गुजरात के शेरों को रास नहीं आ रहे इटावा के बीहड़, देखरेख में करोड़ों रुपये खर्च

राज्य सरकार के बजट से 240 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया जा चुका है. लेकिन इसके बावजूद गुजरात से लाए गए शेरों को इटावा के जंगल रास नहीं आ रहे हैं.

Advertisement
बजट से 240 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान बजट से 240 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान

लव रघुवंशी / बालकृष्ण

  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 10:11 AM IST

जब बेटा ही राज्य का मुख्यमंत्री हो, तो भला कौन सा काम मुश्किल है. लेकिन बेटे अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री होने के बावजूद समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का एक सपना, लाख कोशिशों के बावजूद पूरा नहीं हो पा रहा है. खुद मुख्यमंत्री इसे पूरा करने में जुटे हैं, राज्य के तमाम आला अधिकारी इसके लिए जी जान लगा रहे हैं. लेकिन बात तब भी नहीं बन पा रही है. ये सपना है, कभी डाकुओं के लिए कुख्यात रहे इटावा से लगे चंबल के बीहड़ों में लॅायन सफारी बनाने का.

Advertisement

अब तक 9 शेरों की मौत
यह कोशिश 2012 में शुरू हुई थी और अब तक इस पर उत्तर प्रदेश सरकार के करीब सौ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. राज्य सरकार के बजट से 240 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया जा चुका है. लेकिन इसके बावजूद गुजरात से लाए गए शेरों को इटावा के जंगल रास नहीं आ रहे हैं. पिछले 2 सालों में, 5 शावकों को मिलाकर, 9 शेरों की मौत हो चुकी है. इस वक्त इटावा की लॉयन सफारी में सात शेर बचे हैं, जिसमें से एक शेरनी की हालत खराब है और उसका बचना मुश्किल लगता है.

मुलायम सिंह की जिद्द
लॉयन सफारी नहीं बना पाने का दर्द मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा में खुद बयान किया. उन्होंने कहा कि अगर बीमार शेरों की हालत में सुधार करने के लिए उनकी तरफ से कोई गलती हुई है तो उसे सुधारने के लिए वो तैयार हैं. लेकिन इटावा में लॉयन सफारी वह हर हालत में बनाना चाहते हैं.

Advertisement

डाकुओं का था इलाका
ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के सपने को पूरा करने के लिए कोई कोर कसर छोड़ी हो. लॉयन सफारी साढ़े तीन सौ हेक्टेयर में बनाया जाना है. इसके लिए सालों से तैयारी भी की जा रही है. इटावा के बीहड़ों में डाकुओं का आतंक तब भी था, जब अंग्रेज भारत में थे. डाकुओं से निपटने के लिए अंग्रेजों ने इस पूरे इलाके में जंगली जहरीले बबूल के बीज छिड़कवा दिए थे, ताकि डाकुओं को भागने में मुश्किल हो. अब यही जंगली बबूल की झाड़ियां शेरों के यहां रहने के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बन गई है. उत्तर प्रदेश के वन विभाग ने जंगली बबूल की झाड़ियों को काटकर यह छायादार पेड़ लगाने का काम पड़े पैमाने पर किया.

अमेरिका से मंगाया वैक्सीन
ये पेड़ अभी बड़े नहीं हुए हैं. मगर शेरों की मौत सबसे बड़ा कारण बन रही है केनाइन डिस्टेंपर नाम की एक वायरल बीमारी जो आम तौर पर कुत्तों को होती है. गुजरात और हैदराबाद से लाए गए कई शेर एक के बाद एक इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं. अब शेरों को इस बीमारी से बचाने के लिए अमेरिका से उसका वैक्सीन मंगाया गया है. शेर ही नहीं इस इलाके के तमाम कुत्तों को भी बिमारियों के वैक्सीन दिए गए हैं ताकि वह शेरों को बीमारी ना फैला दें.

Advertisement

देखरेख में हो रहे करोड़ों खर्च
शेरों की देखरेख के लिए अमेरिका के सेंट डियागो चिड़ियाघर से खास डॉक्टर भी बुलाए गए हैं. उत्तर प्रदेश के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन उमेन्द्र शर्मा बताते हैं कि शेरों को नए वातावरण में ढलने में दिक्कत आ रही है. गुजरात से लंबा सफर तय करके आने में शेर थककर चकनाचूर हो जाते हैं और उसके बाद बीमारी के शिकार हो जाते हैं. अब इटावा की लॉयन सफारी में शेरों का मन बहलाने के लिए तमाम तरह के इंतजाम किए जा रहे हैं. अगर शेर के बच्चों का जन्म हो तो उसकी खास देखभाल के लिए भी करोड़ों रुपये खर्च करके नया सेंटर बनाया गया है.

लायन सफारी से जुड़े तमाम गतिविधियों पर निगरानी सीधे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रखते हैं. इटावा के जंगल अगर सचमुच शेरों से आबाद हो गए, तो ये राज्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी. इससे ये पूरा इलाका पर्यटन का बड़ा केंद्र भी बन जाएगा. लेकिन चुनाव सिर पर हैं और अगर चुनाव के बाद फिर से समाजवादी पार्टी की सरकार नहीं बनती तो इटावा के शेरों का क्या हश्र होगा यह कहना मुश्किल है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement