फिल्म: सबकी बजेगी बैंड
डायरेक्टर: अनिरुद्ध चावला
स्टार कास्ट: स्वरा भास्कर, सुमित व्यास, आलेख संगल, शौर्या चौहान, अमन उप्पल, अमोल पराशर, जान्हवी देसाई
अवधि: 108 मिनट
सर्टिफिकेट: A
रेटिंग: 0.5 स्टार
बचपन में कभी कभी हम खेल खेलते थे तो कोई एक्टर बन जाता था तो कोई क्रिकेटर. किसी को विलेन तो किसी का किरदार हम आल राउंडर का रख देते थे. बहुत मजा भी आता था लेकिन कुछ चीजें सिर्फ बचपन में ही अच्छी लगती हैं. बड़े होकर बचपन के अनोखे खेल बस सोच में ही अच्छे लगते हैं. दरअसल मैं आपसे ये सब इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कभी कभी हम कुछ बहुत ही अच्छा कर जाने की कोशिश में बच्चों जैसी बात कर जाते हैं. मसलन ये फिल्म 'सबकी बजेगी बैंड'. डेब्यू डायरेक्टर अनिरुद्ध चावला ने भूमिका तो काफी अच्छी बांधी है लेकिन इसका अंजाम कतई काबिल ए तारीफ नहीं है. आइये आपको पहले कहानी बता दें.
दिल में डायरेक्टर बनने के सपने को फिल्म में उतरने के लिए करण(अमन उप्पल) अपने सारे दोस्तों को फार्म हाउस पर बुलाता है और सभी को अलग अलग तरह के सवालों के जवाब देने को कहता है. दोस्तों में अमित (सुमित व्यास), जया (स्वरा भास्कर), हर्ष (आलेख संगल), सेवी (शौर्या चौहान),डी के (समर्थ शांडिल्य) इत्यादि होते हैं और अलग अलग तरह के कभी सीधे साधी, तो कभी डबल मीनिंग और एडल्ट बात चीत करते हैं और ये सब कुछ एक हैंडी कैम में करण खुद रेकॉर्ड कर लेता है और फिल्म बना लेता है.
फिल्म आने से पहले जब ट्रेलर परोसा गया था तो लगता था की ये फिल्म कॉन्ट्रोवर्सी के साथ साथ कई सारे भेद खोलेगी. लेकिन पटकथा के साथ साथ फिल्मांकन भी बहुत हिला डुला सा था. सबसे बड़ा सवाल ये पैदा होता है की ये फिल्म ना होकर एक धारावाहिक या फिर किट्टी पार्टी टाइप से फिल्माई गई है जो एक पल के लिए भी चेहरे पर खुशी नहीं लाती, सब कुछ बहुत ही बनावटी और निरर्थक सा लगता है. सेक्स से सम्बंधित सवालात हो रहे हैं और सभी जवाब भी देते जा रहे हैं जो की बिलकुल भी मनोरंजित नहीं करता. कभी आइटम सांग, लव मेकिंग सीन, फनी जोक्स, कास्टिंग काउच तो कभी वर्जिनिटी के सवाल जवाब भी होते हैं.
मेरा एक सवाल अभिनेत्री स्वरा भास्कर से भी है की उनकी इस फिल्म को करने के पीछे कोई मजबूरी थी या दोस्ती के खाते में उन्होंने कर डाली. कहीं से भी ये कहानी उन पर रत्ती भर भी सूट नहीं करती. किरदारों के नाम इंडस्ट्री के नाम से भले ही मिलते हो लेकिन ये नाम होने के बावजूद भी कोई भी एक्टर अपने रोल में आपका मनोरंजन नहीं करता.
कई जगहों पर इस फिल्म की तुलना मधुर भंडारकर की 'पेज 3 ' से किया जा रहा था लेकिन यकीन मानिए पेज 3 कई गुने बेहतर फिल्म थी. अगर आपने इस फिल्म को देखने की एक बार भी सोची है तो बस याद रखिएगा, सिर्फ आपकी और आपके पैसों की बैंड बजेगी.
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