माह-ए-रमजान: रहमतों और बरकतों का महीना

खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना ‘माह-ए-रमजान’ न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है. मौजूदा हालात में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है.

Advertisement

भाषा

  • नई दिल्‍ली,
  • 11 अगस्त 2010,
  • अपडेटेड 2:47 PM IST

खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना ‘माह-ए-रमजान’ न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है. मौजूदा हालात में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है.

इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं. इस माह में दोजख़ (नरक) के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है.

Advertisement

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना मोहम्मद उमेर अल सिद्दीक ने बताया कि रोजा अच्छी जिंदगी जीने का प्रशिक्षण है, जिसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का ज़मीर रोजे़दार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिये जरूरी हर बात की तरबियत देता है.

उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया की कहानी भूख, प्यास और इंसानी ख्वाहिशों के गिर्द घूमती है और रोजा इन तीनों चीजों पर नियंत्रण रखने की साधना है. रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख-प्यास को समझने का महीना है ताकि रोजेदारों में भले-बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो.

मौलाना ने कहा कि बुराई से घिरी इस दुनिया में रमजा़न का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है. हर तरफ झूठ, मक्कारी, अश्लीलता और यौनाचार का बोलबाला हो चुका है, ऐसे में मानव जाति को संयम और आत्मनियंत्रण का संदेश देने वाले रोजे का महत्व और भी बढ़ गया है. {mospagebreak}

Advertisement

मौलाना उमेर ने कहा कि रोजे़ के दौरान झू़ठ बोलने, चुगली करने, किसी पर बुरी निगाह डालने, किसी की निंदा करने और हर छोटी से छोटी बुराई से दूर रहना अनिवार्य है.

उन्होंने कहा कि रोजे़ रखने का असल मकसद महज़ भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना नहीं है, बल्कि रोजे़ की रूह दरअसल आत्मसंयम, नियंत्रण, अल्लाह के प्रति अकीदत और सही राह पर चलने के संकल्प और उस पर मुस्तैदी से अमल में बसती है.

फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मौलाना मुहम्मद मुकर्रम ने रमजान के महत्व के बारे में कहा कि अमूमन साल में 11 महीने तक इंसान दुनियादारी के चक्‍कर में फंसा रहता है लिहाजा अल्लाह ने रमजा़न का महीना आदर्श जीवनशैली के लिये तय किया है.

उन्होंने बताया कि रमजा़न का उद्देश्य साधन सम्पन्न लोगों को भी भूख-प्यास का एहसास कराकर पूरी कौम को अल्लाह के करीब लाकर नेक राह पर डालना है. साथ ही यह महीना इंसान को अपने अंदर झांकने और खु़द का मूल्यांकन कर सुधार करने का मौका भी देता है.

मौलाना ने कहा कि दुनिया के लिये रमजा़न का महीना इसलिए भी अहम है, क्योंकि अल्लाह ने इसी माह में हिदायत की सबसे बड़ी किताब यानी कुरान शरीफ का दुनिया में अवतरण शुरू किया था.

रहमत और बरकत के नजरिये से रमजा़न के महीने को तीन हिस्सों (अशरे) में बांटा गया है. इस महीने के पहले 10 दिनों में अल्लाह अपने रोजे़दार बंदों पर रहमतों की बारिश करता है.

Advertisement

दूसरे अशरे में अल्लाह रोजेदारों के गुनाह माफ करता है और तीसरा अशरा दोजख की आग से निजात पाने की साधना को समर्पित किया गया है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement