्च 2014,
  • अपडेटेड 8:01 PM IST

सांप्रदायिक नफरत इंसान के तौर पर कैसे आपको तबाह कर देती है, जानना हो तो इन दो लोगों से मिलिए. नाम है कुतुबुद्दीन अंसारी और अशोक भावनभाई परमार उर्फ अशोक मोची. गुजरात दंगों के बाद जो दो तस्वीरें लोगों के जेहन में सबसे देर तक रहीं, वे इन्हीं की थीं. पहली तस्वीर दंगा प्रभावित नरोडा पाटिया में ली गई. तस्वीर में कुतुबुद्दीन खून से सनी कमीज पहने दोनों हाथ जोड़े दया की भीख मांगता दिख रहा है. उसका सारा दर्द आंखों में उमड़ आया है, जिसे आप तस्वीर में भी उतनी ही गहराई से महसूस कर पाते हैं.

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दूसरी तस्वीर है दूधेश्वर में मारकाट का जश्न मनाते शाहपुर के अशोक भावनभाई परमार की, जिसके चेहरे पर काली दाढ़ी है, मस्तक पर भगवा रिबन है और हाथ में लोहे की एक रॉड है. उसके दोनों हाथ उन्माद में खुले हुए हैं. पीछे आग भभक रही है.

                 2002 दंगों के दौरान ली गई कुतुबुद्दीन अंसारी की तस्वीर

 गुजरात दंगों की ये दोनों तस्वीरें आपने पहले भी देखी होंगी. लेकिन 12 साल बाद सोमवार को केरल के कन्नूर जिले के थालीपरम्बा में जो नजारा था, वह सबके लिए चौंकाने वाला था. हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के लिए ये दोनों लोग सीपीएम की एक सेमिनार के मंच पर पहुंचे. सेमिनार का विषय था, 'नरसंहार का एक दशक'. दोनों ने बताया कि 28 फरवरी 2002 की तारीख से वे अब कितना दूर निकल आए हैं.

अशोक ने मांगी मुसलमानों से माफी
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक, दोनों को साथ लाने के पीछे थे पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता कलीम सिद्दीकी. वह खुद उन्हें गुजरात से केरल लेकर आए. यहां कुतुबुद्दीन अंसारी की ऑटोबायोग्राफी का मलयालम संस्करण भी लॉन्च किया गया.

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सेमिनार में अशोक भावनभाई ने कुतुबुद्दीन और पूरे मुस्लिम समुदाय से 2002 की घटना के लिए माफी मांगी. 40 साल के अंसारी की अब शादी हो चुकी है. उनके तीन बच्चे हैं. लेकिन विडंबना यह है कि 39 साल के अशोक के पास वोटर आईडी कार्ड भी नहीं है और इस वजह से वह सरकारी योजनाओं से वंचित हैं.

कोर्ट में पेंडिंग है अशोक के मामले का फैसला
अशोक का कहना है कि उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अपना समय देने और 'सांप्रदायिक उन्मादी' वाली अपनी छवि को बदलने की ठानी है. उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार को बताया, 'खराब आर्थिक स्थिति की वजह से ही मेरी शादी नहीं हो पाई.' अशोक अब हलीम नी खड़की में सड़क पर रहते हैं. दंगे के बाद उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए. उन्होंने बताया, 'निचली अदालत ने मुझे बरी कर दिया क्योंकि वे स्थानीय मुसलमानों से मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं ला सके. सरकार ने मुझे बरी किए जाने के खिलाफ अपील की और अभी फैसला आना बाकी है.'

                 2002 दंगों के दौरान ली गई अशोक मोची की तस्वीर

 

नरेंद्र मोदी से बेहतर है अशोक: अंसारी
कुतुबुद्दीन अंसारी की तस्वीर का इस्तेमाल कथित रूप से इंडियन मुजाहिदीन की ओर से भेजे गए एक धमकी भरे ईमेल में किया गया था, जिसके बाद अंसारी लोगों की नजरों से बचते रहे थे. लेकिन अब वह सामने आने से हिचकते नहीं. उन्होंने सेमिनार में कहा, 'मेरे लिए अशोक नरेंद्र मोदी से कहीं बेहतर है क्योंकि उसने सबके सामने मुसलमानों से माफी मांग ली. मोदी ने अब भी गुजरात दंगों के लिए माफी नहीं मांगी है.' कुतुबुद्दीन ने कहा कि उसका पॉलिटिक्स में आने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़े होकर सबको झूठ की पोल खोलनी चाहिए.

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