इस त्रासदीपूर्ण भोपाल जहरीली गैस कांड के 28 साल बाद भी इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को कोई सजा नहीं हो पाई है. इससे भोपाल कांड के अभियुक्तों के रसूख का पता चलता है. इसी दबदबे के बूते अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड ने करोड़ों की जमीन हासिल कर ली थी. अब इस धोखाधड़ी से एक सरकारी कमेटी ने परदा उठाया है.
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से गठित मनोज श्रीवास्तव समिति की रिपोर्ट से हुए ताजा खुलासे के मुताबिक यूनियन कार्बाइड ने भोपाल के श्यामला हिल्स पर अपने रेस्ट हाउस परिसर के लिए फर्जी कागजात के सहारे 10 एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन हासिल की थी? यह वही गेस्ट हाउस है, जहां गिरफ्तारी के तुरंत बाद यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआइएल) के तत्कालीन सीईओ वारेन एंडरसन को रखा गया था. यहीं से वह भारत छोड़कर भाग जाने में कामयाब रहा था. आज के बाजार भाव पर इस परिसर की कीमत 150 करोड़ रु. बैठती है. यह प्रॉपर्टी अभी सीलबंद है.
प्रदेश के प्रमुख सचिव (राजस्व) मनोज श्रीवास्तव ने भोपाल के संभागायुक्त और एक सदस्यीय समिति के अध्यक्ष की हैसियत से 23 अक्तूबर, 2011 को राज्य सरकार को इस फर्जीवाड़े के बारे में रिपोर्ट सौंपी. इसमें कहा गया है, ''ग्राम धरमपुरी पटवारी (इसे श्यामला हिल्स समझें) हल्का नं. 4 में 10.28 एकड़ जमीन यूनियन कार्बाइड इंडिया लि. के नाम दर्ज है.'' रिपोर्ट इसके आगे सरकारी जबान में जो कहती है, उसका बोलचाल की भाषा में लब्बोलुआब यह है कि रेस्ट हाउस वाली जमीन हमेशा से सरकारी थी और किसी भी कानूनी प्रक्रिया से इसे निजी स्वामित्व में नहीं दिया जा सकता.
फिर भोपाल के सबसे पॉश इलाके में यह जमीन एक निजी कंपनी को कैसे मिल गई? रिपोर्ट के मुताबिक, ''वर्तमान राजस्व अभिलेखों में यह नाम यूनियन कार्बाइड इंडिया के नाम दर्ज है. खसरा वर्ष 1974-75 से 78-79 में वर्ष 76-77 में बेगम सुरैया वगैरह के नाम से यूनियन कार्बाइड का नाम दर्ज है लेकिन खसरे में परिवर्तन का आधार या नामांतरण पंजी/आदेश का विवरण दर्ज नहीं है.''
रिपोर्ट में कहा गया कि जिन पंजियों के नाम पर यूनियन कार्बाइड के नाम जमीन दर्ज की गई, वे पंजियां अस्तित्व में ही नहीं हैं, इसलिए ये पंजियां अभिलेखागार में जमा भी नहीं पाई जा रही हैं. ''यह संपूर्ण प्रश्नाधीन भूमि राज्य शासन की थी जिस पर वर्ष 1963-64 में कूटरचित रचना द्वारा निजी नाम पर दर्ज हुई है. अनुशंसा की जाती है कि मध्य प्रदेश भू राजस्व संहिता 1959 की धाराओं के तहत इस पर कार्रवाई की जाए.'' पर यूसीआइएल का तो अस्तित्व ही खत्म हो चुका है.
1994 में सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन को 50.9 फीसदी शेयर बेचने की इजाजत दे दी. कॉर्पोरेशन ने अपनी भारतीय सहयोगी कंपनी यूसीआइएल (जो भोपाल प्लांट चलाती थी) को एवरेडी इंडस्ट्रीज को बेच दिया. इसके बाद कॉर्पोरेशन को भी 2001 में डाउ कैमिकल्स ने खरीद लिया. बाद में 2006 में हाइकोर्ट के आदेश पर श्यामला हिल्स के रेस्ट हाउस को एटैच कर लिया गया.
गेस्ट हाउस के इतिहास के बारे में 1984 में भोपाल के कलेक्टर रहे मोती सिंह बताते हैं, ''भोपाल गैस त्रासदी के बाद मैं अपनी निगरानी में केशव महिंद्रा, विजय गोखले और वारेन एंडरसन को यहां लाया था. उन लोगों के लिए रेस्ट हाउस को अस्थायी जेल मान लिया गया था. इसी रेस्ट हाउस से एंडरसन भोपाल और देश से बाहर गया.''
इस फर्जीवाड़े के बारे में कॉर्पोरेशन के प्रवक्ता टॉम एफ स्प्रिक का (अमेरिका) से ई मेल पर भेजा जवाब देखिए, ''पहले तो कृपया यह ध्यान रखें कि भोपाल प्लांट का मालिकाना हक, संचालन और प्रबंधन यूसीआइएल के पास था, न कि यूनियन कारबाइड कॉर्पोरेशन के पास. किसी भी और तरह का कयास लगाना घोर गलती होगी.
रेस्ट हाउस यूसीआइएल की संपत्ति था न कि यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की. मुझे नहीं पता कि 1998 में जब मध्य प्रदेश सरकार ने यूसीआइल स्थल वापस लिया तो यह रेस्ट हाउस भी वापस लिया या फिर यूसीआइएल की उत्तराधिकारी कंपनी एवरेडी इंडस्ट्रीज इंडिया लिमिटेड (ईआइआइएल) के पास इस का मालिकाना हक है.''
ईआइआइएल के लीगल एडवाइजर ए.के. श्रीवास्तव का दावा है, ''संपत्ति पर हक एवररेडी इंडस्ट्रीज का है. ये फ्री होल्ड संपत्ति है और इसे बेचने का अधिकार कंपनी को है. हम इसकी लड़ाई भोपाल कलेक्टर, कमिश्नर, रेवेन्यू बोर्ड और हाइकोर्ट में लड़ रहे हैं.'' लेकिन मनोज श्रीवास्तव कहते हैं, ''सवाल यह नहीं कि जमीन किसने किसको बेची. मेरी रिपोर्ट तो यह कहती है कि जमीन सरकारी थी और किसी को बेची ही नहीं जा सकती. जमीन पर यूनियन कार्बाइड का कब्जा फर्जी कागजात पर आधारित है. यह बड़ी जालसाजी है.''
-साथ में शुरैह नियाजी
पीयूष बबेले