इन 5 वजहों से याद रहेगा मोदी सरकार का पहला मानसून सत्र

बादल आए, बरसे और चले गए. मानसून सत्र अपनी गति को प्राप्त हो गया. मोदी सरकार के कार्यकाल का पहला मानसून सत्र भारतीय राजनीतिक इतिहास में अपनी निष्क्रियता और गतिरोध के लिए याद किया जाएगा. आपको बताते हैं, जिनके लिए यह मानसून सत्र हमेशा याद किया जाएगा.

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Sushma Swaraj Sushma Swaraj

कुलदीप मिश्र

  • नई दिल्ली,
  • 13 अगस्त 2015,
  • अपडेटेड 4:44 PM IST

बादल आए, बरसे और चले गए. मानसून सत्र अपनी गति को प्राप्त हो गया. मोदी सरकार के कार्यकाल का पहला मानसून सत्र भारतीय राजनीतिक इतिहास में अपनी निष्क्रियता और गतिरोध के लिए याद किया जाएगा. आपको बताते हैं, वे 5 वजहें जो इस सत्र को मोदी सरकार के लिए बुरा सपना बना गईं.

1. कांग्रेस की 'विस्फोटक' आक्रामकता
यह दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन सियासी तौर पर रोचक बात है कि 44 कांग्रेसी सांसदों ने मिलकर लगभग पूरा मानसून सत्र चौपट कर दिया. भारतीय राजनीतिक इतिहास में कांग्रेस लंबे समय बाद इतनी आक्रामक नजर आई. सोनिया और राहुल के अलावा मल्लिकार्जुन खड़गे, आनंद शर्मा और गुलाम नबी आजाद ने सरकार के सामने सवालों की बौछार लगा दी. कांग्रेसियों की आक्रामक नारेबाजी, काली पट्टी और सियासी कटाक्षों ने यूपीए दौर में बीजेपी के विरोध प्रदर्शन की यादें ताजा कर दीं. 25 कांग्रेसी सांसदों को लोकसभा स्पीकर ने निलंबित कर दिया तो सोनिया-राहुल पूरे विपक्ष को साथ लेकर संसद भवन परिसर में चार दिन तक नियमित प्रदर्शन करते रहे. आखिरी दिनों में सुषमा स्वराज के दो वक्तव्यों को छोड़ दें, तो प्रचंड बहुमत के बावजूद पूरे सत्र में बीजेपी और केंद्र सरकार लाचार नजर आई. संसद में गतिरोध की भी अपनी राजनीति और नुकसान-फायदे हैं, लेकिन सिर्फ सियासी पहलू की बात करें तो कांग्रेस का आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ लगता है.

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2. सुषमा का शानदार पलटवार
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ललित मोदी मुद्दे पर जवाब देते हुए अपनी चिर-परिचित शैली में बढ़िया राजनीतिक वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा, 'क्या मैंने ललित मोदी को भारत से भगाया? क्या मैंने उनके खिलाफ चल रही जांच को रुकवाया? क्या मैंने उन्हें यात्रा दस्तावेज देने का अनुरोध किया? नहीं. मैंने सिर्फ यह फैसला ब्रिटिश सरकार पर सौंप दिया. निर्णय में मेरी कोई भूमिका नहीं थी. वे निर्णय यात्रा दस्तावेज न देने का भी कर सकते थे.' उन्होंने ललित मोदी की पत्नी के 17 साल से कैंसर पीड़ित होने की बात सदन में कहकर बड़ी चतुराई से मामले को भावनात्मक रंग दे दिया. उन्होंने यहां तक कहा, 'मैं पूछना चाहती हूं कि कोई और मेरी जगह होता तो क्या करता. सोनिया जी ही होतीं तो क्या करतीं. वो महिला जिसके खिलाफ दुनिया में कोई केस नहीं चल रहा, जो 17 वर्षों से कैंसर से पीड़ित है, जिसका कैंसर 10वीं बार उभरा है, ऐसी महिला की मदद करना अगर गुनाह है तो अध्यक्ष जी आपको साक्षी मानकर पूरे राष्ट्र के सामने अपना गुनाह कबूल करती हूं.'

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लेकिन सुषमा की असल वक्तव्य प्रतिभा बीते बुधवार को दिखी जब राहुल ने उनसे ललित मोदी से मिले 'लेन-देन' का हिसाब मांगा. इस पर किसी तरह की सफाई देने के बजाए सुषमा ने काउंटर अटैक की नीति अपनाई और कम से कम उस दिन कांग्रेस के हमलावर टैंकों को ध्वस्त कर दिया. राहुल को छुट्टियों में कांग्रेस का इतिहास पढ़ने की नसीहत देते हुए उन्होंने कहा, 'राहुल गांधी मुझसे पूछते हैं कि कितने पैसे लिए. राहुल गांधी अपनी मम्मा से पूछें कि क्वात्रोकी को छुड़ाने के लिए उन्हें कितना पैसा मिला था. वे अकेले में क्‍वात्रोकी से लेकर शहरयार तक के सारे कारनामे पढ़ें और पूछें मम्‍मा, क्‍वात्रोकी को भगाने के लिए हमने उनसे कितना पैसा लिया था. वो 15 हजार लोगों के हत्‍यारे को भगाने की वजह अपनी मां (सोनिया गांधी) से पूछें.'

3. 11 साल बाद वेल में जाकर सोनिया ने किया प्रदर्शन
2015 का मानसून सत्र इसलिए भी याद रखा जा सकता है कि सोनिया ने 11 साल बाद संसद की वेल में आकर प्रदर्शन किया. इस सत्र में वह अपनी सीट पर बैठे-बैठे नारेबाजी करती तो कई बार दिखीं. लेकिन जब एक बीजेपी सांसद ने सोनिया की बहन के ललित मोदी से मिलने का जिक्र किया तो वह भड़क गईं और वेल में जाकर प्रदर्शन करने लगीं. सोनिया का ऐसा गुस्सा शायद ही इससे पहले दिखा हो. वह हाथ लहरा-लहराकर अपना गुस्सा जता रही थीं और बाकी सांसद उनका साथ दे रहे थे.

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संसद भवन परिसर में गांधी मूर्ति के पास प्रदर्शन के दौरान भी उन्होंने हाथ लहराते हुए नारेबाजी की. लोकसभा चुनावों के ऐलान के बाद से ही कांग्रेस नेतृत्व का असली मतलब राहुल गांधी से लगाया जा रहा था, लेकिन मानसून सत्र में सोनिया ने आगे बढ़कर कांग्रेस की अगुवाई की. उन्होंने अपनी सीट पर बैठे बैठे 'मोदी इस्तीफा दो, शर्म करो चुप्पी तोड़ो' के नारे भी लगाए.

4. लोकसभा स्पीकर के तेवर
यह मानसून सत्र बीजेपी के साथ-साथ दोनों सदनों के स्पीकरों के लिए भी मुश्किल भरा रहा. वह चाहकर भी सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चला पाईं, हालांकि जरूरत पड़ने पर सख्त टिप्पणियां करने से भी नहीं हिचकीं. उन्होंने कांग्रेसी सांसदों को प्लेकार्ड न लेकर आने की नसीहत दी. एक दिन जब विपक्षी सांसद काफी हंगामा कर रहे थे, तब उन्होंने कहा, 'लोकसभा टीवी आज ये सारा हंगामा टीवी पर दिखाए, ताकि लोग देखें कि कैसे 40-45 लोग मिलकर 440 लोगों का हक मार रहे हैं. देश में बहुत गलत संदेश जा रहा है. ये प्रजातंत्र नहीं है.'

5. बीजेपी की जुबान बोले मुलायम
कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन उसके मनचाहे अंदाज में चल रहा था कि 10 अगस्त को अचानक सपा हाथ छुड़ाकर पतली गली से निकल गई. सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि वह ललितगेट पर सुषमा की सफाई से संतुष्ट हैं. वहीं मुलायम सिंह यादव ने कहा कि वह सदन चलने देना चाहते हैं और अब उनके सांसद कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन में साथ नहीं देंगे. सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह के सुझाव पर सदन में गतिरोध समाप्त करने के प्रयास में विभिन्न दलों से चर्चा के लिए अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन की कार्यवाही 30 मिनट के लिए स्थगित भी की लेकिन केवल मुलायम सिंह, उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव, AAP के भगवंत मान, आरजेडी के जयप्रकाश नारायण यादव ही अध्यक्ष से उनके चैम्बर में मिले लेकिन कांग्रेस नेता नहीं गए.

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इस पर कांग्रेस ने मुलायम पर तंज कसते हुए उन्हें 'खुदाई खिदमतगार' बताया. 'खुदाई खिदमतगार' का शाब्दिक अर्थ 'ईश्वर का सेवक' होता है लेकिन व्यंग्य के रूप में इसका उपयोग ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है जो राजा के प्रति स्वयं राजा से भी ज्यादा निष्ठावान हो.

 

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