सरकार नियंत्रित मूल्य पर डीजल, रसोई गैस और केरोसीन की बिक्री करने से तेल कंपनियों का नुकसान बढ़ता ही जा रहा है. तेल कंपनियां पेट्रोल के दाम भी नहीं बढ़ा रही है, जबकि पेट्रोल के दाम सरकारी नियंत्रण से मुक्त किये जा चुके हैं.
माना जाता है कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुये कंपनियां सरकार के इशारे पर ऐसा कर रही हैं. एक सरकारी अधिकारी के अनुसार यदि स्थिति यही रही तो सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को अप्रैल से शुरु नये वित्त वर्ष में 1,74,126 करोड़ रुपये का रिकार्ड राजस्व नुकसान होगा.
मार्च में समाप्त पिछले वित्त वर्ष में सरकार नियंत्रित मूल्यों पर पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री से तेल कंपनियों को 78,600 करोड़ रुपये तक का राजस्व नुकसान हुआ है. इसमें से फिलहाल सरकार की तरफ से कंपनियों को करीब 21,000 करोड़ रुपये की नकद सहायता उपलब्ध कराई गई. अधिकारी ने कहा वर्ष 2011-12 में इंडियन ऑयल कापरेरेशन, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कापरेशन और भारत पेट्रोलियम कापरेशन को कच्चे तेल के मौजूदा ऊंचे दाम पर 1,74,126 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हो सकता है. {mospagebreak}
अंतरराष्ट्रीय बाजार में यदि दाम नीचे नहीं आये और घरेलू बाजार में खुदरा बिक्री मूल्य मौजूदा स्तर पर ही बने रहते हैं तो तेल कंपनियों को इस भारी भरकम राजस्व नुकसान का बोझ उठाना होगा. इससे पहले तेल कंपनियों को वर्ष 2008-09 में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व नुकसान हुआ था. जिसकी भरपाई सरकार को तीन चौथाई राशि के तेल बौंड जारी करके करनी पड़ी थी. दो साल पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 147 डालर प्रति बैरल की रिकार्ड ऊंचाई तक पहुंच गया था.
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को मौजूदा खुदरा बिक्री मूल्य पर डीजल पर 16.76 रुपये प्रति लीटर का भारी नुकसान हो रहा है. इसके अलावा राशन में बिकने वाले मिट्टी तेल पर 28.33 रुपये प्रति लीटर और घरेलू एलपीजी सिलेंडर पर 315.86 रुपये की कम वसूली हो रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन उत्पादों के दाम ऊंचे हैं जबकि घरेलू बाजार में कंपनियां सरकारी अंकुश के चलते लागत से कम दाम पर इनकी बिक्री कर रही हैं. यहां तक कि पेट्रोल पर भी कंपनियों को 4.50 रुपये प्रति लीटर की कम वसूली हो रही है. {mospagebreak}
हालांकि, सरकार ने पिछले साल जून में पेट्रोल को नियंत्रण मुक्त कर दिया था लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुये फिलहाल पेट्रोल के दाम पर भी अप्रत्यक्ष रुप से सरकारी अंकुश बना हुआ है. नये वित्त वर्ष 2011-12 के लिये राजस्व नुकसान का अनुमान लगाते हुये कच्चे तेल का दाम 110 डालर प्रति बैरल के भाव पर रखा गया है जबकि पिछले वित्त वर्ष में इसका औसत मूल्य 85.09 डालर प्रति बैरल रहा है.
अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2008-09 में कच्चे तेल का भारतीय खरीद मूल्य हालांकि 83.57 डालर प्रति बैरल रहा था, लेकिन तब सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर सीमा शुल्क और उत्पादन पर उत्पाद शुल्क में कटौती की थी, ताकि घरेलू कीमतों पर अंतरराष्ट्रीय बाजार के ऊंचे दाम का असर कम किया जा सके. इस बार के बजट में ऐसा कुछ नहीं किया गया. राजकोषीय घाटे को कम रखने और राजकोषीय मजबूती पर जोर देते हुये वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद एवं सीमा शुल्क कटौती से इनकार कर दिया.
भाषा