राजीव गांधी से दोस्ती कर राजनीति में आए थे अजीत जोगी, कलेक्टर से सीएम पद तक तय किया सफर

छत्तीसगढ़ के गठन के साथ ही अजीत जोगी राज्य की सियासत के धुरी बन गए. छत्तीसगढ़ की राजनीति हमेशा अजीत जोगी के इर्द-गिर्द घूमती रही है.

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अजीत जोगी (फाइल फोटो) अजीत जोगी (फाइल फोटो)

वरुण शैलेश

  • नई दिल्ली,
  • 29 मई 2020,
  • अपडेटेड 6:08 PM IST

  • राजीव गांधी से दोस्ती कर राजनीति में आए
  • कलेक्टर से सीएम पद तक तय किया सफर

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का निधन हो गया. अजीत जोगी को दिल का दौरा पड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. सांस लेने में तकलीफ महसूस होने के बाद उन्हें 9 मई को रायपुर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. तब डॉक्टरों ने कहा था कि उन्हें कार्डियक अरेस्ट हुआ है. हालात को बिगड़ता देख डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखा था. अजित जोगी नौकरशाह से राजनेता बने और छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री भी रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ के गठन के साथ ही अजीत जोगी राज्य की सियासत के धुरी बन गए. छत्तीसगढ़ की राजनीति हमेशा अजीत जोगी के इर्द-गिर्द घूमती रही है. अजीत जोगी ने वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की पहली बार शपथ ली तो उनका वो बयान इतिहास के पन्नों में उन अमिट पंक्तियों की तरह दर्ज हो गया, जिसे हर राजनीतिक विश्लेषक बार-बार दोहराता है.

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेते हुए अजीत जोगी ने कहा था, 'हां मैं सपनों का सौदागर हूं. मैं सपने बेचता हूं.' लेकिन वर्ष 2000 के बाद वह सियासत के ऐसे सौदागर साबित हुए जो राजनीति के शीर्ष पर पहुंचने के सपने को दोबारा साबित नहीं कर पाया.

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दो बार राज्यसभा सदस्य, दो बार लोकसभा सदस्य, एक बार मुख्यमंत्री रहने के अलावा उनके खाते में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहने का रिकॉर्ड भी दर्ज है. उनकी इच्छाशक्ति और जिजीविषा को एक मिसाल के तौर पर देखा जाता है. उनके राजनीतिक करियर में आने को लेकर तमाम किस्से हैं, जो तैरते मिल जाते हैं.

पॉलिटिक्स में एंट्री वाया राजीव गांधी

कहा जाता है कि रायपुर का कलेक्टर रहते हुए अजीत जोगी ने पूर्व प्रधानमंत्री और पायलट रहे राजीव गांधी से उनके जो रिश्ते बने, वही उन्हें राजनीति में लाने में मददगार बने. 1986 में कांग्रेस को मध्य प्रदेश से ऐसे शख्स की जरूरत थी जो आदिवासी या दलित समुदाय से आता हो और जिसे राज्यसभा सांसद बनाया जा सके. बताया जाता है कि मध्य प्रदेश के तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिग्विजय सिंह अजीत जोगी को राजीव गांधी के पास लेकर गए तो उन्होंने फौरन उन्हें पहचान लिया और यही से उनकी सियासी दुनिया में एंट्री हुई.

अजीत जोगी का राजनीतिक सिक्का ऐसा चमका कि वह कांग्रेस से 1986 से 1998 तक राज्यसभा के सदस्य रहे. इस दौरान वह कांग्रेस में अलग-अलग पद पर कार्यकरत रहे, वहीं 1998 में रायगढ़ से लोकसभा सांसद भी चुने गए. साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो उस क्षेत्र में कांग्रेस को बहुमत था. कांग्रेस ने बिना देरी के अजीत जोगी को ही राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया. जोगी 2003 तक राज्य के सीएम रहे.

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सौदागर का सपना, सपना ही रह गया

हालांकि, उसके बाद जोगी की तबीयत खराब होती रही और उनका राजनीतिक ग्राफ भी गिरता गया. लगातार वह पार्टी में बगावती तेवर अपनाते रहे और अंत में उन्होंने अपनी अलग राह चुन ली. अजीत जोगी ने 2016 में कांग्रेस से बगावत कर अपनी अलग पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नाम से गठन किया. जबकि एक दौर में वो राज्य में कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे. 2018 में उन्होंने कांग्रेस से दो-दो हाथ करने के लिए बसपा के साथ गठबंधन किया. लेकिन उन्हें सियासी कामयाबी नहीं मिली और सपने के सौदागर का सपना, सपना ही रह गया.

जाति का विवाद

भाषण देने की कला में माहिर माने जाने वाले अजीत जोगी अपनी जाति को लेकर भी विवादों में रहे. कुछ लोगों ने दावा किया कि अजीत जोगी अनुसूचित जनजाति से नहीं हैं. मामला अनुसूचित जनजाति आयोग से होते हुए हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. लेकिन अजीत जोगी कहते रहे हैं कि हाईकोर्ट ने दो बार उनके पक्ष में फैसला दिया है. मगर सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच करने की बात कही. यह जांच छत्तीसगढ़ सरकार के पास है.

नंगे पैर जाते थे स्कूल

छत्तीसगढ़ में वर्ष 1946 में अजीत जोगी का जन्म हुआ. वह उन दिनों नंगे पैर स्कूल जाया करते थे. उनके पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए उन्हें मिशन की मदद मिली थी. अजीत जोगी जितने प्रतिभावान रहे हैं, उतने ही उनमें नेतृत्व के गुण भी रहे हैं, इंजीनियरिंग कॉलेज से लेकर मसूरी में प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान तक सब जगह वे अव्वल आने वालों में भी शामिल रहे और राजनीति करने वालों में भी.

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2004 में हुए थे हादसे का शिकार

वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान वह एक दुर्घटना के शिकार हुए, जिससे उनके कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया. उनके राजनीतिक विरोधी यह मान बैठे कि अब वे ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं, लेकिन इतने बरसों तक वह राजनीति में सक्रिय बने रहे. अपनी शारीरिक कमजोरी के बावजूद राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे.

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