अमृतसर में 6 जून को घल्लूघारा दिवस (सिख शहीदी दिवस) के मौके पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अभूतपूर्व रूप से 3,000 सिख पुरुषों और महिलाओं का जमावड़ा लगा. ऑपरेशन ब्लूस्टार के शिकार हुए लोगों के सालाना स्मृति आयोजन के लिहाज से इस साल यह खास महत्व रखता था.
पांच सिंह साहिबों या सिखों के सर्वोच्च जत्थेदारों ने जरनैल सिंह भिंडरांवाले और उसके सशस्त्र लड़ाकों की याद में बनाए जाने वाले एक स्मारक की नींव का लोकार्पण किया. भिंडरांवाले अपने साथियों के साथ जून, 1984 में सेना की कार्रवाई मे मारा गया था.
ऑपरेशन ब्लूस्टार में भिंडरांवाले के साथ मारे गए ऑल इंडिया सिख स्टुडेंट्स फव्डरेशन के प्रमुख भाई अमरीक सिंह के 27 वर्षीय इकलौते बेटे तरलोचन सिंह का कहना है, ''सिखों ने धरती के इस अनमोल टुकड़े की कीमत अपना खून देकर चुकाई है.'' भट्टीवाला के गवर्नमेंट हाइस्कूल में कंप्यूटर साइंस के अध्यापक मुक्तसर तरलोचन और जालंधर में प्रॉपर्टी डीलर भिंडरांवाले के बेटे 40 वर्षीय ईशर सिंह तेजी से उभरते उस कट्टरपंथ के प्रतिनिधि हैं जो क्लानिश्नकोव लहराते आतंकियों के बीच अपने नायकों को तलाश रहा है.
उस सुबह अकाल तख्त के जत्थेदार गुरबचन सिंह ने इन्हें और दूसरे आतंकियों के बच्चों को शॉल ओढ़ाकर सरोपा भेंट किया. इनमें भाई अमरीक सिंह की पत्नी गुरमीत कौर और इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह की मां पियार कौर भी थीं. जत्थेदार ने बब्बर खालसा इंटरनेशनल के आतंकवादी बलवंत राजोआना को 'जिंदा शहीद' की उपाधि से नवाजा जो 1995 में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 17 अन्य लोगों की हत्या के आरोप में फांसी का इंतजार कर रहा है. 1982 से 1994 के बीच अलगाववादी और आतंकी संगठन रहे दल खालसा ने एक दिन पहले ही 5 जून को भिंडरांवाले स्मारक के निर्माण का जश्न मनाया था.
करीब डेढ़ दशक के दौर में पंजाब में 40,000 लोगों की जान गई और खौफ के इस दौर का अंत बेअंत सिंह की हत्या के साथ हुआ. इनमें 2,000 पुलिसकर्मी और सुरक्षा बल भी शामिल थे तथा 8,000 से ज्यादा आतंकी और खालिस्तान समर्थक थे. आतंकी आम नागरिकों को रेलगाड़ियों और बसों से बाहर निकालकर बहुत ही करीब से गोली मार दिया करते थे. मरने वाले आम लोगों में 60 फीसदी से ज्यादा सिख ही थे.
ऐसी कई वेबसाइट और फव्सबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर पेज हैं जिन्हें विदेशों में रहने वाले खालिस्तानी समर्थक चला रहे हैं. वे चाहते हैं कि भिंडरांवाले को सिख पंथ के रक्षक और सबसे बड़े संत के तौर पर देखा जाए. स्वर्ण मंदिर से चलाए गए हिंसा के जहरीले दौर-जिसमें लोगों को गोली मार दी जाती थी, रेल या बस से यात्रियों को उतारकर मौत के हवाले कर दिया जाता था-को वे गौरवान्वित करते हुए इसके प्रवर्तक भिंडरांवाले को नायक बनाने में लगे हैं और इसके पीछे भारी भावनाओं का ज्वार है.
भावनाओं का ज्वार अब भी अपने उफान पर है. दल खालसा के 45 वर्षीय महासचिव कंवरपाल सिंह कहते हैं, ''मेमोरियल का निर्माण संत भिंडरांवाले के आदर्शों को हासिल करने की दिशा में बड़ी उपलब्धि है.'' कंवरपाल सिंह पहले आतंकी हुआ करते थे. उन्होंने खालिस्तानी नायक को सिखों के मानस में एक राजनैतिक और धार्मिक शख्सियत के रूप में बैठाने में अपने जीवन के 14 साल झोंक दिए.
दल खालसा पर से 6 अगस्त, 1998 को प्रतिबंध हटा लिया गया था और यह खालिस्तान की स्थापना के उद्देश्य से एक खुले संगठन के तौर पर काम करने लगा. इसे ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा आदि में बैठे खालिस्तान समर्थकों से खूब धन आता है जिसका इस्तेमाल यह दुष्प्रचार को अंजाम देने के लिए करता है.
कंवरपाल कहते हैं, ''हम जो भी सोच सकते थे, उस हर संभव तरीके को अपनाया.'' उन्हें ऐसा कहते इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं कि खालिस्तान का जिक्र भर भी दस साल पीछे के दौर के नतीजों को सामने ला सकता है. अमृतसर रेलवे स्टेशन के बगल में दल खालसा के मुख्यालय फ्रीडम हाउस के वातानुकूलित कमरे में बैठे कुंवरपाल कहते हैं, ''सेमिनार, भिंडरांवाले की तस्वीरों वाले स्टिकर, टी-शर्ट, हमने हर उस चीज का इस्तेमाल किया है जिससे पंजाब के आम लोगों की चेतना में भिंडरांवाले की स्मृति बस जाए.''
अपनी छाती ठोंककर खुद को दिलासा देने वाले पंजाब के नेताओं की नाक के नीचे सब कुछ होता रहा और उन्होंने इसकी तब तक खबर नहीं ली, जब तक कि यह आगामी निकाय चुनावों के चलते राजनैतिक बाध्यता नहीं बन गया. 7 जून को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को पत्र भेजकर स्मारक खड़ा करने वाले कट्टरपंथी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने की सलाह दे दी. उधर, चंडीगढ़ में बैठे पंजाब कांग्रेस के मुखिया अमरिंदर सिंह ने प्रस्ताव की निंदा करते हुए कहा कि इससे ''लोगों में भय लौट आएगा और सांप्रदायिक विभाजन पैदा हो जाएगा.''
सत्ताधारी शिरोमणि अकाली दल की सहयोगी भाजपा ने दबे स्वर में कहा कि स्मारक नहीं बनना चाहिए और इससे बचने की हर संभव कोशिश की जानी चाहिए. माना जाता है कि पंजाब में सरकार उप-मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ही चलाते हैं, इस मामले पर उनकी प्रतिक्रिया कुछ साफ नहीं रही है. उन्होंने इस काम को पूरी तरीके से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के सिर मढ़ दिया और लुधियाना तथा जालंधर में 6 जून को रिपोर्टरों के सवालों से पूरी तरह बचते नजर आए. शिरोमणि अकाली दल का पूरा नेतृत्व अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में आतंकवाद को हवा देने वाली घटनाओं से कन्नी काटता नजर आया.
अमृतसर की तेजतर्रार भाजपा नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री लक्ष्मी कांता चावला कहती हैं, ''पंजाब सरकार की सहमति के बगैर यह सब हो ही नहीं सकता. आप एक ऐसे राज्य में और क्या उम्मीद कर सकते हैं जहां मुख्यमंत्री, उनका बेटा और बहू एक आतंकी के लिए क्षमा याचना मांगने चले जाते हैं?'' उनका इशारा राजोआना की फांसी की सजा के मामले में प्रकाश सिंह बादल द्वारा फांसी की तय तारीख 31 मार्च से पहले राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील को दी गई दया याचिका की ओर था, जिसके बाद फांसी टल गई.
माना जाता है कि चावला जो सही होता वही कहती हैं, और इसी के चलते उन्हें कई बार अपने पार्टी के साथियों के विरोध तक का सामना करना पड़ जाता है. पुराने अमृतसर के टुंडा तालाब इलाके के अपने दो कमरे वाले घर में बैठीं चावला थोड़ी परेशान हैं. भिंडरांवाले के सम्मान को वे खालिस्तानी आंदोलन को दोबारा जिंदा करने की साजिश के तौर पर देखती हैं. वे कहती हैं, ''कोई भी स्मारक बनने से पहले इस देश को यह तय करना होगा कि उसके शहीद कौन हैं. आखिरकार हजारों लोगों की मौत के जिम्मेदार एक विनाशक को शहीद कैसे कहा जा सकता है?''
अमृतसर से 30 किमी उत्तर में चौक मेहता पर कभी भिंडरांवाले के नेतृत्व में चलने वाले दमदमी टकसाल के संरक्षक चीजों को दूसरे नजरिए से देखते हैं. विवादास्पद स्मारक के निर्माण के लिए जिम्मेदार टकसाल प्रमुख 44 वर्षीय बाबा हरनाम सिंह खालसा कहते हैं, ''यादगार (स्मारक) उन लोगों को समर्पित है जिन्होंने हरमंदिर साहिब की रक्षा में अपनी जान दी.'' गौरतलब है कि कट्टरपंथी दमदमी टकसाल ने 2011 के एसजीपीसी चुनाव में शिरोमणि अकाली दल की मदद करके उसे जितवाया था. भिंडरांवाले स्मारक को अकाली दल की मूक सहमति इसी का नतीजा मानी जा रही है.
अपने पथप्रदर्शक को सम्मान दिलाने की राह प्रशस्त होने से बेहद खुश हरनाम सिंह इस बात पर जोर देते हैं कि स्मारक नहीं, बल्कि भाजपा और कांग्रेस के भीतर से आ रहा विरोध पंजाब की हवा में सांप्रदायिक जहर घोल सकता है. वे कहते हैं, ''इन लोगों को एक विशुद्ध धार्मिक कार्य पर राजनीति करना बंद कर देना चाहिए.''
इस विरोध को ध्यान में रखते हुए ही वे 18 महीने की निर्माण अवधि से पहले ही काम को पूरा कर लेना चाहते हैं. 18 महीने का समय एसजीपीसी द्वारा नियुक्त किए गए वास्तुकारों ने निर्धारित किया है. वे दावा करते हैं, ''इस काम के लिए संसाधनों की कोई कमी नहीं है. हिंदू परिवार भी इसमें योगदान दे रहे हैं.'' और वे हमें रसीद बुक दिखाने लगते हैं.
लेकिन पंजाब के 75 वर्षीय पूर्व पुलिस प्रमुख के.पी.एस. गिल को आतंकवाद के लौट आने का कोई खतरा नजर नहीं आता. वे कहते हैं, ''ये लोग ज्यादा अहमियत नहीं रखते और इन पर हंसी ही आती है. इन्हें हलके में लेना चाहिए.'' उनके मुताबिक, भिंडरांवाले का स्मारक एसजीपीसी के लिए पैसे इकट्ठा करने का एक और साधन मात्र है. गिल का मानना है कि कोई भी सरकारी या राजनैतिक प्रतिक्रिया करना दरअसल 1984 में की गई गलती को दोहराना होगा.
चौक मेहता में भिंडरांवाले को 20 सितंबर, 1981 को गिरफ्तार करने के लिए भेजे गए गिल याद करते हुए कहते हैं कि ''वह राज्य और केंद्र सरकार द्वारा भारी भूल थी'' जिसने भिंडरांवाले का मिथक खड़ा करने में मदद की. हालांकि इस साल जनवरी में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुके वरीष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) इकबाल सिंह मानते हैं कि पंजाब धीरेवयी-धीरे हिंसा के दौर की तरफ बढ़ रहा है. फिलहाल, पंजाब में 200 से ज्यादा भगोड़े आतंकी हैं जो अलग-अलग आतंकी गतिविधियों में वांछित हैं. वे कहते हैं, ''जब 1970 के उत्तरार्द्ध और 1980 के दशक के शुरू में पहली बार हिंसा भड़की थी, उस समय के मुकाबले यह संख्या चार गुना ज्यादा है.''
इस बार मामला खतरनाक इसलिए हो सकता है क्योंकि कट्टरपंथी ताकतें ''दिल्ली और अमृतसर के बीच तेजी से टूटते भरोसे को भांप रही हैं.'' दल खालसा के कंवरपाल सिंह कहते हैं, ''यह मानना भूल होगी कि पंजाब में अमन-चैन है. यह शांति अस्थायी है.'' पंजाब के लोगों को उम्मीद करनी चाहिए कि यह तूफान के पहले की खामोशी न हो.
असित जॉली