इन दिनों घोटालों का आलम यह है कि अधिकतर नेताओं के सफेद दामन पर कोई न कोई दाग लगा है. लेकिन एक ऐसे भी नेता हैं जिनका करियर भी अपने सफेद झक पोशाक की तरह बेदाग है. यह नेता हैं त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार. उनका सफेद कुर्ता उनकी प्रसिद्ध ईमानदारी जितना ही चमकता है. वे भारत के इकलौते मुख्यमंत्री हैं जिनके पास न तो घर है, न कार और न ही बताने लायक बैंक बैलेंस.
17 सितंबर को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के उनके बैंक खाते में 6,500 रु. जमा थे. वे 12,500 रु. के अपने वेतन को सीपीएम के पार्टी फंड में दान दे देते हैं और बदले में 5,000 रु. की मासिक ‘पगार’ पाते हैं. यह पूछे जाने पर कि वे इतनी मामूली रकम से अपना घर कैसे चलाते हैं और यदि उन्हें मुख्यमंत्री आवास खाली करना पड़ा तो वे कहां रहेंगे?
वे कहते हैं, ‘‘मेरी पत्नी की पेंशन से हम दोनों का काम चल सकता है. मेरे खर्च बहुत कम हैं...नसवार का एक पैकेट और दिनभर में एक चारमीनार सिगरेट, जहां तक घर की बात है, देखा जाएगा.’’ नाश्ते में वे रसमलाई और काजू खाते हैं जबकि बेडरूम में म्युजिक सिस्टम से उनके पसंदीदा गायक भीमसेन जोशी की आवाज आती रहती है.
सुबह ठीक 10 बजे वे सरकारी गाड़ी में बैठ जाते हैं, जिसमें बैठने की उनकी पत्नी केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की पूर्व कर्मचारी पांचाली भट्टाचार्य तक को मनाही है. पिछले साल सेवानिवृत्त होने वाली 61 वर्षीया भट्टाचार्य को अकसर बिना किसी सुरक्षा के अगरतला में एक रिक्शे पर घूमते देखा जा सकता है.
एक करीबी सहयोगी बताते हैं, ‘‘एक मौके को छोड़कर, और वह भी परोक्ष रूप से, उन्होंने कभी उनके सरकारी काम में दखल नहीं दिया है. सात साल पहले, मुख्यमंत्री ने अगरतला की सड़क पर सुबह की सैर के लिए निकलने का फैसला किया. उनके सुरक्षा अधिकारियों में खलबली मच गई और उन्होंने पांचाली दीदी से प्रार्थना की कि वे अपने पति को इस विचार को छोडऩे के लिए मनाएं. तब उन्होंने उनके लिए एक ट्रेडमिल खरीद दिया.’’ सरकार इस कहानी की पुष्टि तो करते हैं लेकिन कहते हैं कि ट्रेडमिल पैदल टहलने का कोई विकल्प नहीं हो सकती है.
फरवरी, 2013 के विधानसभा चुनावों के लिए सत्तारूढ़ वाम मोर्चे की रणनीति मुख्यमंत्री की साकार की गई ईमानदारी के नारे के इर्द-गिर्द घूमती है. सवाल यह है: क्या यह ईमानदार आदमी भारत के आखिरी कम्युनिस्ट किले की रक्षा करने में समर्थ होगा. 63 वर्षीय कॉमरेड त्रिपुरा को वामपंथियों का आखिरी मोर्चा मानने से इनकार करते हैं. सबसे लंबे समय तक त्रिपुरा के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने वाले सरकार कहते हैं, ‘‘पश्चिम बंगाल और केरल में हम वापसी करेंगे. याद रखिए कि पश्चिम बंगाल के पिछले चुनाव में हमें 41 फीसदी वोट मिले थे.’’
सीपीएम त्रिपुरा में 1998 से सत्तारूढ़ है. सरकार को एहसास है कि इस बार नए प्रदेश अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री समीर रॉय बर्मन के 48 वर्षीय पुत्र सुदीप रॉय बर्मन के नेतृत्व में उठ खड़ी हुई कांग्रेस के खिलाफ एक मुश्किल लड़ाई उनके सामने है. सुदीप ने वाम मोर्चे के खिलाफ सबसे बड़ी शिकायत ‘‘नौकरियों की कमी’’ को लेकर सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है.
सुदीप कहते हैं, ‘‘प्रदेश में 40,000 से अधिक पद खाली पड़े हैं. उनके शासन के 14 साल में किसी प्राथमिक शिक्षक की नियुक्ति तक नहीं की गई है.’’ हालांकि सुदीप को सरकार की पत्नी के रूप में एक अप्रत्याशित समर्थक भी मिल गया है. वे कहती हैं, ‘‘बेरोजगारी त्रिपुरा की सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन यह सिर्फ हमारी ही नहीं, पूरे भारत की समस्या है.’’
माणिक बाबू ग्रामीण प्रधान प्रदेश में रोजगार पैदा करने वाली नीति न बनाने के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराते हैं. हालांकि वे यह भी दावा करते हैं कि पिछले पांच साल में 20,000 से अधिक लोगों को नौकरियां मिली हैं. वे अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के भ्रष्टाचार और उन्हें रोकने में अपनी अनिच्छा और विफलता के विपक्ष के दावों को भी सिरे से खारिज करते हैं. अपने अगरतला स्थित दफ्तर में ग्रीन टी की चुस्कियां लेते हुए मुख्यमंत्री कहते हैं, ‘‘कृपया सबूत के साथ मंत्रियों के नाम बताइए. मैं तत्काल कार्रवाई का वादा करता हूं. हो सकता है, उनमें से कुछ ने उम्मीद से कम प्रदर्शन किया हो. उनकी कार्यक्षमता पर सवाल उठाइए, उनकी ईमानदारी पर नहीं.’’
लेकिन सुदीप का कहना है कि यह ईमानदारी सोच-समझकर गढ़ी गई एक दंतकथा है. वे कहते हैं, ‘‘उनके पास मौजूद सैकड़ों जोड़ी सफेद कुर्ता-पाजामा खरीदने के लिए कहां से पैसा आता है? या चश्मे का फ्रेम जिसकी कीमत 60,000 रु. है? वे 6,000 रु. की सैंडल कैसे खरीद पाते हैं? उन्होंने भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? यह सब एक चाल है. पहले तो वे उन्हें भ्रष्टाचार में लिप्त होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं फिर कानूनी कार्रवाई की धमकी देकर ब्लैकमेल करते हैं. इस प्रकार अपने नेतृत्व के लिए वे किसी भी प्रकार की चुनौती पैदा ही नहीं होने देते.’’
अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर त्रिपुरा यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर कहते हैं, ‘‘वे खुद ईमानदार व्यक्ति हो सकते हैं, लेकिन वे एक पत्थरदिल नेता हैं. अगर उन्हें लगता है कि उन्हें किसी से खतरा है तो उसके पंख कतर दिए जाते हैं. फिर भी कांग्रेस के अंदरूनी झगड़ों को देखते हुए बहुत कम संभावना है कि वह माणिक सरकार को गद्दी से उतार पाए.’’ हालांकि मुख्यमंत्री अपना बचाव करते हैं, ‘‘सत्ता कहां है? वह तो केंद्र के पास है. त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य भुगतते हैं. हमें हर उस चीज के लिए लडऩा पड़ता है जिस पर वास्तव में हमारा ही हक है.’’
मुख्यमंत्री सरकार खुद पर लगाए गए कुछ आरोपों को बेबुनियाद बताते हैं, ‘‘मेरा चश्मा 1,800 रु. का है. मेरे सैंडल भी सस्ते हैं. मुझे साफ-सुथरा दिखना बेहद पसंद है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं महंगी चीजें खरीदता हूं.’’
वे कॉलेज के दिनों में अच्छे बल्लेबाज और क्रिकेट के दीवाने हुआ करते थे. सचिन तेंडुलकर, सौरव गांगुली और मोहम्मद अजहरुद्दीन के प्रशंसक मुख्यमंत्री का इस समय पसंदीदा खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट की दिल की धड़कन विराट कोहली हैं. खेल की भाषा में कहें तो माणिक सरकार को नहीं लगता कि उन्हें रन-आउट किया जा सकता है.
कौशिक डेका