निर्देशकः कृष्णा डी.के. और राज निदिमोरू
कलाकारः तुषार कपूर, राधिका आप्टे, निखिल द्विवेदी, पीटोबास त्रिपाठी
इस फिल्म के आखिर में न बताया जाता-कि हर कहानी अखबार की खबरों पर आधारित है-तो भी साफ था कि इसके किरदार मुंबई के रोजमर्रा के जीवन वाले ही हैं.
खतरा था कि फिल्म कहीं बासी पड़ चुके मुंबइया टपोरी डायलॉग की चपेट में न आ जाए. उससे तो बची ही, पर कहीं ज्यादा गौरतलब बात यह है कि शोर इन द सिटी के किरदारों का नक्शा बड़ी ईमानदारी से बुना गया है, जिंदादिली के साथ.
तीन यथार्थपरक कहानियां यहां एक-दूसरे से गुंथती-जुड़ती हुई चलती हैं. चोरी की किताबें छापकर चौराहों पर बिकवाने वाले तिलक (तुषार) की पत्नी (राधिका) को ही उसके असल धंधे का पता नहीं. विदेश पलट व्यवसायी अभय (सेंथिल राममूर्ति) अपनी ही जगह पर कारोबार शुरू करने की सोचते हैं तो टटपूंजिए हफ्ताखोर भाई लूट लेते हैं. अंडर 20 क्रिकेट टीम में खेलने को पसीना बहा रहा सावन दस लाख रु. रिश्वत जुटाने की तिकड़म में टूट रहा है.
यह फिल्म किसी को नायक नहीं बनाती. रोजमर्रा का तनाव, भीतर-बाहर का शोर और उनसे निजात के लिए (अच्छे-बुरे) जुगाड़ की फिक्र यही सब धीरे-धीरे नायकपने में तब्दील हो जाता है. इसके चरित्र अभिनेताओं ने तो कमाल किया ही है, चलताऊ कॉमिक किरदारों में उलझे तुषार ने अपने अभिनय की एक नई संभावना खोजी है. मुंबई के ताजा मिजाज को एक तरह से परिभाषित करने वाली फिल्म है शोर इन द सिटी.
शिवकेश