जमीन घोटाले का मामला बेशक पुराना है लेकिन लगता है रॉबर्ट वाड्रा पर नए कारतूस से निशाना साधा गया. गांधी परिवार के दामाद और कारोबारी रॉबर्ट वाड्रा नए झमेले में जकड़ लिए गए. जमीन आवंटन घोटाले के पुराने मामले में उन पर केस दर्ज किया गया है. वाड्रा और तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर आईपीसी की धारा 420 यानी धोखाधड़ी, 467 यानी जालसाजी, 468 यानी धोखाधड़ी के लिए जालसाजी, धारा 471 यानी नकली दस्तावेजों को इस्तेमाल असली के रूप में करना, धारा 120 बी यानी अपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के तहत मामला दर्ज किया गया है.
मजेदार ये है कि केस सरकार या पुलिस ने दायर नहीं कराया बल्कि हरियाणा के नूंह निवासी सुरिंदर शर्मा की शिकायत पर दर्ज किया गया है. शर्मा ने जमीन सौदे को लेकर पुलिस में शिकायत की थी जिसके बाद पुलिस हरकत में आई और एफआईआर दर्ज कर लिया गया.
बता दें कि इससे पहले मानेसर लैंड फ्रॉड मामले में भी इन्हीं धाराओं में पुर्व मुख्यमंत्री पर मुकदमा दर्ज किया गया था जिसकी चार्जशीट भी दायर की जा चुकी है. मानेसर लैंड घोटाले में शिकायतकर्ता ओम प्रकाश यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च 2018 को फैसला सुनाया और 96 पेज नंबर पर कहा कि ढींगरा आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने पर हाइकोर्ट ने रोक लगाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट को लिखा है कि ढींगरा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी जाए.
इस बीच 5 महीने बाद भी ढींगरा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई, जबकि सीबीआई ने जांच करके चार्जशीट भी फाइल की है. इसमें पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा आरोपी बनाए गए हैं. 33 लोग हैं. बिल्डर और अफसर भी शामिल हैं. गुड़गांव के मानेसर लैंड स्कैम मामले में 15 सितंबर 2015 को एफआईआर दर्ज की गई थी. जिसके बाद जांच में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पूर्व आईएएस अधिकारी तायल सहित 34 लोगों का नाम सामने आया था.
हरियाणा सरकार की ओर से 27 अगस्त 2004 और 25 अगस्त 2005 में लैंड एक्वीजिशन के तहत मानेसर के नौरंगपुर और लखनौला गांव में 912 एकड़ जमीन को एक्वायर किया गया था. मानेसर लैंड स्कैम मामले में पूर्व सीएम हुड्डा सहित 34 लोगों के खिलाफ फरवरी में चार्जशीट दाखिल की गई थी. गुड़गांव के मानेसर में उपरोक्त दो गांवों की जमीन एक्वायर करने के नाम पर प्राइवेट बिल्डरों को फायदा पहुंचाने का आरोप है.
क्या ये मुकदमा सियासी है?
सवाल एफआईआर की टाइमिंग को लेकर है. आरोप है कि चुनाव नजदीक आते ही सरकार सक्रिय हो गई है. सवाल ये है भी कि सरकार 4 साल से क्यों इंतजार कर रही थी. एफआईआर हुई भी तो निजी व्यक्ति की शिकायत पर क्यों? सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि वाड्रा पर कार्रवाई होगी या नहीं, क्योंकि 4 साल के इंतजार से संदेह गहरा गया कि क्या बीजेपी इसे सिर्फ राजनीतिक स्टंट के तौर पर भुनाने का इंतजार कर रही थी.
अजीत तिवारी / राम किंकर सिंह