बरसों से शंकाओं का समाधान करता गीता प्रेस

गोरखपुर स्थित गीता प्रेस बरसों से पाठकों की धार्मिक-आध्यात्मिक शंकाओं के मुफ्त समाधान का प्रकल्प चलाता आ रहा है.

Advertisement
गीता प्रेस गीता प्रेस

कुमार हर्ष

  • गोरखपुर,
  • 08 अक्टूबर 2011,
  • अपडेटेड 7:21 PM IST

उत्तर प्रदेश के राज्‍यपाल बी.एल. जोशी पिछले हफ्ते जब गोरखपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने के बाद खाली हुए तो बरसों की साध पूरी करने शहर की विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस में पहुंच गए. खास इसी उद्देश्य के लिए वे पत्नी सहित यहां पर पधारे थे और 45 मिनट से ज्‍यादा का वक्त बिताने के बाद वहां से निकलते हुए भी उनका मन 'अतृप्त' ही था.

Advertisement

बरसों से देश ही नहीं, दुनिया भर के लोगों के लिए आध्यात्मिक तथा धार्मिक साहित्य की अविरल धारा प्रवाहित करते आ रहे गीता प्रेस की ख्याति उसकी सरल, सुगम और निर्दोष छपाई वाली उन कम मूल्य वाली पुस्तकों से है जो हर साल बिक्री के अपने ही कीर्तिमान तोड़ देती हैं. मगर यह बात शायद कम लोगों को पता है कि वर्षों से यह केंद्र अपने पाठकों की धार्मिक-आध्यात्मिक शंकाओं के निशुल्क समाधान का भी प्रकल्प चलाता आ रहा है.

पश्चिम में गुजरात स्थित सूरत के परेशभाई हों या पूरब में असम स्थित तेजपुर के शरद प्रकाश या फिर विदेश में अमेरिका स्थित सिएटल की कार्तिका, तिथि या व्रत संबंधी जिज्ञासाओं, ज्‍योतिषीय जटिलताओं या पौराणिक आख्यानों से जुड़े अपने प्रश्नों को वे लोग तुरंत गीता प्रेस को लिख भेजते हैं जहां से उन्हें अपनी शंकाओं का समाधान मिल जाता है.

Advertisement

इनमें बड़ी संख्या उन माता-पिताओं की भी होती है जो अपनी पुत्रियों के विवाह में हो रहे विलंब से परेशान किसी समाधान की अपेक्षा रखते हैं और गीता प्रेस उन्हें इस मामले में भी निराश नहीं करता. ऐसे सभी अभिभावकों को 'कन्या के शीघ्र विवाह का अनुष्ठान' शीर्षक वाली एक पृष्ठ की मुद्रित सामग्री तथा सीता द्वारा गौरी की पूजा करते हुए एक रंगीन चित्र तुरंत भेज दिया जाता है. इस पत्र में मंत्र के साथ उसके पाठ-पूजन की सरल विधि दी गई होती है.

यह सिलसिला 1965 के जनवरी माह में प्रकाशित कल्याण के अंक से शुरू हुआ था जिसमें पहली बार श्रेष्ठ वर प्राप्ति के लिए पूजन की विधि बताई गई थी. कल्याण के जून 2005 के अंक में पहली दफा गौरी पूजन का यह चित्र मुखपृष्ठ पर प्रकाशित करते हुए अलग से एक पृष्ठ पर पूजा-विधि दी गई. इसी के बाद पाठकों के बड़ी संख्या में पत्र आने शुरू हुए जो इसकी प्रति हासिल करना चाहते थे. गीता प्रेस प्रबंधन ने बड़ी संख्या में इन दोनों का प्रकाशन किया और तब से इन्हें निशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है.

गीता प्रेस के न्यासी बैजनाथ अग्रवाल कहते हैं, ''गीता प्रेस की संकल्पना का आधार ही लोकमंगल और कल्याण धर्म का निर्वहन है. पाठक हमारे परिवार के सदस्य हैं लिहाजा उनकी समस्याओं का यथासंभव समाधान देना हमारा कर्तव्य भी है.'' कहना न होगा कि दुनिया के इस सबसे विशाल परिवार ने अब तक यह कर्तव्य बखूबी निभाया भी है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement