फैक्ट चेक: प्रशासन की इन कमियों की वजह से बढ़ गई NRC से बाहर रहने वाले लोगों की संख्या

असम के ड्राफ्ट एनआरसी में 40 लाख से ज्यादा लोगों को जगह नहीं मिल पाई है. ऐसा माना जा रहा है कि इनमें काफी बड़ी संख्या बांग्लादेश से अवैध तरीके से आने वाले लोगों की हो सकती है. लेकिन सच तो यह है कि प्रशासन की ढिलाई की वजह से बहुत से भारतीय नागरिक भी इस सूची से बाहर हो गए हैं.

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असम के एनआरसी से 40 लाख से ज्यादा लोग बाहर हैं असम के एनआरसी से 40 लाख से ज्यादा लोग बाहर हैं

आनंद पटेल / दिनेश अग्रहरि

  • नई दिल्ली,
  • 03 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 4:57 PM IST

असम के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) को तैयार करने की पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में करीब तीन साल तक चली. अब जो ड्राफ्ट एनआरसी सामने आया है, उसमें 40 लाख से ज्यादा लोग शामिल नहीं हो पाए हैं. आजतक-इंडिया टुडे की टीम द्वारा फैक्ट चेक करने से पता चलता है कि अगर एनआरसी के सर्वे करने वाले कुछ बेहतर काम करते और असम तथा दूसरे कई राज्यों के प्रशासन ने मुस्तैदी दिखाई होती तो यह संख्या काफी कम हो सकती थी.

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फैक्ट चेक टीम ने तमाम सूत्रों से बात की. उससे यह पता चलता है कि बहुत से लोगों को अपने भारतीय मूल का होने का दावा साबित करने के लिए डेटा या दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो पाए.

गौरतलब है कि असम के निवासियों के लिए अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 1951 की एनआरसी में और 24 मार्च, 1971 की आधी रात से पहले की मतदाता सूची में नाम होना प्रमुख प्रमाण था, जिन्हें सामूहिक रूप से लीगेसी यानी विरासत का विवरण कहा गया.

साल 2015 में शुरू हुई इस कवायद में लोगों के दस्तावेजों की वैधता की जांच और फील्ड वेरिफिकेशन किया गया और उसके बाद ड्राफ्ट एनआरसी तैयार हुआ. आइए जानते हैं कि आखिर किन वजहों से 40 लाख लोग इस सूची से बाहर हो गए.

1. कड़ी जोड़ने वाले दस्तावेज

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लिंकेज डॉक्यूमेंट यानी कड़ी जोड़ने वाले दस्तावेज में जमीन के कागजात, जन्म और मृत्यु का सर्टिफिकेट, यूनिवर्सिटी या स्कूल की डिग्री, वोटर लिस्ट या राशन कार्ड में नाम और बैंक/बीमा/पोस्ट ऑफिस के रेकॉर्ड शामिल हैं.

एनआरसी की शर्तों के मुताबिक किसी आवेदक को 1951 की एनआरसी में शामिल या 1971 तक की मतदाता सूची में शामिल अपने भारतीय पूर्वजों से रिश्ता साबित करने के लिए उपरोक्त में से कोई भी दस्तावेज पेश करना था. लेकिन एनआरसी से बाहर बहुत से लोग अपनी पारिवारिक विरासत को साबित कर सकने वाला ऐसा कोई लिंकेज डॉक्यूमेंट देने में विफल रहे. उदाहरण के लिए किसी ग्रामीण महिला को किसी सर्किल ऑफिसर, ग्राम पंचायत सचिव या सरपंच से हासिल मैरिज सर्टिफिकेट पेश करना था.

एनआरसी का सर्वे करने वाली टीम ऐसे दस्तावेजों की फिजिकल वेरिफिकेशन भी करती थी. टीम को यह पता चला कि तमाम विवाहित महिलाएं अपने विरासत के दस्तावेज जैसे पिता के बारे में प्रमाण नहीं पेश कर पाईं, जाहिर है कि जिन महिलाओं का मायका काफी दूर या दूसरे राज्य में है, उनके लिए यह मुश्किल काम था.

एनआरसी के कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने आजतक-इंडिया टुडे को बताया कि लिंकेज डॉक्यूमेंट पेश न कर पाना सबसे बड़ी वजह रही, जिससे बहुत से आवेदकों का आवेदन खारिज हो गया.

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2. अधूरी मतदाता सूचियां

नागरिकता को वैध साबित करने के लिए यह महत्वपूर्ण था कि आवेदक के विरासत का प्रमाण वोटर लिस्ट और 1951 की एनआरसी में हो. 1951 के बाद की सभी जिलों की मतदाता सूची को ऑनलाइन और एनआरसी सेवा केंद्रों (NSK) में उपलब्ध किया गया.

एनआरसी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर के दफ्तर में दाख‍िल RTI से मिले दस्तावेजों से पता चलता है कि कई जिलों में कुछ साल की मतदाता सूचियां गायब हैं. नए एनआरसी ड्राफ्ट में बड़ी संख्या में लोगों का आवेदन खारिज होने की यह भी एक वजह है.

हजेला कहते हैं कि आवेदकों से इसके विकल्प में कुछ और दस्तावेज पेश करने को कहा गया था, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने किया नहीं.

3. एनआरसी 1951 के आंकड़े कई जगह गायब

साल 1951 की जनगणना के बाद देश भर में उसी साल नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स यानी एनआरसी तैयार किया गया था. इसमें 1951 की जनगणना के हर व्यक्ति को शामिल किया गया था. यह रजिस्टर डिप्टी कमिश्नरों और जिलों के एसडीएम के दफ्तरों में रखा गया था. बाद में इसे पुलिस को सौंप दिया गया.

आरटीआई दस्तावेजों से इस बात की पुष्ट‍ि होती है कि तीन जिलों-शिवसागर, कछार और कार्बी आंगलांग के 1951 के एनआरसी डेटा गायब हैं. जानकारों को आशंका है कि बहुत से लोगों के आवेदन खारिज होने की यह भी एक वजह है.

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हजेला का दावा है कि साल 2015 में जब ड्राफ्ट रजिस्टर बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई तो ऐसी तमाम बातों पर विचार किया गया था. लेकिन ऐसा लगता नहीं कि इस मामले में कोई रियायत मिली है.

4. फर्जी मतदाता

मतदाता सूचियों में संशोधन के दौरान जो लोग अपनी नागरिकता का प्रमाण नहीं दे पाए थे, उन्हें असम में फर्जी मतदाता मान लिया गया.

हालांकि उन्हें 2015 के एनआरसी में अपना नाम शामिल कराने का मौका दिया गया. लेकिन प्रशासन ने कहा कि नए रजिस्टर में उनका नाम शामिल होना इस पर निर्भर करता है कि फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल यह प्रमाणित कर दे कि वे विदेशी नहीं हैं.

असम सरकार के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में करीब 1.25 लाख फर्जी मतदाता है. इन सभी लोगों के एनआरसी आवेदन को लंबित कर दिया गया है. यही नहीं, जब तक ट्राइब्यूनल उनके बारे में कोई निर्णय नहीं लेता, उनकी संतानों को भी रजिस्टर में शामिल नहीं किया जा सकता.

5. डेटा एंट्री की खामी

वोटर लिस्ट या एनआरसी जैसे दस्तावेजों के लिए डेटा एंट्री का चरण काफी महत्वपूर्ण होता है. जानकारियों को दर्ज करने में हुई खामी से भी बहुत से लोग एनआरसी से बाहर हो गए हैं. कई लोगों के नाम की स्पेलिंग गलत दर्ज हो जाने से भी उनके दावे खारिज हो गए हैं.

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6. दूसरे राज्यों की ढिलाई

असम एनआरसी के नोडल ऑफिस ने करीब छह लाख आवेदनों को वेरिफिकेशन के लिए दूसरे राज्यों में भेजा था. इनमें से 30 फीसदी के बारे में ही जानकारी वापस भेजी गई.

एनआरसी ने सुप्रीम को दिए हलफनामे में बताया था कि सिर्फ पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को ही ऐसे 11,4971 मामले वेरिफिकेशन के लिए भेजे गए थे, जिनमें लोगों ने यह दावा किया था कि उनका मूल पश्चिम बंगाल में है.

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