छत्तीसगढ़: सहकारी बैंकों में 1500 करोड़ से ज्यादा का घोटाला, CBI जांच की मांग

घोटाले को दबाने के लिए राजनेताओं और बैंक अफसरों ने कमर कस ली है. हालांकि, छत्तीसगढ़ विधानसभा के अंदर और बाहर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के विधायक इस घोटाले की जांच सीबीआई को सौपने की मांग कर रहे हैं. घोटाले के सामने आने के बाद सहकारी बैंक के सीईओ जेएम तनेजा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

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अजीत तिवारी / सुनील नामदेव

  • बिलासपुर,
  • 26 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 9:10 PM IST

छत्तीसगढ़ के सहकारी बैंकों में 15 सौ करोड़ से ज्यादा का घोटाला सामने आया है. रायपुर और बिलासपुर के सहकारी बैंक में अकेले 1200 करोड़ का गोलमाल है. जबकि शेष 300 करोड़ से ज्यादा के रकम की हेराफेरी राज्य के दूसरे जिलों में हुई है.

घोटाले को दबाने के लिए राजनेताओं और बैंक अफसरों ने कमर कस ली है. हालांकि, छत्तीसगढ़ विधानसभा के अंदर और बाहर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के विधायक इस घोटाले की जांच सीबीआई को सौपने की मांग कर रहे हैं. घोटाले के सामने आने के बाद सहकारी बैंक के सीईओ जेएम तनेजा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

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छत्तीसगढ़ के सहकारी बैंकों में 1500 करोड़ से ज्यादा के गोलमाल को लेकर गहमा-गहमी मची है. साल भर से इस घोटाले की फाइल बैंक अफसरों ने दबा के रखी है. इसे ना तो RBI को सौंपा जा रहा है और ना ही पुलिस को. दरअसल, इस घोटाले में कई बड़े नेता शामिल हैं. घोटाले का लेखा-जोखा तैयार होने के बाद कई नेताओं ने बैंकों के गवर्निंग बॉडी से अपना नाता तोड़ लिया है.

छत्तीसगढ़ में 6 बड़े सहकारी बैंक हैं. राज्य भर में इनकी 265 शाखायें हैं. 52 लाख से ज्यादा किसान इन सहकारी बैंकों के ग्राहक हैं. इन्हीं सहकारी बैंकों के जरिये देश के PDS सिस्टम के लिए धान की खरीदी होती हैं. केंद्र और राज्य सरकार सहकारी बैंकों के जरिये हर साल लगभग 15000 करोड़ रुपये किसानों के खाते में डालती है.

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यह रकम सरकार को धान बेचने वाले किसानों के खातों में जमा की जाती है. अलग-अलग सरकारी योजनाओं के तहत किसानों को दीर्घ और लघु ऋण इन्हीं बैंकों के जरिये मुहैया कराया जाता है. इसके अलावा धान से चावल निकालने वाली मीलों, धान और चावल का उठाव करने वाली संस्थाओं, खाद्द, यूरिया की सप्लाई का भुगतान और खेती किसानी से जुड़े सभी आर्थिक मामलों का लेन-देन सहकारी बैंकों के जरिये होता है.

किसानों को केंद्र सरकार से मिलने वाली सब्सिडी इन्हीं सहकारी बैंकों के जरिये आम किसानों तक पहुंचती है. बताया जाता है कि बड़े पैमाने पर किसानों के फर्जी खाते खोल कर उसमे जमा हुई सब्सिडी बैंक अफसरों और राजनेताओं ने हड़प ली. रायपुर में 500 ऐसे कारोबारी सामने आये हैं, जिन्होंने सहकारी बैंक के जरिये अरबों का हवाला किया.

रायपुर में 800 करोड़, बिलासपुर में 600 करोड़, रायगढ़, धमतरी, दुर्ग और महासमुंद जिले में 300 करोड़ से ज्यादा की रकम का गोलमाल सामने आया है. बैंक ने अपनी वर्ष 2015-16 की सालाना ऑडिट रिपोर्ट में तमाम घोटालों को नुक्सान और गबन की श्रेणी में रखा है. इस ऑडिट रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सरकारी और निजी क्षेत्रों के बैंकों से मिली रकम का समायोजन और बैलेंस सर्टिफिकेट में प्रविष्ठियां दर्ज नहीं की गयी हैं.

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वहीं, सहकारी बैंकों से राष्ट्रीयकृत सरकारी और निजी बैंकों के बीच बड़े पैमाने पर रकम भी ट्रांसफर हुई है. उधर, सहकारी बैंकों का घोटाला सामने आने के बाद सरकार मामले को पुलिस को सौंपने के बजाए ट्रिब्यूनल बनाकर जांच करने का उपक्रम खोज रही है.

रायपुर से विधायक और सहकारिता से जुड़े सत्यनारायण शर्मा के मुताबिक पूरे घोटाले को सरकार दबाने में जुटी है. अफसर जेल जाने के डर से असली रिपोर्ट शासन को नहीं सौंप रहे हैं. जबकि, इस गंभीर मामले को तत्काल पुलिस या दूसरी जांच एजेंसियों को सौंपना चाहिए. उनके मुताबिक, केंद्र सरकार से मिलने वाली बड़ी रकम का गोलमाल हुआ है. इसलिए सीबीआई को ही सीधे हस्तक्षेप करना चाहिए.

महासमुंद से विधायक विमल चोपड़ा के मुताबिक घोटाले का प्राथमिक आकड़ा ही 1500 करोड़ के लगभग है. यदि जांच हुई तो यह रकम और बढ़ सकती है. छत्तीसगढ़ वित्त आयोग के अध्यक्ष चंद्रशेखर साहू ने सरकार से मांग की है कि वो जल्द तमाम ऑडिट रिपोर्ट और दस्तावेजों को अपने कब्जे में ले. वरना बैंक अफसर रिकॉर्ड गायब कर सकते हैं. उनके मुताबिक घोटाले को सुनियोजित रूप से अंजाम दिया गया है.

छत्तीसगढ़ के सहकारी बैंक नोट बंदी के दौरान उस समय सुर्खियों में आये जब किसानों के खातों में बड़े पैमाने पर काला धन खपाया गया था. सहकारी बैंकों की तमाम शाखाओं में करीब एक हजार करोड़ के लेन-देन की जांच अभी भी चल रही है. इस बीच बैंक में हुए सुनियोजित इस घोटाले ने विधानसभा के अंदर और बाहर खलबली मचा दी है.

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