अहमदाबाद से 50 किमी दूर राजपूत चावडा वंश की रियासत और अमित शाह के अपने कस्बे मानसा में उनके बचपन के दोस्तों के पास कई मनोरंजक किस्से हैं. शाह ने 9वीं कक्षा तक वहां पढ़ाई की और 1979 में आगे की पढ़ाई के लिए अहमदाबाद आ गए. उनके दोस्त याद करते हैं कि शांत लेकिन तेज दिमाग और द्ढ़ निश्चय वाले शाह हर बार क्लास के मॉनिटर चुन लिए जाते थे. वे स्थानीय आरबीएलडी हाइ स्कूल में पढ़ते थे जो शाही परिवार के विशाल महल के पास आज भी मौजूद है. यहीं है लकड़ी की नक्काशी वाले दरवाजों वाली हवेली. यह अमित शाह के दादा गोकलदास की है. गोकलदास मानसा के नगर सेठ परिवार से थे और अपने यहां कभी श्री अरविंदो की मेजबानी कर चुके थे. आज भी शाह के कुर्ते-पाजामे सिलने वाले उनके सहपाठी सुधीर दर्जी बताते हैं कि 7वीं कक्षा में मॉनिटर बनाए जाने की दौड़ में उन्हें 50 बच्चों की क्लास में 73 प्रतिशत वोट मिले थे.
उनके दो अन्य सहपाठी बिपिन सोनी और किशोर व्यास एक और दिलचस्प घटना बताते हैं. स्कूल में एक नाटक “पापा नो पक्ष पलटो” में शाह ने तिकड़मी लेकिन परिपक्व पिता की भूमिका की जो अपने छह बिगड़ैल बच्चों को रास्ते पर लाता है. शाह के एक अन्य मित्र राजुभाई पटेल अहमदाबाद के नौरंगपुरा में बचपन में शाह के साथ कंचे और क्रिकेट खेल चुके हैं. वे याद करते हैं कि किस तरह शाह बतौर एक खिलाड़ी अपने सामने एक लक्ष्य तय करते, लक्ष्य हासिल करने के लिए रणनीति तैयार करने में उन्हें निपुणता हासिल थी. पटेल कहते हैं, “उनकी सोच एकदम सटीक थी और आरएसएस के राष्ट्रवादी सिद्धांतों के प्रति समर्पित थे. वे किसी जादूगर की तरह हर व्यक्ति में अपेक्षित गुण भांप लेते थे. एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद मैंने उन्हें असफल होते नहीं देखा.” 78 वर्षीय आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवक रतिभाई पटेल 80 के दशक के शुरू में शाह को साइकिल पर ले जाते थे, आरएसएस का पहला पाठ शाह ने उनसे ही पढ़ा था. वे भी मानते हैं, “उनमें रणनीति बनाने की क्षमता गजब की है. आरएसएस परंपरा की त्याग की भावना उनमें भरी हुई है. उनमें फर्क बस यह आया है कि पहले वे सींकिया पहलवान होते थे, आज उनका शरीर भारी-भरकम हो गया है.”
(मनसा कस्बे में अमित शाह की पुश्तैनी हवेली के सामने उनके बचपन के दोस्त)
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की स्थानीय इकाई में काम कर चुके आरएसएस प्रचारक 58 वर्षीय भरतभाई भट्ट अब एक प्राइमरी स्कूल के प्रिंसिपल हैं. वेड्ढ बताते हैं कि शाह हमेशा ही साथी कार्यकर्ताओं के लिए मदद को तैयार रहते थे. 1998 में अहमदाबाद जिला कोऑपरेटिव बैंक (एडीसीबी) का चेयरमेन बनने के बाद वे छोटे, जरूरतमंद लेकिन ईमानदार आरएसएस और बीजेपी कार्यकर्ताओं को ऋण देने के मामले में उदार थे लेकिन ऋण वसूली में उतने ही कड़े.
बीस साल की उम्र में शाह ने पीवीसी पाइप बनाने की छोटी फैक्टरी खोली. पाइपों की जरूरत गुजरात में टपक सिंचाई के लिए पड़ती थी. वे गुजरात में टपक सिंचाई के लिए पाइप बनाने वाले पहले उद्यमी थे. मोदी ने गुजरात में अपने 12 साल के शासन में टपक सिंचाई पर काफी जोर दिया. आज गुजरात इस मामले में अग्रणी है. बाद में शाह शेयर बाजार में पैसा लगाने लगे और बीजेपी के पूर्णकालिक सदस्य बन गए. पिछले हफ्ते ही एक कंप्यूटर इंजीनियर रिशिता पटेल से सगाई करने वाले अमित शाह के बेटे जय कहते हैं, “मेरे पिता में गजब की व्यावसायिक सूझ-बूझ है. वे लगे रहते तो बड़े व्यवसायी बन जाते.”
(स्कूल में शाह, गोल घेरे में)
दिलचस्प यह कि शाह अकसर पत्नी सोनलबेन और बेटे जय के साथ फिल्म देखने जाते हैं, कई बार तो फिल्म का पहले दिन का पहला शो. अंतिम फिल्म जो उन्होंने देखी वह है, अक्षय कुमार की फिल्म हॉलिडे. शाह पसंदीदा फिल्म स्टार का नाम पूछने पर शरमा जाते हैं. जोर देने पर गुरुदत्त, कमल हासन का जिक्र करते हैं.
उनके सुखी पारिवारिक जीवन का रहस्य क्या है? शाह जवाब देते हैं, “किसी नेता का यदि पारिवारिक जीवन सफल नहीं है तो उसकी सफलता आधी ही कही जाएगी. मैं इस मामले में भाग्यशाली हू. लेकिन इस खुशहाल जीवन का श्रेय मेरी पत्नी और बेटे को है जो मेरे पर्याप्त समय न देने के बावजूद खुश रहते हैं.” रतिभाई पटेल शाह के इस बुलंदी पर पहुंचने का श्रेय उनकी मां के आशीर्वाद को देते हैं. मां की देहांत 2010 में हो गई थी. रतिभाई बताते हैं, “अमितभाई जब छोटे थे तो मां कुसुमबेन के पांव छूकर ही घर से बाहर निकलते थे. मां का आशीर्वाद उन्हें फल गया है.” वे एक और बात बताते हैं, “अमितभाई सोमनाथ मंदिर के उपासक हैं. जब सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन केस में गुजरात में उनके प्रवेश पर रोक लगा दी और 2012 में रोक से प्रतिबंध हटा लिया तो अमितभाई सबसे पहले सोमनाथ मंदिर में पूजा के लिए गए.”
(शाह के पुराने राजनैतिक सहयोगी रतिभाई पटले और भरतभाई भट्ट)
यहां यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि अमित शाह के लिए 2010 से 2012 तक गुजरात से निष्कासन वरदान साबित हुआ. उनकी पत्नी और बेटा जय चट्टान की तरह उनके साथ खड़े थे. जय तो अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ कर केस के लिए वकीलों से मिलते. सोनलबेन और बेटा जय शाह के साथ दिल्ली में काफी समय तक रहे. शाह उस दौर को अकसर याद करते हैं, “मेरी राजनैतिक लड़ाई ने मेरे बेटे के करियर को प्रभावित किया.” लेकिन पारिवारिक सूत्र बताते हैं कि “इससे उनके पारिवारिक रिश्ते मजबूत हुए.” जय अब सार्वजनिक जीवन में प्रवेश कर रहे हैं. वे अपने पिता की अध्यक्षता वाले गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन में पदाधिकारी हैं.
लेकिन पार्टी सहयोगियों की प्रशंसा अतिरिक्त जिम्मेदारियां भी लाती है. उनसे उम्मीद है कि महाराष्ट्र, हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भी कामयाबी दिलाएं. उनसे यह भी अपेक्षा है कि वे सिद्धांतों को समर्पित ओबीसी नेतृत्व का प्रयोग देश भर में दोहराएं. राजनैतिक विश्लेषक विद्युत ठक्कर कहते हैं, “यह क्षेत्रीय और धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की विभाजनकारी तथा जाति आधारित ओबीसी राजनीति का करारा जवाब होगी.” उनकी तीसरी चुनौती 2019 में पार्टी के लिए दो तिहाई बहुमत जुटाने की तैयारी शुरू करने की है ताकि बीजेपी का एजेंडा पूरा हो सके.
उदय माहूरकर